The Progress Of Jharkhand #46 | Page 28

कहानी  प्रवभा िसाद आ ज गुरु पुर्लणमा का प्रदन है . दूरभाष की घंटी बजी और मैंने शंप्रकत ह्रदय से फ़ोन पकड़ कान तक बढ़ाया- "दादी माँ नहीं रहीं"- नहीं रहीं? ऐसा िगा जैसे ह्रदय के तार आपस में उिं गए और उससे ही आवाज़ आ रही है . उसे सुिंाने के लिए चुपचाप बैठने के अिावा और क्या प्रकया जा सकता था. कि श्रावण मास शुरू हो रहा है . बरसात आते ही वह आह्लाप्रदत होकर हम गाँव में धान रोपनी के समय के प्रकतने प्रकस्से सुनाया करती थी. प्रकतने गीत पूरे िय में गाया करतीं और हम सारे भाई-बहन भाव प्रवभोर होकर सुना करते। कैसे मजदूर िोग धान रोपकर आते साथ में उनके छोटे बच्चे भी कीचड़ में सने हुए ल्खिल्खिात ● ● ● उसे समझ में नहीं आ रहा था कि य छोटा सा फूल अमरुद िैसे बन जाएगा। धीरे - धीरे उसने महसूस किया और समझ भी गयी। िुछ चीज़ ऐसी होती हैं जजन्हें प्रिृकत िे साननध्य में ही समझा जा सिता है। अपना खाने पर टू ट पड़ते। कैसे उन्हें अचार बांटने में बड़ा आनंद आता था. बच्चे प्रनहारत रहते। प्रकसी प्रदन वह छोटे - छोटे पौधे िेकर अपने चाचाजी के साथ खेतों पर प्रनकि बचपन याद आता है तो लगता है हम नानी के घर जाते तो अपने रोपे हुए पौधे जो कार्ी बड़े हो चुके थे बड़े गवफ से हम अनायास ही नमल जाया िरता था पड़ती और प्रकनारे - प्रकनारे रोपने में बड़ा आनंद आता था. जब हम सब उनके साथ प्रदखती थीं. घर के समीप भी कुछ पेड़ थे लजनसे उन्हें िगाव था. शायद यही वजह रही होगी मुंे भी पेड़ पौधे से आल्त्मक िगाव है . मुंे आज भी फ्लैट वािी लज़न्दगी भयभीत करती है. जब मैंने अपना घर बनाया उन्होंने मुंे एक अनार का पौधा प्रदया अपनी छोटी सी र्ुिवारी में िगाने के लिए आज वह बड़ा हो चूका है और र्िों स िदा हुआ ंुक सा गया है . िगता है उस जीवनदाप्रयनी का ही दूसरा रूप है . 28 । The Progress of Jharkhand (Monthly) हमारी पीढ़ी िो प्रिृकत िा साननध्य ले किन आज उसिे नलए उद्यम िरना पड़ता है। ● ● ●