संवैधानिक गणतंत्
का शासन, लरेधकन यह बहुमत का अतयाचार नहीं होना चाहिए । लोकतंत् में, बहुमत को कोई भी निर्णय लरेनरे सरे पहलरे हमरेशा अलपमत को विश्ास में लरेना चाहिए । अलपसंखयक को यह महसूस होना चाहिए कि वह शासन में सुरक्षित है । अलपसंखयक समुदाय को राजनीतिक अलपसंखयक जैसा महसूस नहीं करना चाहिए और उसरे यह महसूस होना चाहिए कि वह भी अन्य बहुसंखयक समुदाय की तरह सत्ा में बराबर का भागीदार है । इसलिए, लोकतंत् में, समान आधार पर अलपसंखयकों के हितों की रक्षा को प्राथिधमकता दी जानी चाहिए । इसीलिए डा. आंिरेडकर हमरेशा कहतरे थिरे कि वह सामाजिक क्षरेत्ों में भी लोकतंत् की स्थापना पर ज़ोर दरेतरे हैं ।
डा. आंिरेडकर लोकतंत् को शासन की स्वोत्म प्रणाली मानतरे हैं । इसलिए, वह भारतीय सामाजिक और वैचारिक परिस्थितियों को धयान में रखतरे हुए, लोकशाही को सुचारू रूप सरे चलानरे में आनरे वाली कठिनाइयों के बाररे में निरंतर चिंतित रहतरे थिरे । भारतीय समाज में सामाजिक, धार्मिक शोषण, उतपीड़न और अतयाचार को िढ़ा्ा मिल रहा थिा । परिणामस्रूप, समाज दो ्गषों में बंट गया । अधिकांशतः उच्च जाति शोषक थिी, जबकि दलित, पीधड़त और पिछड़े मानरे जानरे वालरे तथिा सामाजिक उपरेक्षा के शिकार महिलाएं शोषित वर्ग थिरे । दोनों ही ्गषों की स्थिति अतयंत दयनीय हो गई थिी । उन्हें निरंतर अतार्किक अन्याय का सामना करना पड़ रहा थिा । उदाहरण के लिए, उन दिनों दलितों नरे महिलाओं को शिक्षा और बुनियादी आवशयकताओं सरे वंचित कर दिया थिा, जिससरे अन्याय की पराकाष्ठा हो गई थिी ।
डा. आंिरेडकर समाज की इस शोषणकारी नीति को राजनीतिक स्तंत्ता के लिए खतरा मानतरे थिरे । इस संदर्भ में बसंत कुमार मसललका का कथिन महत्पूर्ण है । वह कहतरे हैं कि लोकतंत् केवल शासन का एक रूप नहीं है, िसलक एक जीवन-पद्धति है जो सभी के कलयार को िढ़ा्ा दरे, न कि बहुसंखयकों के सुख को । डा. आंिरेडकर की विचारधारा ' जीवन के सभी
पहलुओं, राजनीतिक, आधथि्णक, सामाजिक, में एक वयस्त, एक मूलय ' थिी । ' एक वयस्त, एक मूलय ' के विचार सरे ऐसा प्रतीत होता है कि डा. आंिरेडकर नरे समाज के प्रत्येक वयस्त को महत् और मूलय दरेकर लोकतंत् के स्वोच्च स्रूप को स्थापित किया । उनका सपष्ट मानना थिा कि सामाजिक एकता के बिना राजनीतिक स्तंत्ता या लोकतंत् का कोई अथि्ण नहीं है ।
डा. आंिरेडकर का मानना है कि अतीत में वयस्त पूजा की मानसिकता लोकतंत् के विकास में सबसरे िड़ी बाधा रही है । इस दरेश में, यदि
कोई वयस्त कुछ अचछा करता है या लोगों के बीच लोकप्रियता हासिल करता है, तो लोग उसरे अवतारी मानव या महापुरुष की उपाधि दरे दरेतरे हैं, इतना ही नहीं, िसलक लोग उसरे भगवान मानकर पूजनरे लगतरे हैं । और वयस्त के अचछे- बुररे गुणों का मूलयांकन किए बिना, उस पर आंख बंद करके विश्ास कर लरेतरे हैं । अधिकांश लोग बुद्धि, तर्क और ध््रेक के बजाय भावनाओं सरे प्ररेरित होकर वयस्त पूजा का प्रदूषण फैलानरे लगतरे हैं । इस संसार में पूर्ण मानव बनना एक अधूरा कार्य है, जबकि भारत में कोई भी वयस्त
50 flracj 2025