का साहस नहीं रखता । ्यह सब आराम तलब हो चिुके हैं । सवामी श्द्धानंद जी महाराज जैसे महापुरुषों का अनुकरण करने की ओर तो ्यह आंख उठाकर तक नहीं देख सकते । इनकी राजनीतिक इचछाशक्ति केवल ्यहीं तक है कि वह किसी प्कार हाथ उठाने वाले सांसद बनकर लोकसभा ्या राज्यसभा में जाकर बैठ जाएं ।
हम ‘ हाथ उठाने वाले सांसद ’ उन्हें इसलिए कह रहे हैं कि ्यह किसी राजनीतिक दल के नेता के तलवे चिाटकर उससे किसी प्कार उसकी पाटटी का टिकट लेकर संसद में पहुंचिते हैं और वहां फिर अपने नेता को खुश करने के लिए उसके भाषण पर मेज थपथपाते हैं ्या फिर करतल धवलन से उसकी बातों में अपनी सहमति के सवि मिलाते हैं । इनका लचिंतन और इनकी सोचि अपने नेता के लचिंतन और सोचि में इस प्कार लिपट जाती है कि उसे अलग करके देखना तक असंभव हो जाता है । इस प्कार देश का वर्तमान लोकतांलरिक ढांचिा भी राजनीतिक गुलामों को जन्म देने में सहा्यक हुआ है ।
हमारे सांसदों की ‘ ्यस- मैन ’ होने की प्वृलत् है । जो केवल अपने नेता के लिए राज्यसभा और लोकसभा में काम करते हुए दिखाई देते हैं । देश हित में काम करना उनके एजेंडा में कहीं दूर दूर तक सम्मिलित नहीं है । इन जनप्लतलनलि्यों को देश के विधान मंडलों में भेजकर हम केवल गुलामों को देश के राजनीतिक विधान मंडलों में
भेज रहे हैं । ्यह सर्वमात््य सत्य है कि गुलामों से कभी कोई बडा काम नहीं हो सकता । कांग्ेस ने कभी भी दलित से मुसलमान ्या ईसाई बने लोगों को फिर से हिंदू बनाने का काम नहीं लक्या । जो लोग हिंदू दलित से इसलाम ्या ईसाइ्यत में धर्मान्तरित हो गए , उन्हें कांग्ेस ने जाने लद्या । इस प्कार दलितों को ही मिटाकर और उन्हें लविमटी बन जाने देने की खुली छटूट देकर कांग्ेस ने देश को तोडने की प्वृलत् को भी बढ़ावा लद्या ।
इसके विपरीत सवामी श्द्धानंद जी महाराज ने दलितों को आ ्य समाज में लाकर उन्हें संसकारित बनाने का का ्य लक्या । ऐसा करने के पीछे सवामी जी महाराज का एक ही उद्े््य था कि जब वे आ ्य समाज में दीलक्त हो जाएंगे तो हिंदू समाज के लोग उन्हें मंदिरों में प्वेश करने की अनुमति देंगे , पर ऐसा हुआ नहीं । तब सवामी श्द्धानंद जी ने बहुत दुखी होकर “ लीडर ” में 11 मई 1924 को लिखा था कि इसका मतलब ्यह है कि दलित वगथों का कोई भी आदमी जब तक हिंदू समाज और धर्म का परित्याग नहीं करेगा तब तक अपनी सामाजिक अक्मताओं से छुटकारा नहीं पा सकता ।
अपने दलित भाइ्यों के साथ छुआछटूत भेदभाव और सामाजिक अत्याचिार करने वाले हिंदुओं को लताडते हुए सवामी श्द्धानंद जी ने ‘ हिंदू संगठन ’ में ( 1924 ) लिखा था कि जो लोग अपने ही समाज के एक तिहाई लोगों को
गुलाम बनाए बनाए हुए हैं और उन्हें पैरों तले कुचिल रहे हैं , उन्हें विदेलश्यों द्ािा किए गए अत्याचिारों के विरुद्ध शिका्यत करने का कोई अधिकार नहीं है । सवामी जी महाराज ने मद्रास में एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि हिन्दुओं , अपने दलित कहे जाने वाले बंधुओं को मान-सममान देकर उन्हें अपना अभिन्न अंग समझो । असपृ््यता का परित्याग करो । ्यह पाप है और ्यह रोग तुमहें ले डटूबेगा । तुम ्यलद आज इन्हें नहीं अपनाओगे तो फिर एक सम्य ऐसा आएगा जब तुम इन्हें अपने में मिलाना चिाहोगे परंतु ्यह तुमहािे निकट नहीं आएंगे ।
सवामी श्द्धानंद जी महाराज का उपरोकत कथन आज सत्य सिद्ध हो रहा है । हिंदू ने अपनी परंपरागत मूर्खताओं को त्यागने का नाम नहीं लल्या और राजनीति दलितों के प्लत पूर्णत्या उदासीन बनी रही । उसका परिणाम ्यह हुआ कि दलित रूपी खेत पूरी तरह इसलाम और ईसाइ्यत को सौंप लद्या ग्या । एक प्कार से दलितों को इन दोनों विदेशी धर्मावलंलब्यों को पट्टे पर दे लद्या ग्या । अब पट्टे पर दी गई चिीज को फिर से वापस लेना हिंदू समाज के लिए पूर्णत्या असंभव होता जा रहा है । अपने ही लोग अर्थात अपने ही समाज के दलित जब मुस्लिम ्या ईसाई बनते हैं तो वे भारत के लोगों के प्लत और भारती्यता के प्लत बहुत ही अधिक दुर्भाव रखते देखे जाते हैं ।
्यलद कांग्ेस सम्य रहते आ ्य समाज के नेता सवामी श्द्धानंद जी महाराज के परामर्श को सवीकार कर लेती और अपनी पूर्ण राजनीतिक इचछाशक्ति का परिचि्य देते हुए समाज में दलितों के सममान के लिए जमीन पर लडाई लडती , देश के राजनीतिक दल इन दलितों को अपने लिए वोट बैंक ना मानकर उनके कल्याण के लिए का ्य करते और हिंदू समाज व राजनीति मिलकर इन्हे इसलाम और ईसाइ्यत को पट्टे पर ना देते तो आज देश का हिंदू समाज बहुत अधिक मजबूत होता । सम्य अभी भी है ्यलद अब भी हमने स्थिति परिन्स्लत्यों को संभाल लल्या तो आज भी हम एक मजबूत भारत का निर्माण करने में सफल हो सकते हैं । �
flracj 2024 35