Sri Vageesha Priyah eSouvenir May 2014 | Page 33
॥ श्रीः॥
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॥ श्रलक्ष्मरहयवदन लक्ष्मरनारायण वेणगोपाल परब्रह्मणे नमीः॥
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॥ श्र शठकोप रामानज देशशके भ्यो नमीः॥
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॥ श्र ब्रह्मतन्त्र स्वतन्त्र परकाल गरुपरम्परायै नमीः॥
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॥ श्रमिेदान्तपरकालमहादेशशक कृ तं श्रशनवासपरकालमहादेशशक मङ्गलम॥
(From the palm leaf manuscripts of Bruhadgranthabhandaram of Sri Brahmatantra Swatantra
Parakala Swamy matam)
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िाशवंशशतयतरन्द्राप्त परकाल शवहाशरणे। मूतय े गरवे श्रश्रशनवासाय मङ्गलम॥१॥
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तातदेशशकपादाब्जन्यस्तस्वात्मभराय नीः। स्वाशमने श्रश्रशनवास तररयायास्त ु मङ्गलम॥२॥
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परकालयतरशानप्राप्ततयाथश्माय नीः। नाथाय श्रश्रशनवासाय पराथाथयास्त ु मङ्गलम॥३॥
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शशखोर्ध्वथपण्रकाषायशत्रदण्डालं कृतात्मने। ज्ञानाब्धये श्रशनवासहयास्याय स्व मङ्गलम॥४॥
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पराङ्जशो यतरशानो वेदान्तगरुरेव वा। इत्यूह्याय श्रशनवास स्वामृतत्वाय मङ्गलम॥५॥
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भगवद्भशतवैराग्यशनधये गणशसन्धवे। शान्ताय श्रश्रशनवासाय परमाराय मङ्गलम॥६॥
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तन्त्रेष ु सम्यशनिष्णातवाशदगवाथपहाशरणे। दान्ताय श्रश्रशनवास योशगने शदव्य मङ्गलम॥७॥
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त्रय्यन्तगरुशसद्धान्तर्स्ापन ैकोत्सकाय नीः। शनधये श्रश्रशनवासाय परकालाय मङ्गलम॥८॥
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ज्ञानभशतवचीःसंपत परमैकान्तसशत्रणे। हयास्यमूशतथश्रवास परतत
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