नरेताओं की तरह लोकतंत् में विश्ास रखतरे थिरे । अधिनायकवादी साम्राजय, उपधन्रेशवाद त्रित निर्णय लरे सकतरे हैं और अनुशासन बनाए रखनरे में प्रभावी हो सकतरे हैं, लरेधकन एक प्रभावी और स्थायी शासन प्रणाली के रूप में वह किसी की पसंद नहीं हो सकतरे । लोकतंत् एक अतयंत प्रभावशाली वय्स्था है ्योंकि यह स्तंत्ता को मजबूत करती है । सत्ा में बैठे लोगों पर जनता का नियंत्र होता है । लोकतंत् के ध्धभन् रूपों में सरे, डा. आंिरेडकर नरे संसदीय लोकतंत्
को चुना । इसलिए इस पर उनके विचार अन्य राष्ट्ीय नरेताओं सरे मिलतरे-जुलतरे थिरे ।
डा. आंिरेडकर नरे लोकतंत् को शांतिपूर्ण परिवर्तन लानरे के एक महत्पूर्ण साधन के रूप में स्ीकार किया । लोकतंत् का वयापक अथि्ण दरेतरे हुए वह कहतरे थिरे कि लोकतंत् का अथि्ण बलपूर्वक शासन या जनता के प्रतिनिधियों द्ारा संचालित सरकार नहीं है । यह लोकतंत् की एक औपचारिक और सीमित परिभाषा है । यदि हम लोकतंत् को समाज के सामाजिक और आधथि्णक
डा. आंबेडकर ने लोकतंत् को शांतिपूर्ण परिवर्तन लाने के एक महतवपूर्ण साधन के रूप में स्वीकार किया । लोकतंत् का वयापक अर्थ देते हुए वह कहते थे कि लोकतंत् का अर्थ बलपूर्वक शासन या जनता के प्चतचनचधयों द्ारा संचालित सरकार नहीं है । यह लोकतंत् की एक औपचारिक और सीमित परिभाषा है । यदि हम लोकतंत् को समाज के सामाजिक और आर्थिक षिेत्ों में आमूल-चूल परिवर्तन लाने के एक साधन के रूप में समझें, तभी इसके वास्तविक अर्थ को समझ पाएंगे ।
क्षरेत्ों में आमूल-चूल परिवर्तन लानरे के एक साधन के रूप में समझें, तभी इसके वासतध्क अथि्ण को समझ पाएंगरे । लोकतंत् सरकार की योजनाओं और नीतियों तक सीमित नहीं है । सभी क्षरेत्ों में, लोकतंत् सरकार की ध्धभन् योजनाओं तक सीमित नहीं है, यह समाज की आंतरिक शक्त के रूप में भी कार्य करता है । इसकी उपयोगिता समाज के अन्य क्षरेत्ों के संबंधों पर भी निर्भर करती है । लोकतंत् में चुनाव, राजनीतिक दल, सरकारें आदि अंततः लोकतंत् की औपचारिक संस्था हैं । गैर-लोकतांधत्क वातावरण में, किसी भी दरेश की शासन वय्स्था प्रभावी ढंग सरे कार्य नहीं कर सकती । राजनीतिक सिद्धांत का अथि्ण है ' एक वयस्त, एक वोट '। जो राजनीतिक समानता का संकेत दरेता है । लरेधकन जब तक समाज में अतयाचार, शोषण, उतपीड़न, अन्याय है, तब तक राजनीतिक महत्ाकांक्षा की भावना नहीं हो सकती । जब तक समाज में जाति वय्स्था और जाति-आधारित ्गषों के बीच असमानता नहीं रहरेगी, तब तक सच्चा लोकतंत् नहीं आ सकता । लोकतंत् को सही अर्थों में स्ीकार करनरे के लिए समानता, बंधुत् और स्तंत्ता आवशयक हैं ।
डा. आंिरेडकर को हमरेशा यह डर सताता रहता थिा कि हमनरे राजनीतिक स्तंत्ता तो प्रापत कर ली है, लरेधकन जब तक हम सामाजिक स्तंत्ता, समानता और समता प्रापत नहीं कर लरेतरे, यह निरथि्णक रहरेगी । उन्होंनरे लोकतंत् के सामाजिक पहलुओं पर भी विचार किया है । आंिरेडकर उदारवादी विचारधारा सरे प्रभावित थिरे । लरेधकन वह उदारवाद की सीमाओं को भी अचछी तरह जानतरे थिरे । संसदीय लोकतंत् केवल राजनीतिक स्तंत्ता पर बल दरेता है, जबकि सच्ची लोकतांधत्क स्तंत्ता समता और समानता पर बल दरेती है । भारतीय समाज धब्धटश शासन सरे मुक्त चाहता थिा । लरेधकन डा. आंिरेडकर को हमरेशा यह संदरेह रहा कि केवल राजनीतिक स्तंत्ता के माधयम सरे ही सामाजिक स्तंत्ता की स्थापना को साथि्णक मान सकतरे हैं ।
उन्होंनरे लोकतंत् की सफलता के लिए कुछ सुझाव भी दिए हैं । लोकतंत् का अथि्ण है बहुमत
flracj 2025 49