पा्या तो वह दुष्ट नहीं हो जाता । उस के कृत्य ्यलद भले हैं तो वह अचछा इन्सान कहा जाएगा और अगर वह शिक्ा भी पूरी कर ले तो वह भी लद्ज गिना जाएगा । अत : शूद्र मारि एक विशेषण है , किसी जाति विशेष का नाम नहीं । किसी व्यक्ति का जन्म ्यलद ऐसे कुल में हुआ हो , जो समाज में आर्थिक ्या अत््य दृन्ष्ट से पनप न पा्या हो तो उस व्यक्ति को केवल कुल के कारण पिछडना न पडे और वह अपनी प्गति से वंलचित न रह जाए , इसके लिए भी महर्षि मनु ने लन्यम निर्धारित किए हैं ।
रिाह्मण , क्लरि्य , वैश्य और शूद्र वर्ण की सैद्धांतिक अवधारणा गुणों के आधार पर है , जन्म के आधार पर नहीं । ्यह बात लसफ़्फ कहने के लिए ही नहीं है , प्राचीन सम्य में इस का व्यवहार में चिलन था । जब से इस गुणों पर आधारित वैज्ालनक व्यवस्ा को हमारे लदगभ्रमित पुरखों ने जन्म आधारित व्यवस्ा में बदला है , तब से ही हम पर आफत आ पडी है जिस का सामना आज भी कर रहें हैं ।
मनु परम मानवी्य थे । वे जानते थे कि सभी शूद्र जानबूझ कर शिक्ा की उपेक्ा नहीं कर सकते । जो किसी भी कारण से जीवन के प््म पर्व में ज्ान और शिक्ा से वंलचित रह ग्या हो , उसे जीवन
भर इसकी स्ा न भुगतनी पडे इसलिए वे समाज में शूद्रों के लिए उलचित सममान का विधान करते हैं । उन्होंने शूद्रों के प्लत कभी अपमान सूचिक शबदों का प्रयोग नहीं लक्या , बल्कि मनुसमृलत में कई स्ानों पर शूद्रों के लिए अत्यंत सममानजनक शबद आए हैं । मनु की दृन्ष्ट में ज्ान और शिक्ा के अभाव में शूद्र समाज का सबसे अबोध घटक है , जो परिस्थितिवश भटक सकता है । अत : वे समाज को उसके प्लत अधिक सहृद्यता और सहानुभूति रखने को कहते हैं ।
वासतव में देखा जा्ये तो मनु को जन्म आधारित जाति – व्यवस्ा का जनक मानना निराधार है । इसके विपरीत मनु मनुष््य की पहचिान में जन्म ्या कुल की सखत उपेक्ा करते हैं । मनु की वर्ण व्यवस्ा पूरी तरह गुणवत्ा पर टिकी हुई है । प्त्येक मनुष््य में चिारों वर्ण हैं-रिाह्मण , क्लरि्य , वैश्य और शूद्र । मनु ने ऐसा प्रयत्न लक्या है कि प्त्येक मनुष््य में लवद्मान जो सबसे सशकत वर्ण है-जैसे किसी में रिाह्मणतव ज्यादा है , किसी में क्लरि्यतव , इत्यादि का विकास हो और ्यह विकास पूरे समाज के विकास में सहा्यक हो ।
आज मिलने वाली मनुसमृलत में बडी मारिा में मनमाने प्क्ेप पाए जाते हैं , जो बहुत बाद के
काल में मिलाए गए । वर्तमान मनुसमृलत लगभग आधी नकली है । लसफ़्फ मनुसमृलत ही प्लक््त नहीं है । वेदों को छोड कर जो अपनी अद्भुत सवि और पाठ िक्ण पद्धलत्यों के कारण आज भी अपने मूल सवरुप में है , लगभग अत््य सभी समप्दा्यों के ग्ं्ों में सवाभाविकता से परिवर्तन , मिलावट की जा सकती है ।
इसमें कोई आ्चि ्य नहीं होना चिाहिए कि मनुसमृलत जो सामाजिक व्यवस्ाओं पर सबसे प्राचीन ग्ं् है उसमें भी अनेक परिवर्तन किए गए । ्यह समभावना अधिक इसलिए है कि मनुसमृलत सर्व साधारण के दैनिक जीवन को , पूरे समाज को और राष्ट्र की राजनीति को प्भावित करने वाला ग्ं् रहा है । ्यलद देखा जाए तो सलद्यों तक वह एक प्कार से मनुष््य जाति का संविधान ही रहा है । इसलिए धूतथों और मककािों के लिए मनु समृलत में प्क्ेप करने के बहुत सारे प्लोभन थे । डा . आंबेडकर भी प्राचीन ग्ं्ों में मिलावट सवीकार करते हैं । वह रामा्यण , महाभारत , गीता , पुराण और वेदों तक में भी प्क्ेप मानते हैं ।
महर्षि द्यानंद ने जिस समाज की िचिना का सपना देखा , था वह महर्षि मनु की वर्ण व्यवस्ा के अनुसार ही था । उन्होंने प्लक््त हिससों को छोड कर अपने ग्ं्ों में सर्वाधिक प्माण ( 514 ्लोक ) मनुसमृलत से दिए हैं । मूल मनुसमृलत वेदों की मात््यताओं पर आधारित है , पर आज मनुसमृलत का विरोध उनके द्ािा लक्या जा रहा है जिन्होंने मनुसमृलत को कभी गंभीरता से पढ़ा नहीं और केवल वोट बैंक की राजनीति के चिलते विरोध कर रहे हैं । सही मनुवाद जन्म आधारित जाति प््ा को पूरी तरह नकारता है और इसका पक् लेने वाले के लिए कठोर दणड का विधान करता है । जो लोग बाकी लोगों से सभी मा्यनों में समान हैं , उनके लिए , सही मनुवाद ' दलित ' शबद के प्रयोग के ख़िलाफ़ है । इसलिए सभी को मिलकर जन्म आधारित जातिवाद को समूल नष्ट कर , वासतलवक मनुवाद की गुणों पर आधारित कर्मणा वर्ण व्यवस्ा को लाकर मानवता और राष्ट्र का िक्ण करने के लिए आगे आना ही होगा । �
flracj 2024 39