नयाय
क्ीमी लरेयर पर दिए क्नण्गय का बचाव किया मुख्य न्ायाधीश नरे
उच्चतम न्यायालय के मुखय न्यायाधीश बी. आर. गवई नरे अपनरे उस निर्णय का बचाव किया, जिसमें उन्होंनरे अनुसूचित जातियों( एससी) पर रिीमी लरेयर सिद्धांत लागू करनरे की सिफारिश की थिी, जिससरे एससी में िरेहतर स्थिति वालरे लोगों को आरक्षण का लाभ न मिल सके । लरेधकन उनका मानना है कि न्यायिक फैसलों की समीक्षा होनी चाहिए ।
जानकारी हो कि अगसत 2024 में उच्चतम न्यायालय के सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ नरे 6-1 के बहुमत सरे निर्णय दिया थिा अनुसूचित जातियां सामाजिक रूप सरे एक समान वर्ग नहीं हैं और राजयों को उनमें उप्गटीकरण करनरे का अधिकार है, ताकि सबसरे वंचित तबकों को आरक्षण का लाभ मिल सके ।
गोवा उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन द्ारा आयोजित एक सममान समारोह में मुखय न्यायाधीश बी. आर. गवई नरे कहा कि इस निर्णय के उनके आलोचकों में सरे एक न्यायमूर्ति नरेलसन जरे. ररेिरेलो थिरे, जो पहलरे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और बाद में गोवा विधानसभा के सदसय रहरे । उन्होंनरे कहा कि न्यायमूर्ति ररेिरेलो को अनुसूचित जातियों पर रिीमी लरेयर लागू करनरे के मरेररे विचारों पर कुछ आपधत् है । मरेररे मन में यह बात इसलिए आई ्योंकि मैंनरे दरेखा है कि पहली पीढ़ी का एक वयस्त आरक्षित वर्ग सरे आईएएस बनता है और दूसरी पीढ़ी का उसका िरेटा आरक्षित वर्ग सरे आईएएस बनता है और तीसरी पीढ़ी का िरेटा भी उसी वर्ग सरे आईएएस बनता है ।
उन्होंनरे कहा कि अनुचछेद-14 के तहत समानता के सिद्धांत के लिए वासतध्क सामाजिक अंतरों को पहचानना आवशयक है । इस बात पर विचार किया जा रहा है कि असमानों के साथि असमान वय्हार किया जाए ताकि वह समान
बन जाएं । उन्होंनरे कहा कि उच्च न्यायालय किसी भी तरह सरे स्वोच्च न्यायालय सरे कमतर नहीं हैं और प्रशासनिक दृष्टि सरे पूरी तरह स्तंत् हैं ।
अपनरे पद के महत् पर विचार करतरे हुए मुखय न्यायाधीश गवई नरे कहा कि उन्होंनरे हमरेशा अपनरे पद को वयस्तगत सममान के बजाय एक संवैधानिक विश्ास माना है । संविधान निर्माता बी. आर. आंिरेडकर के इन शबदों को याद करतरे हुए कि संविधान र्तहीन आधथि्णक रिांधत का एक साधन है, उन्होंनरे कहा कि मैंनरे हमरेशा अपनरे पद को समाज की सरे्ा करनरे के लिए नियति द्ारा दिया गया एक अवसर माना है । यह पद आनंद के लिए नहीं, िसलक संविधान द्ारा
जनहित में दिए गए कर्तवयों के निर्वहन के लिए है और मैं आभारी हूँ कि मैं सामाजिक और आधथि्णक न्याय की दिशा में योगदान दरे सका ।
उन्होंनरे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में अपनरे कार्यकाल के दौरान दिए गए महत्पूर्ण निर्णयों की चर्चा भी की । अपनी पीठ द्ारा दिए गए विध्ंस संबंधी फैसलरे का उल्लेख करतरे हुए, उन्होंनरे कहा कि न्यायालय इस बात सरे व्यथित है कि बिना किसी दोषसिद्धि के, केवल आरोपों के आधार पर घरों को तोड़ा जा रहा है । अगर किसी वयस्त को दोषी ठहराया भी जाता है, तो भी उसके अधिकार होतरे हैं । कानून का शासन स्वोपरि है और मुझरे खुशी है कि हम दिशाधनदजेश निर्धारित कर पाए और कार्यपालिका को न्यायाधीश बननरे सरे रोक पाए । अगर कार्यपालिका को न्यायाधीश बननरे दिया गया, तो हम शक्तयों के पृथक्करण की मूल अवधारणा पर ही प्रहार करेंगरे ।
उन्होंनरे विदर्भ जुडपी वन मामलरे का भी हवाला दिया, जिसमें न्यायालय नरे झुगगी्ासियों को िरेदखली सरे बचाया थिा, साथि ही अभयारणयों और प्राकृतिक संसाधनों सरे संबंधित हरित पीठ द्ारा पारित कई आदरेशों का भी हवाला दिया । उन्होंनरे इस बात पर ज़ोर दिया कि प्राकृतिक संसाधनों को भावी पीधढ़यों के लिए ट्सट में संरक्षित किया जाना चाहिए और विकासातमक गतिविधियों की अनुमति तभी दी जानी चाहिए जब उनका न्यूनतम प्रतिककूल प्रभाव पड़े । न्याय तक पहुंच के मुद्दे पर, मुखय न्यायाधीश नरे कोलहापुर सहित सर्किट बेंचों के लिए अपनरे समथि्णन को याद किया, ताकि छोटे जिलों के निवासियों को िड़े शहरों की यात्ा के लिए भारी खर्च न करना पड़े । उन्होंनरे इसरे सामाजिक और आधथि्णक न्याय के संवैधानिक लक्य को पूरा करनरे की दिशा में एक और उपाय बताया । �
38 flracj 2025