हमारा इतिहास
और अस्तित्व
इ
-चन्द्र्केतन साहू
तिहास गवाह है की इतिहास ने उन्ही की सनी है और उन्ही का जिक्र किया है जिन्होने
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समय की पकार सनी है और अपने को समयनसार बदल कर खद को लचीला बनाया
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है. अडिग और जिद्दी रहे सरमाओ ं को इतिहास भी दीमक की भाँति निगल गया और
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लचीलेपन की ताप से सबसे मजबत और टिकने वाले व्यक्तित्वओ ंं का निर्माण हुआ जो आज
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भी हमारे दिल और दिमाग़ में एक स्थान बनाए हैं.
आज का भविष्य भी कल का इतिहास होगा । समय आ गया है की जब इस इतिहास
को बनाने के लिए हम एक दसरे से सामजस्य बैठाए हुए दनिया के उन विकसित मल्कों से
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प्रतियोगिता करें जिन्होने खद को समय से आगे रख कर बदलाव को स्वीकार किया और समय
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के साथ कुछ ऐसे निवेश किए, कुछ ऐसे कदम उठाए जिन्होने उन्हें समकालीन संसार के धरातल
से उठाया और अपने लिए ही नहीं बल्कि दसरों के लिए भी निर्णय लेने का अधिकार दिया.
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आज अमेरिका, रशिया और इगं ्लेंड जैसे देश विश्वा के राजनीतिक पटल पर एक ऐसी
पहचान बना चके हैं की वे किसी भी देश के आन्तरिक और बाह्य मामलों में अपना सकते हैं.
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और इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह रही है की इन्होने अपनी आतरिक कमज़ोरी को कभी भी
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विश्वा के सामने जगजाहिर नहीं होने दिया है . जब भी इन्हें किसी आतरिक परे शानी या विद्रोह
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का सामना करना पड़ा है इन्होने अपने देश के दरवाजे बाकी मल्कों के लिए बंद कर दिए हैं और
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स्वयं ही उन परे शानियों को झेला है. सीधे शब्दों में कहा जाए तो घर की बात घर से बाहर नहीं
होने दी है. आत्मनिर्भरता विशेषतः कठिनाई के समय में और अपनी संस्कृति और सभ्यता को
बरकरार रखते हुए सधारवादी विचारों को अपने सभायता और समाज में शामिल करना इन देशों
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की मख्य और बेहतरीन मजबती रही है, जो की सीखने योग्य है.
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आज हम अग्रसर बनने और आधनिकता के अधकार में अपनी मल सभ्यायता और
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संस्कृति को ना सिर्फ़ भल रहें हैं बल्कि दरकिनार भी कर रहें हैं. जो देश कभी ईमानदारी, सम्मान
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और संपन्नता का प्रतीक हुआ करता था आज पिच्छदेपन और भ्रष्टाचार के लिए प्रसिद्ध है और
एक सवाल जो मैं अक्सर खद से करता हूँ की इस देश में आख़िर बदला क्या है?
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ससाधानो के मामले में आज भी हम सपन्न हैं, हमारे बद्धिजीवी ससार के हर कोने में अपनी
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छाप छोड् ते हैं. गर्व और समर्पण की आज भी किसी भारतिय में कमी नहीं है. बदली है तो एक
मात्र चीज़ और वो है हमारी मानसिकता ! हमें अपनी सभ्यता और संस्कृति के उन आदर्शों को
भला दिया है जो