महान् संगीतकार
दिव्यसानु द्वितीय वर्ष जन्पद अभियन्त्रिकि के छात्र हैं ।
हिन्दी तथा संस्कृत में लेखन के अतिरिक्त दिव्यासानु की
राजनीति तथा संगीत में भी विशेष रूचि है ।
मत्स्वामी दीक्षितर
ु तु
-दिव्यसानु पाण्डेयः
मत्तुस्वामी दीक्षित की रचनायें तो सन्दर बातों की ऐसी मणियां हैं जो कि उनके द्वारा
ु
ु
समनोहर राग रूपी स्वर्ण में उपनिबद्ध होकर किसी हार जैसी सशोभित होती हैं । उनमें गेयता है,
ु
ु
निश्चित ताल और राग हैं तथा भाषा में अलंकारों से चमत्कार भी उत्पन्न किया गया है ।
उदाहरण के लिये उनकी अधोलिखित कृ ति ‘मामव पट्टाभिराम’ जो कि मणिरंग राग में
सगीतबद्ध हैं
मामव पट्टाभिराम - राग मणिरङ् ग
मामव पट्टाभिराम
जय मारुति-सन्नुतनाम राम
कोमलतरपल्लवपद कोदण्डराम
घनश्यामलविग्रहाब्जनयन
सपूर्णकाम रघुराम कल्याणराम राम
ं
भा
रत में संगीत की एक प्राचीन परम्परा रही है । मख्यतः भारत के संगीत को हिन्दुस्तानी
ु
और कर्णाटक श्रेणियों में बांटा जा सकता है । हिन्दुस्तानी संगीत उत्तर भारत में प्रचलित
है ,वहीं कर्णाटक संगीत का दक्षिण भारत में प्