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भक्त और आधयातम के अथि्ण में प्रतिष्ठित किया गया तथिा उसकी गहन सामाजिक-सांसकृधतक वयंजना को छिपा लिया गया । िसलक यह भी कि ' िकूट डालो और राज करो ' की ककूटनीति के हिसाब सरे उसकी वयाखयाओं में तथिाकधथित ब्ाह्मणवाद, पोंगापंथि्ाद, का चरेहरा भी रोप
दिया गया ।
गोस्ामी तुलसीदास की रचनाओं एवं वयस्तत् पर विसतृत एवं गहन मूलयांकन का आरमभ जलॉज्ण धग्यर्सन के लरेखन सरे होता है । इस अधययन एवं मूलयांकन में धग्यर्सन नरे वैज्ाधनक रीति सरे तुलसी पर चर्चा की है । 1885 में ्रेन की अंतरराष्ट्ीय ओरिएंटल कांग्रेस के सामनरे धग्यर्सन नरे ' हिन्दुसतान का मधयकालीन साहितय: विशरेष रूप सरे तुलसीदास ' विषयक लरेख प्रसतुत किया । इसमें लरेखक नरे गोस्ामी जी के जीवन- वृत्, रचनाओं एवं विचारधारा पर चर्चा की है । इन्हीं सूचनाओं को कालांतर में धग्यर्सन नरे 1889 में प्रकाशित अपनरे ग्रंथ ' माडर्न ्ना्ण्यूलर लिटररेचर ऑफ हिन्दुसतान ' में तुलसी पर लिखनरे में उपयोग किया । 1883 ' इंडियन: ए एंटिक्वेरी ' में धग्यर्सन का ' नोटस आन तुलसीदास ' प्रकाशित हुआ । यह तीन भागों में है । पहला अंश कवि की प्रमुख धतधथियों की गणना सरे संबंध रखता है । दूसरा, कृतियों पर आधरित है । इसमें कृतियों की प्रामाणिकता पर चर्चा के उपरांत उन रचनाओं की सूची दी गई है, जिन्हें लरेखक गोस्ामी जी की रचना मानता है । 6 छोटे ग्रंथों एवं 6 बड़े ग्रंथों; आकार की दृष्टि सरे, को कवि का स्ीकार करके शरेष उन सभी ग्रंथों को छोड़ दिया गया है, जिन्हें गोस्ामी सरे जोड़कर दरेखा गया थिा ।
लरेखक द्ारा स्ीकृत कवि की रचनाए इस प्रकार है- गीतावली, कवितावली या कध्त् रामायण, दोहावली या दोहा रामायण, चौपाई रामायण, सतसई, पंचरत्, श्री रामाज्ा संकट मोचन, विनय पधत्का, हनुमानबाहुक और कृष्णावली । तीसररे अंश में कवि के जीवन-वृत् सरे संबंध रखनरे वाली परंपराओं का अधययन एवं जनश्रुतियों का संकलन किया गया है ।
1897 में एशियाटिक सोसायटी आफ़ बंगाल की कार्यवाही मरे धग्यर्सन का एक अन्य नोट ' तुलसीदास के कध्त् रामायण की रचना धतधथि ' छपा । इसमें कवितावली के छंदों के आधार पर इसमें वर्णित महामारी को प्लेग माना गया है । इसी विषय पर धग्यर्सन का एक अन्य लरेख ' तुलसीदास और बनारस में प्लेग के विषय में दूसरा नोट ' शीर्षक सरे उसी पधत्का में आया ।
1903 में एक छोटा लरेख '' तुलसीदास-कवि और समाज सुधारक ' शीर्षक सरे रायल एशियाटिक सोसायटी के जनरल में प्रकाशित हुआ । इसमें कवि के दरेहांत संबंधी प्लेग वाली धरणा को धग्यर्सन नरे छोड़ दिया और तुलसी को एक समाज-सुधारक की भी छवि प्रदान की । 1907 में रलॉयल एशियाटिक सोसाइटी के जनरल में धग्यर्सन का लरेख ' आधुनिक हिन्दू धर्म और नरेसटोरियनों के प्रति ' शीर्षक सरे छपा । इसी लरेख में धग्यर्सन नरे भक्त मार्ग की उतपधत् का श्ररेय प्रकारांतर सरे इन्हीं नरेसटोरियन नामधरी ईसाई मिशनरियों को दिया ।
धयातवय है कि धग्यर्सन के इस विचार का तर्कपूर्ण ढंग सरे जोरदार खणडन आगरे चलकर भारतीय एवं पाशचातय दोनों विद्ानों नरे किया । कुछ नरे तो ततकाल उसी वर्ष, उसी पधत्का में ही किया । 1913 में ' ्या तुलसीदास कृत रामायण अनुवाद ग्रंथ है?'' शीर्षक लरेख इसी रलॉयल एशियाटिक सोसाइटी के जनरल में प्रकाशित हुआ । इसमें धग्यर्सन नरे बलिया सरे प्रकाशित होनरे वालरे एक संसकृत रामायण को ' रामचरितमानस ' का मूल और मानस को उसका अनुवाद कहरे जानरे का निराकरण किया है । तुलसीदास संबंधी धग्यर्सन का कदाचित अंतिम उल्लेखनीय लरेख ' तुलसीदास ' शीर्षक सरे 1921 में ' एनसाइ्लोपीडिया ऑफ ररेधलजन एणड एथिक्स ' में निकला । यह लरेख धग्यर्सन के तुलसी संबंधी समग् विचारों का सारांश प्रसतुत करता है ।
धग्यर्सन के पशचात भारतीय संसकृधत पर विचार के रिम में तुलसीदास को आधुनिक दृष्टि सरे दरेखनरे का संकेत विलसन के यहां भी मिलता है । ' द-सकेच ऑफ दि ररेधलजस सेक्टर ऑफ दि हिंदूज ' नामक विलसन का एक निबंध 1831 में ' एशियाटिक रिसर्च ' में पहली बार छपा । जैसा कि शीर्षक सरे सपष्ट है, इस निबंध में हिंदू धर्म पर चर्चा के रिम में तुलसी का धजरि आया है । अतः विलसन के यहां तुलसी की रचनाओं पर कोई विशरेष चर्चा नहीं हुई है, केवल कुछ रचनाओं का नामोल्लेख है । विलसन द्ारा प्रसतुत तुलसी का जीवन-वृत् नाभादास के विवरणों
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