Sept 2024_DA | Page 37

। चिूंकि हिन्दुतव सबसे प्राचीन संसकृलत और सभी िमथों का आदिस्ोत है , इसी पर व्यवस्ा को भ्रष्ट करने का आक्ेप मढ़ा जाता है । ्यलद इन दो कुप््ाओं को हम ढोते रहते हैं तो समाज इतना दुर्बल हो जाएगा कि विभिन्न समप्दा्यों और फिरकों में बिखरता रहेगा जिससे देश कमजोर होगा और टटूटेगा ।
अपनी कमजोरी और विकृलत्यों के बारे में हमने इतिहास से कोई शिक्ा नहीं ली है । वर्तमान में में भी कुछ लशलक्त और बुद्धिवादी कहे जाने वाले लोग इन दो कुप््ाओं का समर्थन करते हैं । जन्म से ही ऊँचिेपन का भाव इतना हावी है कि वह किसी समझदार को भी पागल बना दे । इस वैचिारिक संकमण से ग्सत कुछ लोग इन कुप््ाओं का समर्थन करने के लिए प्राचीन शासरिों का हवाला देते हैं जिस में समाज व्यवस्ा देनेवाली प्राचीनतम मनुसमृलत को सबसे अधिक केंद्र बना्या जाता है । वेदों को भी इस कुटिलता
में फंसा्या ग्या है ।
मनुसमृलत जो सृन्ष्ट में नीति और धर्म ( कानून ) का निर्धारण करने वाला सबसे पहला ग्ं् माना ग्या है , उस को घोर जाति प््ा को बढ़ावा देने वाला भी बता्या जा रहा है । स्थिति ्यह है कि मनुसमृलत को वैदिक संसकृलत की सबसे अधिक विवादित पुसतकों में बता्या जाता है और पूरा का पूरा दलित आन्दोलन ‘ मनुवाद ' के विरोध पर ही खडा हुआ है । मनु जाति प््ा के समर्थकों के ना्यक हैं तो दलित नेताओं ने उन्हें खलना्यक के सांचिे में ढाल रखा है । पिछडे तबकों के प्लत प्यार का दिखावा कर सवा््य की रोलट्यां सेकने के लिए ही दलित नेताओं द्ािा मनुसमृलत जलाई जाती रही है । अपनी विकृत भावनाओं को पूरा करने के लिए नीचिी जालत्यों पर अत्याचिार करने वाले , एक सींग वाले विद्ान राक्स के रूप में भी मनु को चित्रित लक्या ग्या है । हिन्दुतव और वेदों को
गालल्यां देने वाले कथित सुधारवालद्यों के लिए तो मनुसमृलत एक पसंदीदा साधन बन ग्या है । लविमटी वा्यिस पीढ़ियों से हिन्दुओं के िमाांतरण में इससे फ़ायदा उठाते आए हैं जो आज भी जारी है । ध्यान देने वाली बात ्यह है कि मनु की निंदा करने वाले इन लोगों ने मनुसमृलत को कभी गंभीरता से पढ़ा ही नहीं है ।
दूसरी ओर जाती्य घमंड में चिूर और उच्चता में अकडे हुए कुछ लोगों के लिए मनुसमृलत एक ऐसा धार्मिक ग्ं् है जो उन्हें एक विशिष्ट वर्ग में जन्म न लेने वाले लोगों के प्लत सही व्यवहार नहीं करने का अधिकार और अनुमति देता है । ऐसे लोग मनुसमृलत से कुछ एक गलत और भ्रष्ट ्लोकों का हवाला देकर जालतप््ा को उलचित बताते हैं पर स्वयं की अनुकूलता और सवा््य के लिए ्यह भूलते हैं कि वह जो कह रहे हैं उसे के बिलकुल विपरीत अनेक ्लोक हैं । इन दोनों शन्कत्यों के बीचि संघर्ष ने आज भारत में लनचिले सति की राजनीति को जन्म लद्या है ।
भारतवर्ष पर लगातार पिछले हजार वषथों से होते आ रहे आकमणों के लिए भी ्यही जिममेदार है । सलद्यों तक नरपिशाचि , गो-हत्यारे और पालप्यों से ्यह पावन धरती शासित रही । ्यही अतार्किक जालतप््ा ही 1947 में हमारे देश के बंटवारे का प्मुख कारण बनी । भारत कभी लव्वगुरु और चिकवतटी सम्राटों का देश था । आज भी भारत में असीम क्मता और बुद्धि धन है , लफ़ि भी हम समृद्धि और सामर्थ्य की ओर अपने देश को नहीं ले जा पाए और निर्बल और निराधार खडे हैं । इसका प्मुख कारण ्यह मलिन जाति प््ा है । इसलिए मनुसमृलत की सही परिपेक््य में जांचि – परख़ अत्यंत आवश्यक हो जाती है I
मनुसमृलत को लेकर लगा्ये जाने वाले तीन मुख्य आक्ेप ्यह है कि मनु ने जन्म के आधार पर जालतप््ा का निर्माण लक्या , मनु ने शूद्रों के लिए कठोर दंड का विधान लक्या और ऊँचिी जाति खासकर रिाह्मणों के लिए विशेष प्ावधान रखे और मनु नारी का विरोधी था और उनका तिरसकाि करता था । उसने न्सरि्यों के लिए पुरुषों से कम अधिकार का विधान लक्या ।
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