कांड आदि का वह ख़ूब विरोध करते रहे । दलित जीवन को रिासदी को उन्होंने बहुत गहराई से अभिव्यकत लक्या । दलित साहित्यकार प्ेमचिंद को दलित साहित्य के दा्यिे में लाना पसंद नहीं करते क्योंकि उनका मानना है कि प्ेमचिंद ने कभी भी दलित जीवन की पीड़ाओं को नहीं झेला- “ दलित साहित्य में प्ेमचिंद की परमपिा नहीं चिलने वाली है । दलितों के बारे में प्ेमचिंद
का सत्य लचिलड्या की आंख से देखा हुआ सत्य था । आज दलित अपने अनुभव से गु्ि कर लिख रहा है । दलितों को जो म्बूती मिली है वह डा . आंबेडकर से मिली है । जब डा . आंबेडकर ने दलितों के लिए मंदिरों के दरवा्े खोलने की लडाई लडी तब भी प्ेमचिंद , डा , आंबेडकर के साथ नहीं , गांधी के साथ खडे थे । बाद में डा . आंबेडकर ने कहा कि उनकी लडाई लसफ़्फ इतनी थी कि दलित भी भारती्य
हिन्दू समाज का हिससा हैं इसलिए उन्हें भी मन्त्दि जाने का हक़ होना चिाहिए ।
दलित विष्यक साहित्य को तीन सतिों पर समझा जा सकता है । पहला भोगे हुए ्य्ार्थ के आधार पर । दूसरा उनका लिखा ग्या जो साहित्य नहीं है । तीसरा सति लवचिारधारा का है । क्या प्गतिशील होकर दलित विष्यक साहित्य लिखा जा सकता है ? ्यह सवाल बहुत उलझा हुआ है
और बुलन्यादी भी है । क्योंकि लवचिारधारा के सति पर तो दलित साहित्यकार एवं आलोचिक , लचिंतक प्गतिशील ्यानी माकस्यवाद का भी बहुत महतव नहीं हैं । विख्यात दलित साहित्यकार माता प्साद का मानना है कि- " दलित साहित्य वह साहित्य है जिसमें वर्ण समाज में सामाजिक , धार्मिक , आर्थिक , शैलक्क और राजनीतिक दृन्ष्ट से दलित , शोषित , उतपीलडत , अपमानित , उपेलक्त , तिरसकृत , वंलचित , निरालश्त , परालश्त , बाधित ,
असपृश् ्य और असहा्य है , पर साहित्य की िचिनाएं हैं , वही दलित विष्यक साहित्य की श्ेणी में आता है । दलित विष्यक साहित्य वेदना , चिीख और छटपटाहट का साहित्य है ।"
दलित विष्यक साहित्य का विसताि हिन्दी साहित्य में आने के बाद ही हुआ । दलित विष्यक लेखन का आरंभ सबसे पहले मराठी भाषा में ही हुआ , जिसका आधार डा . आंबेडकर की वैचिारिकी और उनका जीवन संघर्ष है । मराठी भाषा में दो सलौ से अधिक दलित आतमकथा लिखी जा चिुकी हैं । हिन्दी के साथ ही अत््य भारती्य भाषाओं में आतमकथा बड़ी मारिा में लिखी जा रही हैं । आतमकथा पाठकों को तो अपने आपसे जोड़ा ही बल्कि उन्हें सोचिने पर भी विवश लक्या । दलितों ने सिर्फ़ लेखन के मध्यम से ही पाठकों का विसतृत संसार विकसित कर लल्या । दलितों द्ािा लिखा जा रहा साहित्य सिर्फ़ अभिव्यक्ति के लिए नहीं है बल्कि एक समपूण्य आंदोलन की तरह है । दलित लेखक समानता , सममान और अपनी आज़ादी के लिए लिख रहे हैं । जाति , नसल ्या रंग के आधार हो रहे भेदभाव को वह ख़तम करना चिाहता है । दलित विष्यक साहित्य चिाहता है कि समाज में धर्म , सत्ा दर्शन तथा जन्म के आधार पर किसी व्यक्ति की श्ेष्ठता घोषित न लक्या जाए । समपूण्य रूप में देखें तो ्यह जाति से मुक्ति का साहित्य है ।
डा . आंबेडकर दलित विष्यक साहित्य के आधार हैं । उनकी लवचिारधारा ही दलित कहालन्यों का प्ाण ततव है । उनका साहित्य और समपूण्य लेखन दलित जीवन को सममान और अधिकार दिलाने के लिए लिखा ग्या है । वह जाति व्यवस्ा को समूल नष्ट करना चिाहते थे तथा उसके नाम पर फैला्ये जा रहे सांप्दाल्यक परिवेश के भी लख़लाफ़ थे । दलित कहालन्यां दलित जीवन में जबरन भर दिए गए अपमान और तिरसकाि के विरोध में अपनी आवाज़ बुलंद करती हैं । साथ ही दलित समाज की अपनी विसंगलत्यों को भी अभिव्यकत करती हैं । जितने भी दलित साहित्यकारों ने समाज और साहित्य में अपना सममालनत स्ान बना्या है , सभी ने शिक्ा के
flracj 2024 47