Sept 2024_DA | Page 15

मुस्लिम लीग पहले तो भारत के सवतंरिता आंदोलन में हिससा लेने का ढोंग करती रही , पर जब सत्ा सामने दिखने लगी तो एक नए राष्ट्र के निर्माण का एजेंडा लेकर मुस्लिम लीग ने भारत के टुकड़े करने में देर नहीं की । देश में मजहब के आधार पर राजनीति और सामाजिक सति पर कट्टरवाद और सामप्दाल्यकता को पैदा करने और पोषित करने में काम मुस्लिम लीग ने लक्या I
सत्ा प्ाप्ति के ध्ुवीकरण में दलित वर्ग बना आकर्षण का कें द्र
भारत में सवतंरि आंदोलन शुरू होने से पहले ही हिन्दू जाति में एक न्या वर्ग सामने आ चिुका
था । इस वर्ग को असवचछ कार्यों को करने के कारण अ्पृ््य समझा जाता था । हिन्दू समाज का ्यह वह वर्ग था जिसकी उतपलत् में विदेशी मुस्लिम आकांता आकमणकारि्यों एवं शासकों का हाथ था और अंग्ेजी शासनकाल आने तक मुग़ल काल तक असवचछ कार्यों में बलपूर्वक लगा दिए गए और अ्पृ््य समझे जानी वाली हिन्दू जनसंख्या बहुत ही जटिल एवं द्यनी्य हालात में अपना जीवन्यापन कर रही थी । जब अंग्ेजी राज आ्या तो अ्पृ््य वर्ग को उन अंग्ेजों ने दलित का नाम दे लद्या , जिन्होंने न केवल भारत को दास बनाने का काम लक्या , बल्कि इसे आर्थिक रूप से तबाह भी कर लद्या था । दलित चिेतना को अपूर्व धार देनेवाले और दलित
समाज के बलौलद्धक गुरु बाबासाहब डा . भीम राव अंबेडकर ने भी सबसे पहले अंग्ेजों को समझाने का प्रयास लक्या , साथ ही दलित हितों की लचिंता भी की । परन्तु भारत में मलौजूद दलित जनसंख्या राजनीतिक रूप से शासन एवं सत्ा के जनमत की दृन्ष्ट से बहुत ही सक्म मानी जाती थी और ्यही कारण रहा कि अंग्ेजी शासकों के साथ ही कांग्ेस , मुस्लिम लीग सहित अत््य दलों के लिए दलित समाज को सामात््य हिन्दू समाज से अलग करके अपने साथ मिलाने की होड़ मचि ग्यी । इसी होड़ के परिणामसवरूप अंग्ेजी शासन में दलितों को कुछ अधिकार मिले , शिक्ा का प्काश उन तक पहुंचिा और उन्हें सरकार के सामने प्लतलनलितव करने का अवसर भी मिला । चितुर अंग्ेज शासकों ने एक ओर हिन्दू समाज के सामात््य लोगों को साधा तो दूसरी ओर तथाकथित लनचिली जालत्यों को अपनी और करने के लिए प्रयास लक्ये ।
राजनीतिक समर्थन लेने के लिए दलितों को साथ जरूर रखा ग्या , उनकी कुछ सहा्यता भी की गई , लेकिन उनके अंदर नेतृतव को उभरने नहीं लद्या ग्या । अंग्ेजों ने दलितों का अपने हितों के लिए भरपूर उप्योग लक्या और ्यही दशा मुस्लिम लीग एवं अत््य भाजपा विरोधी दलों के भी रहे । देश की दलित जनसंख्या को सभी ने अपने अपने ढंग से उप्योग ही लक्या । सवतंरिता के बाद भी दलितों की स्थिति में कोई खास परिवर्तन तो नहीं हुआ और दलित समाज के वोट हासिल करने के लिए हर राजनीतिक दलों के लिए आंख में धूल झोंकने की दृन्ष्ट से तथाकथित दलित एजेंडा उनकी पहली प्ा्लमकता बन ग्या I
दलित-मुस्लिम गठजोड़ के लिए जिन्ा और गांधी में मची होड़
सवतंरिता आंदोलन के दलौिान जब पाकिसतान बनाने का अलभ्यान प्ािमभ हुआ तो दलित समाज को अपनी और खींचिने के लिए जिन्ना और महातमा गांधी के बीचि आपस में होड़ मचि ग्यी । महातमा गांधी को उन नेताओं में गिना जाता है , जिन्होंने अछटूत प््ा एवं समूचिे जाति-भेद को
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