उन्होंनरे कहा कि संसद में पहलरे सरे ही कलयारकारी उपायों की सधरिय निगरानी के लिए इस तरह की समितियां हैं, लरेधकन कुछ राजयों में ऐसी संस्थागत वय्स्थाओं का अभाव जमीनी सतर पर निगरानी की प्रभावशीलता को सीमित करता है । ऐसी समितियां न केवल नीतियों और योजनाओं के कार्यान्वयन की नियमित समीक्षा को सुगम बनाएँगी, िसलक यह भी सुधनसशचत करेंगी कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदायों की चिंताओं का समयबद्ध तरीके सरे समाधान किया जाए । उन्होंनरे राजय विधानमंडलों सरे इन समितियों के गठन में अग्री भूमिका निभानरे का आह्ान किया, जिससरे जवाबदरेही ढांचरे को मज़बूत किया जा सके और कलयारकारी पहलों को लोगों के और करीब लाया जा सके ।
उन्होंनरे कहा कि भारत नरे अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों को मज़बूत करनरे और यह सुधनसशचत करनरे के लिए
वयापक सुधार किए हैं कि वह वर्तमान आकांक्षाओं के अनुरूप हों । उन्होंनरे कहा कि समितियां बजटीय प्रावधानों की सूक्मता सरे जांच करके, कलयारकारी योजनाओं के प्रदर्शन की समीक्षा करके और सुधार सुझाकर इस प्रधरिया में महत्पूर्ण भूमिका निभाती हैं । यह विसतृत जांच न केवल शासन में पारदर्शिता िढ़ाती है, िसलक जनता के प्रति सरकार की जवाबदरेही भी सुधनसशचत करती है । महत्पूर्ण बात यह है कि उनकी रचनातमक सिफारिशें अ्सर सरकारों को अधिकारों का पुनर्मूलयांकन करनरे, उनके अनुरूप योजनाएं बनानरे और नीतियों को सुवय्स्थित करनरे में मार्गदर्शन प्रदान करती हैं ताकि वह वंचित समुदायों की आवशयकताओं को िरेहतर ढंग सरे प्रतिबिंबित कर सकें । उन्होंनरे इस बात पर ज़ोर दिया कि सम्मेलन के दौरान गहन चर्चाओं के माधयम सरे, प्रतिभागियों नरे इस बात पर विचार-विमर्श किया कि संवैधानिक प्रावधानों, बजटीय आवंटन और कलयारकारी योजनाओं का लाभ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के सदसयों तक कैसरे पहुँचाया जा सकता है, जिससरे ्रे वासत् में सश्त और आतमधनभ्णर बन सकें ।
उन्होंनरे इस तरह के रोडमैप में विकास के सभी पहलुओं-सामाजिक, शैक्षिक, आधथि्णक और राजनीतिक-को शामिल किया जाना चाहिए ताकि 2047 तक भारत बाबासाहब भीमराव आंिरेडकर के स्प्न, एक समतामूलक, न्यायसंगत और समा्रेशी समाज, को साकार कर सके । यह केवल एक आकांक्षा नहीं, िसलक एक राष्ट्ीय दायित् है और आशा वय्त की कि राजय और राष्ट्ीय, दोनों सतरों पर समितियां इस मिशन के केन्द्र में रहेंगी । इन समितियों सरे प्रापत सिफारिशों को आलोचना के बजाय, सुधार के लिए रचनातमक मार्गदर्शन के रूप में दरेखा जाना चाहिए । जब सरकारें और समितियां इसी भावना सरे मिलकर काम करती हैं, तो परिणाम हमरेशा अधिक स्थायी और प्रभावी होतरे हैं । उन्होंनरे आगरे कहा कि शिक्षा और प्रौद्ोधगकी अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सशक्तकरण के प्ररेरक हैं, और इन साधनों का
उपयोग समुदायों और राष्ट् को सश्त बनानरे के लिए करनरे का आह्ान किया ।
लोकसभा अधयक्ष बिरला नरे विश्ास वय्त किया कि " भुवनरेश्र एजेंडा-2025 " आनरे वालरे ्षषों में संसद और राजय विधानमंडलों के कायषों का मार्गदर्शन करतरे हुए, कार्ययोजना के रूप में कार्य कररेगा । उन्होंनरे कहा कि भगवान जगन्नाथ के आशीर्वाद और बाबासाहब आंिरेडकर के स्प्न के साथि भारत 2047 तक एक विकसित भारत के निर्माण की ओर आतमध्श्ास सरे आगरे िढ़ेगा, जहां अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का प्रत्येक सदसय सममान, समानता और न्याय के साथि रहरेगा ।
दो दिवसीय सम्मेलन में ओडिशा के मुखय मंत्ी मोहन चरण माझी, केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्ी जुएल ओराम, केंद्रीय शिक्षा मंत्ी धममेंद्र प्रधान, राजय सभा के उपसभापति हरिवंश तथिा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कलयार संबंधी संसदीय समिति के सभापति डा, फगगन सिंह कुलस्ते नरे भी विशिष्ट सभा को संबोधित किया । सम्मेलन में संसद और राजय एवं संघ राजय क्षेत्र विधानसभाओं में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कलयार संबंधी समितियों के सभापति और सदसय, ओडिशा सरकार के मंत्ी और ओडिशा विधान सभा के सदसय उदघाटन समारोह में उपस्थित थिरे । उदघाटन सत् के दौरान, ओडिशा विधान सभा की अधयक्ष श्रीमती सुरमा पाढ़ी नरे स्ागत भाषण दिया और ओडिशा विधान सभा के उपाधयक्ष भवानी शंकर भोई नरे धन्यवाद ज्ाधपत किया ।
जानकारी हो कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कलयार समितियों के सभापतियों का पहला सम्मेलन 1976 में नई दिलली में आयोजित किया गया थिा । इसके बाद, 1979, 1983, 1987 और 2001 में सम्मेलन आयोजित किए गए, जिनमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कलयार और संवैधानिक सुरक्षोपायों के ध्धभन् आयामों पर गहन चर्चा की गई । पहली बार इस सम्मेलन का आयोजन दिलली सरे बाहर किया गया । �
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