Sept 2025_DA | Page 40

समरसता

सामाजिक बदलाव का अनुपम उदाहरण पहली बार दलितयों करे बाल काटरे नाईययों नरे

के बनासकांठा ज़िलरे के अलवाडा

गुजरात

गांव में दलित वर्ग के लोगों नरे पहली बार
स्थानीय दुकानों पर बाल कटवाए । दरेश के स्तत्त् होनरे 78 वर्ष बाद यह बदलाव आया है । दशकों सरे यहां रहनरे वालरे दलित वर्ग के लोग बाल कटवानरे के लिए तीस किलोमीटर दूर तक जातरे थिरे ्योंकि स्थानीय दुकानदार उनके बाल काटनरे सरे मना कर दरेतरे थिरे । गांव में लगभग 250 दलित परिवार के लोग रहतरे हैं ।
गत 7 अगसत को आलवाड़ा गांव में नाईयों नरे पहली बार दलितों के बाल काटकर सामाजिक बदलाव के एक नए उदाहरण को सामनरे रखा । गांव में दशकों सरे दलितों के गांव में बाल काटनरे पर प्रतिबन्ध लगा हुआ थिा । प्रतिबन्ध किसनरे लगाया और यह परंपरा कब शुरू हुई? इन प्रश्नों का उत्र किसी के पास नहीं है, लरेधकन गांव में दलित एक बहिष्कार के साथि रह रहरे थिरे । वह गांव में बाल नहीं कटवा सकतरे थिरे, लरेधकन अब गांव के समाज नरे जातीय पू्ा्णग्ह को तोड़कर सामाजिक समरसता का उदाहरण सभी के सामनरे रखा है ।
गांव के वरिष्ठ नागरिकों के प्रयासों के बाद गांव के नाईयों( बाल काटनरे वालों) नरे गत 7 अगसत सरे जातीय पू्ा्णग्ह को खतम किया । उस दिन 24 ्षटीय खरेधतहर मजदूर कीर्ति चौहान गांव में नाई की दुकान में बाल कटवानरे वाली पहलरे दलित बन गए । दलित वर्ग के लोगों का कहना है कि उन्हें इस बदलाव सरे बड़ी खुशी मिली ।
गांव में नाईयों की पांच दुकानें हैं । सभी नरे पहली बार अनुसूचित जाति के लोगों के लिए अपनी दूकान के दरवाजरे खोल दिए हैं । लगभग
6,500 लोगों की जनसंखया वालरे गांव के लगभग 250 दलितों को पीधढ़यों सरे स्थानीय नाइयों द्ारा सरे्ा दरेनरे सरे मना किया जाता रहा । इसलिए उन्हें दूसररे गांवों में जाकर अपनी पहचान छिपाकर बाल कटवानरे पड़ता थिा ।
अपनरे ही गांव में स्तत्त् का अहसास करनरे वालरे कीर्ति चौहान के अनुसार वह गांव में बाल कटवानरे वालरे पहलरे दलित हैं । अपनरे जीवन के 24 वर्ष बाद आखिरकार उन्हें अपनरे ही गांव में स्तंत्ता और स्ीकृति का अनुभव हुआ है । गांव में रहनरे वालरे दलित बतातरे हैं कि उन्हें पिछलरे आठ दशक सरे यह सहना पड़ रहा थिा । लरेधकन अब बदलाव आया है और बदलाव की यह प्रधरिया कई माह तक चलरे प्रयासों के उतपन् हुई सामाजिक जागरूकता का परिणाम है ।
दलित समाज की मांग को स्थानीय कार्यकर्ता चरेतन दाभी नरे नरेतृत् दिया । उन्होंनरे नाई और ऊंची जातियों को यह समझानरे का प्रयास किया कि यह प्रथिा असंवैधानिक और अमानवीय है । इस समित्ध में उन्होंनरे पुलिस और जिला प्रशासन सरे भी बात की, इसके बाद बदलाव की राह प्रशसत हुई । गांव के सरपंच सुररेश चौधरी के अनुसार एक सरपंच के रूप में उन्हें इस प्रथिा पर शर्म महसूस होती थिी, लरेधकन अब इस बात का गर्व है कि उनके कार्यकाल में यह प्रथिा समापत हुई है । गांव के मामलतदार जनक मरेहता के अनुसार प्रशासन नरे भरेदभाव की शिकायतें दूर कर आपसी सहमति सरे समाधान कराया । नाई समाज भी अब बदलाव का स्ागत कर रहा है । �
40 flracj 2025