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सवतंरिता आंदोलन में सम्मिलित करने में असफल रही । क्योंकि उस सम्य मुसलमानों का प्लतलनलितव मुस्लिम लीग कर रही थी और मुस्लिम लीग सवतंरिता आंदोलन में सहभागी नहीं थी । यद्यपि कांग्ेस , अंग्ेजों को भारत छोडने के लल्ये बाध्य करने पर सफल रही । किंतु वह सामप्दाल्यक रूप से राष्ट्र का एकीकरण नहीं कर सकी । विभाजन के संबंध में कांग्ेस की सोचि संतुलित नहीं रही । उसके नेताओं द्ािा लद्ये जा रहे वकतव्यों में भी ्यह बात परिललक्त हो रही थी कि उनमें विभाजन के संबंध में उप्युकत एवं दूरदर्शितापूर्ण समझ का अभाव है । कांग्ेस विभाजन का बिलकुल सटीक आकलन करने में भी असफल रही और कांग्ेस की नीलत्यों की वजह से दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल को जिन्ना ने जो सपने दिखाए , उन्होंने उन सपनों पर आंख बंद करके भरोसा कर लल्या । परिणाम दलितों के रकतपात के रूप में देश ने देखा ।
वामपंथ की घातक विचारधारा
वामपंथी दलों पर दृन्ष्ट डाली जाए तो वामपंथ की लवचिारधारा जिहादी मानसिकता और लवचिारधारा से भी अधिक घातक है । वामपंथी कुतर्क और अनर्गल प्लाप के स्वयंभू ठेकेदार हैं । रकतिंजित कांलत के नाम पर इस लवचिारधारा ने जितना खून बहा्या है , मानवता का जितना गला घोंटा है , उतना शा्यद ही किसी अत््य लवचिारधारा ने लक्या हो । रूस और चिीन पोषित इस लवचिारधारा ने अपनी विसतािवादी नीति के तहत इसके प्रचार-प्सार के लिए कितने घिनलौने हथकंडे अपनाए । सवतंरिता आंदोलन के सम्य नेहरु जी के रूप में भारत की जड़ों और संसकािों से कटा-छठा व्यक्ति , जो कि दुर्भाग्य से ताकतवर भी था , वामपंल््यों को अपने लवचिारों के वाहक के रूप में सर्वाधिक उप्युकत लगा और उनकी इसी कमज़ोरी का फ़ा्यदा उठाकर वामपंल््यों ने सभी अकादमिक-सालहन्त्यक- सांसकृलतक ्या अत््य प्मुख संस्ाओं के शीर्ष पदों पर अपने वाम लवचिार के लोगों को बिठाना शुरू कर लद्या , जो उनकी बेटी ‘ इंदिरा ’ के का ्यकाल तक लगातार चिलता रहा ।
भारत में तो वामपंल््यों का इतिहास वामपंथ के उद्भव-काल से ही देश और संसकृलत विरोधी रहा है , क्योंकि भारत की सनातन समत्व्यवादी जीवन-दृन्ष्ट और दर्शन इसके फलने-फूलने के लिए अनुकूल नहीं है । इसलिए वामपंथी दलों ने भारती्य संसकृलत और जीवन-दर्शन के प्भावी चिलन के बीचि इनकी दाल नहीं गलने वाली थी , इसलिए वामपंल््यों ने बड़े लन्योजित ढंग से भारती्य संसकृलत और सनातन जीवन-मूल्यों पर हमले शुरू किए । जब तक राष्ट्री्य राजनीति में , नेतृतव गांधी-सुभाष जैसे राष्ट्रवालद्यों के हाथ रहा , इनकी एक न चिली और न ही जनसामात््य ने इन्हें समर्थन लद्या । राष्ट्र-विरोधी सोचि के कारण ही नेताजी सुभाषचित्द्र बोस जैसे प्खर
देशभकत राष्ट्रनेताओं ने इन्हें कभी महतव नहीं लद्या और अपने हितों के लिए भारत से गद्ािी करना वामपंल््यों के चिरिरि में देखा जा सकता है ।
अब अगर मुस्लिम लीग की बात की जाए तो ्यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत जैसे सनातन देश में विदेशी आकांता मुस्लिम शासक इसलाम को लेकर हिन्दुस्ान में आए और उनकी कूि धर्मान्तरण की नीलत्यों एवं लक्याकलापों ने भारत में इसलाम मजहब को फलने-फूलने में अपना ्योगदान लक्या । भारत में मुस्लिम मजहब का प्वेश और फिर मुस्लिम मजहब के आधार पर अलग पाकिसतान का निर्माण मुस्लिम लीग का ही कारनामा कहा जा सकता है । हालांकि
14 flracj 2024