Sept 2024_DA | Page 13

पाकिसतान बनाने के लिए पूरी ताकत से जुट गए । पाकिसतान बनाने के लिए जिन्ना ने दलितों को अपना मोहरा बना्या और दलितों को उनके कल्याण के नाम पर पाकिसतान में बसने के लिए प्ेरित लक्या । पर क्या पाकिसतान बनने के बाद दलितों का कल्याण हुआ ? ्या फिर दलितों को बरगला कर उनका उप्योग अपने संकीर्ण हितों को पूरा करने के लिए लक्या ग्या ? भारत में दलित-मुस्लिम एकता का ्यह पहला प्रयोग था और इस प्रयोग को लेकर जो भी दावे लक्ये गए थे वह सभी दावे झूठे और खोखले साबित हुए । ्यह वही दलित थे जो 1971 में तब लाखों की संख्या में मारे गए जब पाकिसतानी सेना ने जमाते-ए-इसलामी के साथ मिल कर ‘ काफिरों ’ के खिलाफ जिहाद घोषित कर लद्या । ्यह नरसंहार इतना भीषण था कि ढाका स्थित अमेरिकी काउंसलेट ने इसे हिन्दुओं का सेलेक्टिव कतलेआम करार लद्या । इस प्संग के अलावा भी कथित ‘ दलित-मुस्लिम एकता ’ की ऐसी ही सैकड़ों घटनाओं एवं मिसालों से तारीखें भरी
पडी हैं । ्यह कहना कदापि अनुलचित अथवा गलत नहीं होगा कि दलित-मुस्लिम गठजोड़ का ्यह प्रयोग पूरी तरह से विफल हो ग्या था ।
अंग्ेजी राज्य के दलौिान देश की जनता पर लक्ये गए अत्याचिारों की कोई गिनती नहीं की जा सकती है । इसके बावजूद सवतंरिता सेनालन्यों के आंदोलन और एकजुट हुई भारत की जनता के दबाव में आखिरकार अंग्ेजों ने भारत को छोड़कर जाने का लन्चि्य कर लल्या था । आधुनिक भारत के इतिह्ास में 1947 के भारती्य सवतंरिता अधिलन्यम का विशेष महतव है । इसका लनणा्यक महतव इस दृन्ष्ट है कि इसने भारत में एक नवीन ्युग की शुरुआत की । वसतुतः लरिटिश संसद द्ािा पारित ्यह अंतिम अधिलन्यम था । इसके द्ािा माउंटबैटन की ्योजना को ही प्भावी बना्या ग्या था । भारत में अंतिम गवर्नर-जनरल के रूप में माउंटवैटन की लन्युक्ति का उद्े््य , भारत में सत्ा हसतांतरण की प्लक्या को मूर्तरूप देना था । माउंटबेटन ने प्मुख भारती्य राजनीतिक दलों में एकमतता ध्ये्य प्ा्त कर अपनी ्योजना
का प्ारूप तै्यार लक्या । प्ारूप को वैधानिक रूप प्दान करने के ध्ये्य से लरिटिश सरकार ने औपचिारिकता पूरी करने हेतु कदम उठा्या । इसी के प्रयास-सवरूप प्िानमंरिी एटली ने माउंटबैटन ्योजना को विधे्यक के रूप में 15 जुलाई , 1947 को कामन्स सभा में तथा 16 जुलाई को ललॉरस्य सभा में प्सतुत लक्या । 18 जुलाई 1947 को इसके पारित होने के बाद इस पर शाही हसताक्ि हो ग्ये । ्यही विधे्यक भारती्य सवतंरिता अधिलन्यम के नाम से जाना ग्या और फिर इसी अधिलन्यम के तहत भारती्य उपमहाद्ीप को दो उपनिवेशों , भारती्य संघ तथा पाकिसतान में बांट लद्या ग्या ।
भारत के संवैधानिक तथा आधुनिक इतिह्ास में 1947 के भारती्य सवतंरिता अधिलन्यम का विशेष महतव है । प््मतः इसके द्ािा भारत , पाकिसतान तथा भारती्य रि्यासतों में अंग्ेजी सत्ा समा्त हो ग्यी । इन क्ेरिों में गवर्नर-जनरल को संवैधानिक प्मुख बना्या ग्या । इसी तरह भारत तथा पाकिसतान को अपने-अपने संविधान के निर्माण का अधिकार देकर भारती्य उपमहाद्ीप में साम्राज्यवादी ्युग का अंत कर लद्या ग्या । इस परिणाम के कारण अधिलन्यम का ्यह पहलू तो सुखद था , किंतु विभाजन इस महाद्ीप के लिए इतनी बडी दुखद समस्या बन ग्या तथा उसके दुष्परिणाम आज भी दिखाई देते हैं । विभाजन तथा सवतंरिता अधिलन्यम में मलौलिकता नहीं थी । अंग्ेजों की भारत से शीघ्ालतशीघ् वापसी तथा भारती्यों को जलद सत्ा हसतांतरण करने के लनण्य से अनेक समस्या्यें भी खडी हो ग्यीं । इससे विभाजन के संबंध में सुलनन््चित ्योजना बनाने की रणनीति अव्यवस्थित हो ग्यी तथा ्यह पंजाब में हिन्दू वर्ग के व्यापक नरसंहार को रोकने में असफल रही क्योंकि विभाजन की ्योजना के संबंध में एक सुलनन््चित एवं दूरदर्शितापूर्ण रणनीति का अभाव था । साथ ही ्यह ्योजना भी नहीं बना्यी ग्यी थी कि विभाजनोपरांत उतपन्न समस्याओं को कैसे हल लक्या जा्येगा ?
कांग्ेस ने विभाजन को इसलिए सवीकार लक्या क्योंकि वह मुसलमानों को राष्ट्री्य
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