Sept 2025_DA | Page 52

संवैधानिक गणतंत्

संसदों में आरक्षण की वय्स्था होनी चाहिए, धार्मिक और भाषाई सहिष्णुता को प्रोतसाधहत किया जाना चाहिए और सभी नागरिकों के लिए नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए । सभी लोगों को जीवन की आवशयक वसतुएँ प्रदान की जानी चाहिए । डा. आंिरेडकर नरे संविधान सभा में कहा थिा कि असमानता सरे ग्सत लोग राजनीतिक लोकतंत् को उखाड़ फेंकेंगरे, इसलिए भारत में लोकतंत् की सफलता के लिए यह आवशयक है कि सभी प्रकार के सामाजिक अन्याय को जड़ सरे मिटा दिया जाए ।
डा. आंिरेडकर कहतरे थिरे कि लोकतंत् को मज़बूत बनानरे के लिए राजनीतिक दलों का होना पहली और प्राथिधमक आवशयकता है । लोकतंत् में राजनीतिक दलों का होना ज़रूरी है । एक ही राजनीतिक दल के माधयम सरे राजय में ध्धभन् हितों, विचारधाराओं, सामाजिक समूहों और ्गषों का प्रतिनिधित् संभव नहीं है । भारत जैसरे विशाल दरेश के लिए बहुदलीय वय्स्था को आवशयक और अनिवार्य माना जाता है । एकदलीय वय्स्था का विरोध करतरे हुए, ्रे कहतरे हैं कि इसमें वैचारिक स्तंत्ता नहीं होती । लोगों के पास उपयु्त राजनीतिक विकलप नहीं
होता ।
डा. आंिरेडकर के अनुसार, जिस प्रकार लोकतंत् की सफलता के लिए राजनीतिक दल अपरिहार्य हैं । उसी प्रकार सरकार की मनमानी और निरंकुशता पर लगाम लगानरे के लिए एक मज़बूत और प्रभावशाली विपक्षी दल का होना िरेहद ज़रूरी है । विपक्षी दल न केवल सरकार पर नियंत्र रखता है, िसलक लोकतंत् में लोगों को भ्ष्ट सरकार का विकलप भी मिलता है । विपक्षी दल, सत्ा में निर्वाचित दल को चुनाव में हरानरे और एक ज़़यादा स्स्थ सरकार बनानरे के लिए लोगों को सबसरे अचछा विकलप प्रदान करता है । लोकतंत् में कहा जाता है कि आज का विपक्षी दल कल का सत्ाधारी दल बन सकता है । विपक्षी दल सत्ाधारी दल की नीतियों और गतिविधियों की आलोचना करके सरकार को जवाबदरेह ठहरा सकता है । वह सरकार की जनविरोधी नीतियों को जनता के धयान में लाकर उन्हें जागरूक करता है । विपक्षी दल को संसद के भीतर और बाहर की गई आलोचनाओं और समीक्षाओं का जवाब दरेना होता है । संसदीय लोकतंत् में घोटालों, अनियमितताओं और भ्ष्टाचार को रोकनरे के लिए विपक्षी दल ध्धभन् समितियों का गठन करता
है और निष्पक्ष जांच करता है ।
डा. आंिरेडकर का मानना थिा कि आदर्श समाज और लोकतंत् के उच्च आदशषों को केवल एक आदर्श संविधान और कानून बनाकर प्रापत नहीं किया जा सकता । उनका सपष्ट मानना थिा कि इसके लिए नौकरशाहों, राजनीतिक दलों, गैर-राजनीतिक तत्ों और पूररे दरेश की जनता को पूरी ईमानदारी सरे काम करना चाहिए । वह कहतरे थिरे कि केवल एक अचछा संविधान बना दरेनरे सरे काम नहीं चलता । एक अचछा संविधान तभी उपयोगी हो सकता है जब उसरे अचछे लोगों द्ारा ठीक सरे लागू किया जाए । प्रत्येक वयस्त को संविधान के बाररे में जानकारी प्रापत करनी चाहिए । प्रत्येक वयस्त को संविधान की पध्त्ता बनाए रखनरे का प्रयास करना चाहिए । सही मायनरे में, संविधान तभी सफल हो सकता है जब दरेश के सभी लोग संविधान के प्रति सच्ची आस्था और निष्ठा दिखाएं । डा. आंिरेडकर का सपष्ट मानना ​ थिा कि एक सूचित जनमत लोकतंत् का आधार है । जब तक लोग लोकतंत् के सिद्धांतों और आवशयकताओं सरे अवगत नहीं होंगरे, तब तक लोकतंत् की नींव नहीं टिकेगी । �
( साभार)
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