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उलचित अवसर के लिए मंलरिमणडलों में भी पर्याप्त प्लतलनलितव मिलना चिाहिए । उनको भ्य था कि बहुमत के शासन में दलित वर्ग के हितों तथा अधिकारों की उपेक्ा होने की संभावना हो सकती है । किन्तु ्यलद दलित वर्ग को का ्यपालिका में जब पर्याप्त प्लतलनलितव मिलेगा तो वह अपने अधिकारों तथा हितों के प्लत होने वाली उपेक्ा को समा्त करने में सक्म होगा तथा अपने विकास के लिए विशेष नीलत्यों का निर्माण कर िचिनातमक का ्यकमों को शासन के माध्यम से सफलतापूर्वक लक्यान्त्वत लक्या जा सकता है ।
डा . आंबेडकर भारती्य समाज में न्सरि्यों की हीन दशा से काफी क्ुबि थे । उन्होंने उस साहित्य की कटु आलोचिना की जिसमें न्सरि्यों के प्लत भेद-भाव का दृन्ष्टकोण अपना्या ग्या । उन्होंने दलितों के उत्ान एवं प्गति के लिए
भी नारी समाज का उत्ान आवश्यक माना । उनका मानना था कि न्सरि्यों के सममानपूर्वक तथा सवतंरि जीवन के लिए शिक्ा बहुत महतवपूर्ण है । डा . आंबेडकर ने हमेशा सरिी- पुरूष समानता का व्यापक समर्थन लक्या । ्यही कारण है कि उन्होंने सवतंरि भारत के प््म विधिमंरिी रहते हुए ‘ हिंदू कोड बिल ’ संसद में प्सतुत करते सम्य हिन्दू न्सरि्यों के लिए त््या्य सममत व्यवस्ा बनाने के लिए इस विधे्यक में व्यापक प्ावधान रखे । भारती्य संविधान के निर्माण के सम्य में भी उन्होंने सरिी-पुरूष समानता को संवैधानिक दर्जा प्दान करवाने के गमभीि प्रयास किए ।
डा . आंबेडकर के सामाजिक लचित्तन में असपृ््यों , दलितों तथा शोषित वर्ग के उत्ान के लिए काफी दर्शन झलकता है । वह उनके
उत्ान के माध्यम से एक ऐसा आदर्श समाज स्ालपत करना चिाहते थे जिसमें समानता , सवतंरिता तथा भ्रातृतव के ततव समाज के आधारभूत सिद्धांत हों । डा . आंबेडकर एक महान सुधारक थे , जिन्होंने ततकालीन भारती्य समाज में प्रचलित अत््या्यपूर्ण व्यवस्ा में परिवर्तन तथा सामाजिक त््या्य की स्ापना के जबरदसत प्रयास किए । उन्होंने दलितों , पिछड़ों , असपृ््यों के विरूद्ध सलद्यों से हो रहे अत््या्य का न केवल सैद्धांतिक रूप से विरोध लक्या अपितु अपने का्य्य कलापों , आन्दोलनों के माध्यम से उन्होंने शोषित वर्ग में आतमबल तथा चिेतना जागृत करने का सराहनी्य प्रयास लक्या । इस प्कार डा . आंबेडकर का जीवन समर्पित लोगों के लिए सीखने तथा प्ेिणा का न्या स्ोत बन ग्या । �
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