The Progress Of Jharkhand #46 | Page 30

सुचध पाठकों से आग्रह ‘द िोग्रेस ऑर् ंारखण्ि’ का अगस्त 2019 का अंक आप सुववचार  स्वेच्चछा राज (संकिन) के हाथ में है . यप्रद आप पप्रत्रका िाप्रप्त के इच्चछुक हैं तो हम संपकफ करें: र्ोन एवं व्हाट्सऐप : 09934333307 ई-मेि : [email protected] उपरोक्त संपकफ सूत्रों के माधयम से अपना पूरा नाम, पता, र्ोन नंबर, इत्याप्रद बताएं , हम आपको अपनी मैजिग लिस्ट म शाप्रमि करेंगे. पप्रत्रका के सम्बन्ध में सुंावों का स्वागत है. ===================================================== सब्सक्रिप्शन फॉम ग्राहक का नाम................................................ पता : ......................................................... ............................................................... ............................................................... पोस्ट ....................... लजिा ........................... राज्य ....................... प्रपन ............................. प्रकतने समय के लिएः  वार्षषक (350/- रूपए)  प्रिवार्षषक (700/- रूपए) िाफ्ट संख्या .................................................. मनी आिफर संख्या ............................................ कृपया ग्राहक शुकक (सब्सप्रक्प्शन) की रालश बैंक िाफ्ट के साथ इस र्ॉमफ को भी संिग्न कर भेज सकते हैं . रालश इस पते पर भेज : ें - प्रवतरण प्रवभाग द िोग्रेस ऑर् ंारखंि स्वर्लणमा एकेिमी पिरसर, अरसंि , े बोड़ेया रोि, कांके, रांची- 834006 .................................................... ग्राहक का पूरा नाम व हस्ताक्षर 30 । The Progress of Jharkhand (Monthly) आपको मानवता में ववश्वास नहीं खोना चाहहए। मानवता सागर के समान है ; यवि सागर की कु छ ब ँिें गन्दी हैं , तो प रा सागर गंिा नहीं हो जाता। – महात्मा गांधी  असफिता कभी भी व्यब्क्त िहीं, अब्पतु घटिा होती है। - विवियम डी. ब्राउन  स व ं ाद करिा ब्बल्कुि ठीक है, िेब्कि जब तब इसे ि करिा भी आवश्यक है। - रिचडड आमडि  दौड़ के पहिे चक्कर में आिोचिा को आगे रहि देकर भी दौड़ जीत जाती है प्रश स ं ा। - बनड विवियम्स  प्रसन्िब्चत्त होिा समाज में पहिे जा सकिे वाि आवरण का सविश्रष्ठ अिंकरण ही कहा जा सकता है। - विवियम एम ठे किी  इब्तहास की महाि त्रासब्दयााँ सही और गित क टकरािे से िहीं अब्पतु सही और सही के टकराव स पेश आती है। - हेकिी ए. वकवस ज िं ि  आदमी के वि शलदों के सहारे िहीं जी सकता, हािांब्क कभी-कभी उसे कुछ उगिकर ब्िगििा भी पड़ता ही है। - ऐडिे स्िीिेंसन