The Progress Of Jharkhand #46 | Page 29

मेरे छोटी सी र्ुिवारी है िेप्रकन मैंने उसके प्रकनारे आम अमरुद के पेड़ भी िगाए हैं. जब अमरुद में उसके र्ूि िगे थे तो मैंने अपनी छोटी प्रबप्रटया को प्रदखाया था. उस समं में नहीं आ रहा था प्रक ये छोटा सा र्ूि अमरुद कैसे बन जाएगा। धीरे - धीरे उसन महसूस प्रकया और समं भी गयी. कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं लजन्हें िकृप्रत के साप्रनधय में ही समंा जा सकता है. अपना बचपन याद आता है तो िगता है हम हमारी पीढ़ी को िकृप्रत थीं. तेजस अपने माथे को छू रहा है . बड़ी मैिम उसे चुम कर बोिेंगी तू तो खूब पढ़ रहा है इसलिए तेरा माथा चमक रहा है . लशल्क्षकाएँ उनसे अपना दुःख सांा का साप्रनधय अनायास ही प्रमि जाया करता था िेप्रकन आज उसके लिए उद्यम करना करतीं थीं. एक माँ की तरह वह सबको अपने बच्चों को िकृप्रत का साप्रनधय दे ने के लिए यथा संभव कुछ न कुछ करते रहना मन से अपने पग बढ़ा रहीं हैं . पर वह पड़ता है. छोटी-छोटी हरी-भरी बािकनी को देखकर एक सुखद एहसास होता है . हम चाप्रहए। आज हमारी लज़न्दगी यंत्रवत हो गयी है , हमारे चारों तरर् सुप्रवधाओं का अम्बार िगा हुआ है पर हम चैन और सुकून से कोसों दूर हो रहे हैं . उफ़ मैं कहाँ खो गयी. अभी अब माँ के पार्षथव शरीर की अंप्रतम यात्रा की तैयारी करनी है. कुछ क्षणों पहिे वो हमारी माँ थी, अब स्थूि शरीर है. मैं दे ख रही हँ . वह उसी आम्रवृक्ष की छाँव में िेटी हुई है लजसे उसने सींचा था. प्रनप्रिंत सो रही है. कभी बोिती थीं मैं बहुत थक गयी हँ , मुंे सोने दो, मुंे तंग मत करना मत उठाना, मैं अपने मन से उठू ं गी। उन्हें नहीं जगाउं गी। सारी मप्रहिाएं आ गयीं हैं , उन्हें अच्चछे से तैयार कर प्रवदा करने के लिए. आ गयी वह घिी. बड़ा ही कारुलणक दृश्य है. वह स्कूि के बच्चों की बड़ी मैिम ढांढस बंधाती। सभी अश्रपूणफ नेत्रों से भारी आम्रवृक्ष ल्स्थर खड़ा है और कह रहा है , 'मा तू मेरे साये में िेटी रही मैं धन्य हो गया. तून मुंे सींच-सींच कर इतना बड़ा प्रकया प्रक म तेरे काम आ सका. मैं वहां तक तो नहीं जा सकता िेप्रकन वहां भी मेरे बंधू - बांधव ही होंगे जो तेरे कण-कण में प्रविीन होने तक तेरे साथ ही रहेंगे। ' हककी-हककी बूँदें पड़न िगीं, िगा आसमान भी रो पड़ा. ऐसा हो अपना भारि  कववता हमारे पैर जहाँ पड़े हैं, हम खड़े ह वह धरती है - हमारा देश भारत ह जहाँ हमारा घर खड़ा है, खेत पड़ा ह  िॉ० राजेश िसाद वह वसुंधरा- हमारा देश चहदुस्तान ह देश घटना नहीं, बँटना भी नहीं अब पूरा देश हम सबको चाप्रहए जो माँ है लजसकी हम जय करते ह वह भारत माता- जाप्रत, समाज, धमफ में बंटा ह समेटकर सप्रहजकर अब हमको चिना चाप्रहए सब रखवािे बनें, सब पािनहार बन एक हाथ से देते रहे - धयान रह िेने का भी मान रह देना ज्यादा- िेना कम ह आइये अपने पैर के नीचे का भारत हम दो हमारे दो पर चि पड़ -गुजरात-अरुणाचि भी स्वगफ - सी धरती हो हमारी- आओ सृजन करते चि साथ में कन्याकुमारी-कश्मीर प्रमिकर पूरा देश संभािें! वृक्षों की भरमार करा दें , भारत भूप्रम पर हिरयािी र्ैिा द आओ प्रमिकर अपने नाम का एक वृक्ष भी िगा द अपने जीवन जैसा उसे भी संभाि द जनसंख्या प्रनयंत्रण करने के उपाय कर ि सजाते और प्रसखाते चि यूँ ही न जीवन प्रबताते चि करना जरुरी है - करते रह सीमाओं का अब र्ैिाव कर सम्पूणफ देश का बचाव करें !  खेतों की प्रमट्टी में हि-कुदाि-खुरपी चिाय द प्रोग्रेस ऑफ़ झारखण्ड (माससक) । 29