जो फिजूलखचटी, पाखंडी और अभिमानी है, महापुरुष बनकर अपनरे अहंकारी और अन्यायपूर्ण विचारों को समाज में थिोपता है, इससरे उस वयस्त के मन में घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो जाती है, जो अंततः समाज में एक प्रथिा के रूप में स्थापित हो जाती है । ्योंकि प्रत्येक वयस्त के पीछे एक विशाल जनसमूह की नासमझ शक्त निहित होती है ।
भारत के लोकतंत् की इमारत दुर्बल सामाजिक और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर खड़ी हो रही थिी । डा. आंिरेडकर इस ठोस
तथय सरे भली-भांति परिचित थिरे । वह एक अतयंत प्रखर सामाजिक चिंतक, भारत की आंतरिक सामाजिक संरचना के अध्येता और वैसश्क राजनीतिक घटनारिमों के विश्लेषक थिरे । उन्होंनरे अनरेक दरेशों के स्तंत्ता संग्ामों और रिांधतयों का विसतृत अधययन किया है । इन अधययनों सरे उन्होंनरे यह अनुभव किया है कि जिस राष्ट् के लोग सामाजिक और धार्मिक रूप सरे विभाजित हों, उसकी स्तंत्ता या लोकतंत् लंिरे समय तक नहीं टिक पाता या ऐसा लोकतंत् लड़खड़ाता रहता है ।
डा. आंिरेडकर का मानना थिा कि लोकतंत् के मार्ग में सबसरे िड़ी बाधा जाति वय्स्था है ्योंकि जाति के कारण वयस्त जन्म सरे ही अछूत हो जाता है और जाति सरे भी बदतर जीवन जीनरे को विवश होता है । दूसरी ओर, तथिाकधथित उच्च जाति में जन्मा वयस्त बिना किसी योगयता के जन्म सरे ही विशरेष अधिकारों का आनंद लरेता है । डा. आंिरेडकर कहतरे थिरे कि लोकतंत् को उसके वासतध्क अर्थों में स्ीकार करनरे के लिए संवैधानिक कानून में दृढ़ विश्ास होना चाहिए । साथि ही, संविधान का कड़ाई सरे पालन भी किया जाना चाहिए । वह लोकतंत् में आधथि्णक और सामाजिक समसयाओं और प्रश्नों के संवैधानिक समाधान पर ज़ोर दरेतरे थिरे । लोकतंत् में असंगठित तरीकों, साधनों, अराजकता और रिांधत के लिए कोई जगह नहीं है । लोकतंत् में परिवर्तन शांतिपूर्ण तरीके सरे लाया जाना चाहिए ।
डा. धनंजय कीर लिखतरे हैं कि समाज सुधारकों की तरह, बाबासाहब आंिरेडकर नरे पहलरे सामाजिक पुनर्निर्माण का कार्य किया, लरेधकन गोलमरेज सम्मेलन के बाद, उन्होंनरे राजनीतिक सुधारों के बाररे में सोचना शुरू किया । 1940 के बाद सरे, उन्होंनरे राष्ट् की महत्पूर्ण राजनीतिक समसयाओं की ओर रुख किया । उन्होंनरे पाकिसतान, लोकतंत्, गांधीवाद, सहकारी राजय, समाजवाद, संविधान, भाषाई राजय आदि जैसरे विषयों का गहन अधययन किया और उन पर अपनरे चिंतनशील, विचारोत्तेजक और मार्गदर्शक विचार वय्त किए, जिससरे उनके वयस्तत् और विचारों पर अमिट छाप पड़ी ।
डा. आंिरेडकर हमरेशा राजनीतिक लोकतंत् की तुलना में सामाजिक लोकतंत् को अतयंत महत्पूर्ण मानतरे थिरे । इसीलिए उनका मानना थिा कि दलितों और पिछड़े ्गषों की िरेहतरी के लिए संविधान के माधयम सरे विशरेष सुरक्षा, सुविधा और वित्ीय संरक्षण प्रदान करके उनकी स्थिति में सुधार लाया जा सकता है । उनके कुछ विचार अतयंत दूरगामी थिरे, जैसरे-राजनीतिक सरे्ाओं और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण दिया जाना चाहिए । शिक्षा में छात््ृधत् और अन्य सुविधा प्रदान की जानी चाहिए । विधानसभाओं और
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