The Shoreline'14 April, 2014 | Page 78

एक शहर और नया -श्रेयस विजयवर्गीय एक शहर और नया,एक और नयी भीड़ इस नयी भीड़ का पर वही पराना अके लापन… ु इस भीड़ में हज़ारों हैं चेहरे ,जाने कितने हैं हारे हैं मगर खश ये चेहरे देख अपने कोशिशों के खाँचे ु सफलता की सराही थोड़ा और भरने की ये मेरी कै सी प्यास है ु नाकाम चेहरों के बीच ये कामयाबी का अके लापन… एक शहर और नया,ज़िंदगी की जैसे नयी डोर ऊची, नयी हसरतों को रोज़ इस धागे में पिरोना ँ आज की अनगिनत छोटी खशियों पे भारी ख्वाबों की मंज़िल ु खली आँखों से इन सपनों को बनने का अके लापन... ु ु एक शहर और नया,सीधी राह पे लभाते कितने नये मोड़ ु माँझी के कई बदल बरसे नहीं थे,मस्तक़्बिल, तेज़ बरसात हो ु लहरों की तरह बहना और आग की लपटों की तरह दहकना है ऐसी बेज़ान चीज़ों से मायने ढूँढ़ने का अके लापन.... एक शहर और नया, एक और नयी भीड़ इस नयी भीड़ का पर वही पराना अके लापन ु 76 The Shoreline