एंटोप्रनया फ़्रेज़र अपनी पुस्तक, 'द
वॉिरयर क्वीन' में लिखती हैं , "तब तक एक
अंग्रेज़ रानी के घोि े की बगि में पहुंच चुका
था. उसने रानी पर वार करने के लिए अपनी
तिवार ऊपर उठाई. रानी ने भी उसका वार
रोकने के लिए दाप्रहने हाथ में पकि ी अपनी
तिवार ऊपर की. उस अंग्रेज़ की तिवार
उनके प्रसर पर इतनी तेज़ी से िगी प्रक उनका
माथा र्ट गया और वो उसमें प्रनकिने वाि
ख़ून से िगभग अंधी हो गईं."
तब भी रानी ने अपनी पूरी ताकत
िगा कर उस अंग्रेज़ सैप्रनक पर जवाबी वार
प्रकया. िेप्रकन वो प्रसफ़फ उसके कंधे को ही
घायि कर पाई. रानी घोि े से नीचे प्रगर गईं.
तभी उनके एक सैप्रनक ने अपन
घोि े से कूद कर उन्हें अपने हाथों में उठा
लिया और पास के एक मंप्रदर में िे िाया.
रानी तब तक जीप्रवत थीं.
मंप्रदर के पुजारी ने उनके सूखे हुए
होठों को एक बोति में रखा गंगा जि िगा
कर तर प्रकया. रानी बहुत बुरी हाित में थीं.
धीरे - धीरे वो अपने होश खो रही थीं.
उधर, मंप्रदर के अहाते के बाहर
िगातार फ़ायररग चि रही थी. अंप्रतम
सैप्रनक को मारने के बाद अंग्रेज़ सैप्रनक समं
प्रक उन्होंने अपना काम पूरा कर प्रदया है .
तभी रॉप्रिक ने ज़ोर से प्रचल्ला कर
कहा, "वो िोग मंप्रदर के अंदर गए हैं . उन
पर हमिा करो. रानी अभी भी जज़दा है."
उधर, पुजािरयों ने रानी के लिए
अंप्रतम िाथफना करनी शुरू कर दी थी. रानी
की एक आँख अंग्रेज़ सैप्रनक की कटार स
िगी चोट के कारण बंद थी.
उन्होंने बहुत मुल्श्कि से अपनी
दूसरी आँख खोिी. उन्हें सब कुछ धु ध
िा
प्रदखाई दे रहा था और उनके मु ह
से रुक-रुक
कर शब्द प्रनकि रहे थे , "....दामोदर... म
उसे तुम्हारी... दे खरेख में छोि ती हँ... उस
छावनी िे जाओ... दौि ो उसे िे जाओ."
बहुत मुल्श्कि से उन्होंने अपने गि
से मोप्रतयों का हार प्रनकािने की कोलशश
की. िेप्रकन वो ऐसा नहीं कर पाई और प्रर्र
बेहोश हो गईं.
झााँसी का ब्कला
मंप्रदर के पुजारी ने उनके गिे से हार उतार कर उनके एक अंगरक्षक के हाथ में रख प्रदया,
"इसे रखो... दामोदर के लिए."
रानी की साँसे तेज़ी से चिने िगी थीं. उनकी चोट से ख़ून प्रनकि कर उनके
र्ेर्ि ों में घुस रहा था. धीरे - धीरे वो िू बने िगी थीं. अचानक जैसे उनमें प्रर्र से जान आ
गई.
वो बोिीं, "अंग्रेज़ों को मेरा शरीर नहीं प्रमिना चाप्रहए." ये कहते ही उनका प्रसर
एक ओर िुि क गया. उनकी साँसों में एक और ंटका आया और प्रर्र सब कुछ शांत हो
गया.
ंाँसी की रानी िक्ष्मीबाई ने अपने िाण त्याग प्रदए थे. वहाँ मौजूद रानी के
अंगरक्षकों ने आनन-फ़ानन में कुछ िकप्रि याँ जमा की और उन पर रानी के पार्षथव शरीर
को रख आग िगा दी थी.
उनके चारों तरफ़ रायफ़िों की गोलियों की आवाज़ बढ ती चिी जा रही थी.
मंप्रदर की दीवार के बाहर अब तक सैकि ों प्रब्रप्रटश सैप्रनक पहुंच गए थे.
मंप्रदर के अंदर से प्रसफ़फ तीन रायफ़िें अंग्रेज़ों पर गोलियाँ बरसा रही थीं. पहि
एक रायफ़ि शांत हुई... प्रर्र दूसरी और प्रर्र तीसरी रायफ़ि भी शांत हो गई.
जब अंग्रेज़ मंप्रदर के अंदर घुसे तो वहाँ से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी. सब कुछ शांत
था. सबसे पहिे रॉप्रिक प्रब्रग्स अंदर घुस . े
वहाँ रानी के सैप्रनकों और पुजािरयों के कई दजफन रक्तरंलजत शव पि े हुए थे. एक
भी आदमी जीप्रवत नहीं बचा था. उन्हें प्रसफ़फ एक शव की तिाश थी.
तभी उनकी नज़र एक प्रचता पर पि ी लजसकीं िपटें अब धीमी पि रही थीं.
उन्होंने अपने बूट से उसे बुंाने की कोलशश की.
तभी उसे मानव शरीर के जिे हुए अवशेष प्रदखाई प्रदए. रानी की हप्रिया
़िरीब-़िरीब राख बन चुकी थीं.
इस िि ाई में िि रहे कैप्टन िेम ट
वॉकर हेनीज ने बाद में रानी के अंप्रतम क्षणों
का वणफन करते हुए लिखा, "हमारा प्रवरोध ख़त्म हो चुका था. प्रसफ़फ कुछ सैप्रनकों से प्रघरी
और हप्रथयारों से िैस एक मप्रहिा अपने सैप्रनकों में कुछ जान र्ूंकने की कोलशश कर रही
थी. बार-बार वो इशारों और तेज़ आवाज़ से हार रहे सैप्रनकों का मनोबि बढ ाने का
ियास करती थी, िेप्रकन उसका कुछ ख़ास असर नहीं पि रहा था. कुछ ही प्रमनटों म
हमने उस मप्रहिा पर भी काबू पा लिया. हमारे एक सैप्रनक की कटार का तेज़ वार उसके
प्रसर पर पि ा और सब कुछ समाप्त हो गया. बाद में पता चिा प्रक वो मप्रहिा और कोई
नहीं स्वयं ंाँसी की रानी िक्ष्मीबाई थी."
रानी के बेटे दामोदर को िि ाई के मैदान से सुरल्क्षत िे जाया गया. इरा मुखोटी
अपनी प्रकताब 'हीरोइंस ' में लिखती हैं , "दामोदर ने दो साि बाद 1860 में अंग्रेज़ों के
सामने आत्म समपफण प्रकया. बाद में उसे अंग्रेज़ों ने पेंशन भी दी. 58 साि की उम्र म
उनकी मौत हुई. जब वो मरे तो वो पूरी तरह से कंगाि थे. उनके वंशज अभी भी इंदौर म
रहते हैं और अपने आप को 'ंाँसीवािे ' कहते हैं."
द प्रोग्रेस ऑफ़ झारखण्ड (माससक) । 27