नाम तो सना ही होगा ?
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- पारुष्य ‘न्युइन्डियन‘
इस लेप्रथम प्रथम प्रकाशन २ अक्टोबर, २०१३ स संस्थान की छात्र वे साइट
इस लेख का ख का प्रकाशन २ अक्टोबर, २०१३ कोको ंस्थान की छात्र वेबसाइट
बीचसाइड् ब्लु था ।
बीचसाइड् ब्लुज़- डॉट-कॉम पर हुआ ज़- डॉट-कॉम पर हुआ था ।
22 वर्ष उम्र है मेरी और पिछले 21 वर्षों से एक प्रश्न मझसे बार बार दोहराया जाता है - ‘बेटा
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, तम्हारा नाम क्या है ?’ | मामली सा प्रश्न है, सबसे पछा जाता है और इसमें कुछ नया नहीं है ।
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मेरा जवाब होता है ‘जी, पारुष्य ‘। तरंत ही तीर सामान दसरा प्रश्न आता है ‘बेटा , परा नाम ?’
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और मैं कहता हूँ ‘जो है, यही है ‘ । कुछ महानभाव यहीं हार मान जात े हैं और कुछ एक कदम
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और बढ़ाते हुए पछते हैं ‘बेटा , पापा का नाम ?’ । इतना तो आप भी समझ गए होंगे की इनके इन
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प्रश्नों के वार का मख्य आशय क्या है | जी एकदम सही पकड़ा, ये मेरी जाति जानना चाहते हैं |
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जाति भारत में सबकुछ चलाती है ; शायद दर्भाग्यवश ही पर इसकी यहाँ खब चलती है
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| शिक्षा , नौकरी , प्यार मोहब्बत , शादी आदि में सब में खब बोलबाला है , और राजनीति में
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तो इसका प्रकोप असाध्य हो चका है | खैर , मैं जाति के इतिहास में नहीं घसंगा - वैसे भी इस
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इतिहास को रट कर हम कक्षा 9 -1 0 की परीक्षा में बहुत अक बटोर चके हैं | आज 2 अक्टूबर है
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तो मैं बस भारत के एक महान नेता की बात करूंगा | गाँधी जी की बात नहीं कर रहा मैं - जन्मदिन
तो उनका भी है तो उन्हें भी बधाईयाँ ज़रूर देता हूँ | मैं बात कर रहा हूँ ‘जय जवान , जय किसान
‘ के जनक लाल बहादर शास्त्री जी की | आप सोच रहे होंगे की भला जाति के वाद विवाद में
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शास्त्री जी क्या कर लेंगे अब ?
बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा की श्री लाल बहादर शास्त्री का कुलनाम यानि की सरनेम
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‘शास्त्री ‘ नहीं था | क्या था ? अब यह बता देने पर तो इस लेख और मेरे विचारों का कोई मतलब
नहीं रह जायेगा | काफी कम उम्र में ही श्री लाल बहादर ने अपना पैत्रक कुलनाम त्याग दिया था
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क्योंकि सैद्धान्तिक रूप से वे जाति व्यवस्था के खिलाफ थे | और क्योंकि उन्हें अपनी शिक्षा पर
ज्यादा गर्व था , उन्होंने अपनी शैक्षिक उपाधि अर्थात डिग्री को ही अपने नाम में जोड़ लिया ‘शास्त्री’ , अंग्रेज़ी में जिसका अर्थ होता है ‘स्कॉलर’ | अब ये मत समझियेग की मैं आपसे अपने
नाम से सिंह, सिन्हा , शर्मा ,वर्मा , शक्ला , मिश्रा आदि हटा कर ‘ बी . टेक ‘ या ‘एम् . सी . ए ‘
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लगाने कह रहा हूँ | मैं बस याद दिलाना चाहता हूँ एक बहुत ही सरल परन्तु ताकतवर तरीके की,
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The Shoreline
जिससे ‘जाति ‘ से हुए नकसान का कुछ किया जा सके |
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जाति के नकसान क्या होते हैं ? ये जानने के लिए हमे बस एक बार इसकी बराइयों और
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अच्छाइयों को देखना होगा | बराइयां - कभी जाती के नाम पर लोगों को खाना नहीं मिलता था ,
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और आज अच्छे अक पाकर भी अच्छा कॉलेज नहीं मिलता है| लैला और मजनू की जाति नहीं
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मिलती तो रोमियो-लैला और जलिएट-मजनू की शादी करा दी जाती है और परी कहानी से प्रेम
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विरक्त ही हो जाता है। अब आपके दिमाग में और भी बराइयाँ ध्यान आएँगी ; इस सची में जोड़
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लीजियेगा | अच्छाइयां - जाति से हमे एक काल्पनिक गर्व की अनभति होती है की हम औरों
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से श्रेष्ठ हैं , हमे कम मेहनत से भी अच्छा कॉलेज या अच्छी नौकरी मिल जाएगी आदि आदि |
शायद बड़े बड़े देशों में ऐसी छोटी छोटी खशियों की ज़रूरत होती होगी | बहरहाल , मेरा मानना
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है कि गर्व हमे अपने कर्म और राष्ट्र पर होना चाहिए, और ‘सिंह ‘ सी निडरता की ज्यादा ज़रूरत
हमे अपने विचारों में है न की नाम मे.
और इन सब बातों के बाद एक बार सोचियेगा की इतना पढ़े लिखे हो