Sept 2024_DA | Page 38

fparu

लेकिन अगर मनुसमृलत के साक््यों पर गलौि लक्या जा्ये तो दुष्प्रचार का षड्ंरि पूरी तरह उजागर हो जाता है । मनुसमृलत पर अगर ध्यान लद्या तो सचि कुछ और दिखाई देता है ।
मनुसमृलत उस काल का प्राचीन ग्ं् है जब जन्म से जाति व्यवस्ा के लवचिार का भी कोई अस्तितव नहीं था । अत : मनुसमृलत जन्मना समाज व्यवस्ा का कहीं भी समर्थन नहीं करती । महर्षि मनु ने मनुष््य के गुण- कर्म – सवभाव पर आधारित समाज व्यवस्ा की िचिना करके वेदों में परमातमा द्ािा दिए गए आदेश का ही पालन लक्या है । इसे वर्ण व्यवस्ा कहा ग्या है । वर्ण शबद “ वृञ ” धातु से बनता है , जिसका मतलब है चि्यन ्या चिुनना और सामात््यत : प्रयुकत शबद वरण भी ्यही अर्थ रखता है । मनुसमृलत में वर्ण व्यवस्ा को ही बता्या ग्या है और जाति व्यवस्ा को नहीं । इसका सबसे बडा प्माण ्यह है कि मनुसमृलत के प््म अध्या्य में कहीं भी जाति ्या गोरि शबद ही नहीं है , बल्कि वहां चिार वणथों की उतपलत् का वर्णन है । ्यलद जाति ्या गोरि का इतना ही महत्व होता तो मनु इसका उललेख अवश्य करते कि कलौन सी जाति रिाह्मणों से संबंधित है , कलौन सी क्लरि्यों से , कलौन सी वैश्यों और शूद्रों से । इस का मतलब हुआ कि स्वयं को जन्म से रिाह्मण ्या उच्च जाति का मानने वालों के पास इसका कोई प्माण नहीं है ।
मनुसमृलत ( 10.65 ) में कहा ग्या है कि रिाह्मण शूद्र बन सकता और शूद्र रिाह्मण हो सकता है । इसी प्कार क्लरि्य और वैश्य भी अपने वर्ण बदल सकते हैं । मनुसमृलत ( 9.335 ) में कहा ग्या है कि शरीर और मन से शुद्ध- पलवरि रहने वाला , उतकृष्ट लोगों के सानिध्य में रहने वाला , मधुरभाषी , अहंकार से रहित , अपने से उतकृष्ट वर्ण वालों की सेवा करने वाला शूद्र भी उत्म रिह्म जन्म और लद्ज वर्ण को प्ा्त कर लेता है । मनुसमृलत के अनेक ्लोक ्यह भी कहते हैं कि उच्च वर्ण का व्यक्ति भी ्यलद श्ेष्ट कर्म नहीं करता , तो शूद्र ( अलशलक्त ) बन जाता है ।
मनुसमृलत ( 2.103 ) में कहा ग्या है कि जो
मनुष््य नित्य प्ात : और सां्य ई्वि आराधना नहीं करता उसको शूद्र समझना चिाहिए । ( 2.172 ) जब तक व्यक्ति वेदों की शिक्ाओं में दीलक्त नहीं होता वह शूद्र के ही समान है । ( 4.245 ) रिाह्मण- वर्णस् व्यक्ति श्ेष्ट – अति श्ेष्ट व्यन्कत्यों का संग करते हुए और नीचि- नीचितर व्यक्तिओं का संग छोडकर अधिक श्ेष्ट बनता जाता है । इसके विपरीत आचििण से पतित होकर वह शूद्र बन जाता है । अतः सपष्ट है कि रिाह्मण उत्म कर्म करने वाले विद्ान व्यक्ति को कहते हैं और शूद्र का अर्थ अलशलक्त व्यक्ति है । इसका , किसी भी तरह जन्म से कोई समबत्ि नहीं है ।
मनुसमृलत के अनुसार तो आज भारत में कुछ अपवादों को छोडकर बाकी सारे लोग जो भ्रष्टाचिार , जातिवाद , सवा््य साधना , अत्िलव्वास , विवेकहीनता , लिंग-भेद , चिापलूसी , अनैतिकता इत्यादि में लल्त हैं , वे सभी शूद्र हैं । मनुसमृलत में कहा ग्या है कि भले ही कोई रिाह्मण हो , लेकिन अगर वह अभिवादन का शिष्टता से उत्ि देना नहीं जानता तो वह शूद्र ( अलशलक्त व्यक्ति ) ही है । इसी तरह शूद्र भले ही अलशलक्त हों तब भी उनसे कलौशल और उनका विशेष ज्ान प्ा्त लक्या जाना चिाहिए I
मनु की वर्ण व्यवस्ा जन्म से ही कोई वर्ण नहीं मानती । मनुसमृलत के अनुसार माता- पिता को बच्चों के बाल्यकाल में ही उनकी रूलचि और प्वृलत् को पहचिान कर रिाह्मण , क्लरि्य ्या वैश्य वर्ण का ज्ान और प्लशक्ण प्ा्त करने के लिए भेज देना चिाहिए । कई रिाह्मण माता-पिता अपने बच्चों को रिाह्मण ही बनाना चिाहते हैं परंतु इस के लिए व्यक्ति में रिह्मणोलचित गुण , कर्म , सवभाव का होना अति आवश्यक है । रिाह्मण वर्ण में जन्म लेने मारि से ्या रिाह्मणतव का प्लशक्ण किसी गुरुकुल में प्ा्त कर लेने से ही कोई रिाह्मण नहीं बन जाता , जब तक कि उसकी ्योग्यता , ज्ान और कर्म रिह्मणोलचित न हों ।
मनु के अनुसार मनुष््य का वासतलवक जन्म विद्ा प्राप्त के उपरांत ही होता है । जन्मतः प्त्येक मनुष््य शूद्र ्या अलशलक्त है । ज्ान और संसकािों से स्वयं को परिष्कृत कर ्योग्यता हासिल कर लेने पर ही उसका दूसरा जन्म होता है और वह लद्ज कहलाता है । शिक्ा प्राप्त में असमर्थ रहने वाले शूद्र ही रह जाते हैं और ्यह पूर्णत : गुणवत्ा पर आधारित व्यवस्ा है , इसका शारीरिक जन्म ्या अनुवांशिकता से कोई लेना- देना नहीं है । इसके विपरीत एक तथ्य ्यह भी है कि अगर कोई अपनी शिक्ा पूर्ण नहीं कर
38 flracj 2024