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कवर स्टोरी

बाद में संशोधन करके ््ि अधिनियम-1995 के माधयम सरे यह वय्स्था भी कर दी गई कि भारत में ््ि संपधत्यों( धार्मिक बंदोबसती) के प्रशासन को नियंधत्त करनरे के लिए एक ््ि धट्बयूनल होगा, जिसका अधिकार क्षेत्र और निर्णय अंतिम और बाधयकारी होगा । ््ि सरे जुड़े किसी भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही किसी भी सिविल कोर्ट के तहत नहीं होगी । इस प्रकार, ््ि धट्बयूनल के फैसलरे को किसी भी सिविल कोर्ट सरे ऊपर बनाया गया । इस प्रकार विचार कररे तो कांग्रेस सरकार नरे संविधान में अपनरे हितों के लिए जो परिवर्तन किया, उसका लाभ सिर्फ मुससलम समुदाय को ही मिला ।
संविधान में नहीं था मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
भारत के मूल संविधान का अगर गंभीरता सरे अधययन या ध््रेचना की जाए तो संविधान में मुससलम पर्सनल ललॉ बोर्ड का उल्लेख कहीं भी मिलता । तो फिर संविधान में मुससलम पर्सनल ललॉ बोर्ड कैसरे आ आया? यह धयान रखना
महत्पूर्ण है कि यह बोर्ड भारतीय संविधान का हिससा नहीं है, िसलक भारतीय संविधान के अनुचछेद-25 के तहत वयस्तगत कानूनों का एक हिससा है । चूंकि अनुचछेद-25 धार्मिक स्तंत्ता का अधिकार दरेता है और मुससलम पर्सनल ललॉ इस अधिकार के भीतर मुससलम समुदाय के वयस्तगत कानूनों के अनुप्रयोग को सुधनसशचत करता है, जिसरे ऑल इंडिया मुससलम पर्सनल ललॉ बोर्ड संरक्षित करता है ।
कांग्रेस प्रधानमंत्ी इंदिरा गांधी के कार्यकाल में मुससलम पर्सनल ललॉ बोर्ड का गठन 1973 में एक गैर-सरकारी संगठन के रूप में हुआ थिा । इसका उद्देशय वयस्तगत इसलामी कानूनों की रक्षा और प्रसार करना है । बोर्ड मुससलम समुदाय में विवाह, तलाक, उत्राधिकार और दान सरे संबंधित मामलों में मुससलम पर्सनल ललॉ( शरिया) के अनुप्रयोग की वकालत करता है । कांग्रेस के नरेताओं के सहयोग सरे बोर्ड इतना सर्वशक्तशाली बन गया, जो पूररे दरेश में हिन्दू विरोधी गतिविधियों को भी महिमामंडित करनरे में जुट गया । इतना ही नहीं, इसके माधयम सरे एक मुससलम पुरुष को बिना किसी औचितय की
अपरेक्षा किए चार पधत्यों सरे विवाह करनरे की अनुमति दी जानरे लगी । मुससलम समुदाय के हितों की रक्षा और प्रचार के नाम पर दरेश में हिन्दू विरोध को हवा दरेनरे वालरे बोर्ड के बाररे में कांग्रेस नरेता राहुल गांधी सहित विपक्ष के किसी भी नरेता बयान दरेनरे के लिए कभी आगरे नहीं आया है ।
संविधान में नहीं था अलपसंखयक बोर्ड
भारतीय संविधान में अलपसंखयक बोर्ड जैसरे किसी संस्थागत ढांचरे का कोई प्रावधान नहीं है । संविधान में धार्मिक और भाषाई अलपसंखयकों के अधिकारों को अनुचछेद-29 और 30 के तहत सुरक्षा प्रदान की गई है । इन अनुचछेदों के तहत, अलपसंखयकों को अपनी संसकृधत, भाषा और लिपि को बनाए रखनरे तथिा शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करनरे का मौलिक अधिकार दिया गया है । इस अधिकार की आड़ में संसद और राजय विधानमंडलों नरे कानून बनाकर राष्ट्ीय अलपसंखयक आयोग और राजय अलपसंखयक आयोगों की स्थापना
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