Sept 2025_DA | Page 34

अधययन

सववेश सिंह

का उत्रकांड, तुलसी द्ारा मान्य भक्त और दर्शन का रामचरितमानस

निचोड़ है । यहां काकभुशुंडि, गरुण को राम भक्त का ज्ान दरेतरे हैं । यह भक्त अपनरे आप में अनोखी है । मानस के नाम पर मठों में प्रचलित जो भक्त आज दिखती है, ठीक वही मानस द्ारा अधिकृत नहीं है । काकभुशुंडि द्ारा गरुण को दी गई यह भक्त अमूर्त, अगोचर नहीं अपितु वया्हारिक रूप सरे मन के धनग्ह, उसकी पध्त्ता और सामाजिक सधरियता सरे जुड़ी है । यहां सांप्रदायिक भक्त का भुशुंडि निषरेध करतरे हैं, तथिा उसरे सामाजिक सामंजसय का हधथियार मानतरे हैं । किंतु मानस में यरे काकभुशुंडि आखिर हैं कौन? यह कितना आशचय्णजनक और महत्पूर्ण है कि जिस रामचरितमानस को दलित विरोधी ग्रंथ कहा जाता है, उसमें रामभक्त के स्वोच्च अधिकारी काकभुशुंडि हैं, जो शूद्र- ब्ाह्मण के, कर्म-फल-परिणाम और जातयांतर के चरि, में लय हैं-
' तरेधह कलजुग कोशलपुर जाई । जन्मत भएउ शूद्र तन पाई ।।'
प्रश्न उठता है कि मानस में यह अभिवयस्तयां अब तक ्यों छुपाई गईं थिी? दलित चरेतना को छुपानरे के पीछे ्या साजिश थिी? कौन लोग थिरे? ्या मंशाएं थिीं उनकी? दरअसल, इसरे समझनरे के लिए मानस की वयाखयाओं का इतिहास दरेखना पड़ेगा ।
धब्धटश काल में, तथिाकधथित आधुनिक शिक्षा के अनुरूप, धग्यर्सन आदि विद्ानों नरे तुलसी- साहितय का एक आंशिक पाठ्यरिम तैयार किया और साम्राजय्ाद के हितों के अनुरूप हिंदुसतान में इसका पठन-पाठन चलाया । इस पाठ्यरिम में तुलसी का साहितय, विशरेषकर मानस, मूलतः

रामचरितमानस की दलित िरेतना

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