doj LVksjh
हितों की रक्ा के लिए कट्टरपंथी मुस्लिम नेताओं ने मुस्लिम लीग नामक अपना राजनीतिक दल बना्या और फिर देश में धार्मिक आधार पर बंटवारे के लिए संगठित होकर पाकिसतान के निर्माण की भूमिका तै्यार करते चिले गए ।
कांग्ेस और मुस्लिम लीग के बीचि 1916 में हुए लखनऊ समझलौते में पृथक् लनवा्यचिक मंडल पहले ही सवीकार कर लिए गए थे । इस समझलौते के तहत पृथक लनवा्यचिक मंडल में जितने भारती्य सदस्य लनवा्यलचित होने थे , उनमें से एक-तिहाई संख्या मुस्लिम सदस्यों के लिए आिलक्त कर दी ग्यी । प्ांतों में मुसलमानों के लिए आिक्ण लक्या ग्या था । अभी तक जिन्ना मुसलमानों को धार्मिक अलपसंख्यक बताते आए थे । लेकिन 22 माचि्य 1940 को लाहलौि में उन्होंने अपने एक भाषण में पाकिसतान की मांग की और फिर आनन-फानन में 24 माचि्य 1940 को मुस्लिम लीग ने पाकिसतान का संकलप पारित कर लद्या ग्या । मुस्लिम लीग का उद्े््य विभाजन और सवतंरिता थी । पाकिसतान बनाने के लिए जिन्ना ने दलितों को भी अपना मोहरा बना्या और दलितों को भ्रमित करते हुए बड़ी चिालाकी से उन्हें ्यह आ्वासन लद्या कि एक हिन्दू देश में दलितों का कल्याण संभव नहीं है , इसलिए उनको पाकिसतान आकर मुस्लिमों के साथ रहना चिाहिए और इससे दलितों को तमाम समस्याओं से मुक्ति मिल जाएगी ।
पर डा . आंबेडकर ने जिन्ना के इस चितुराई भरे राजनीतिक खेल को समझ लिए था । इसीलिए उन्होंने 1945 में अपनी पुसतक " ्लॉट ऑन पाकिसतान " में लिखा था कि " मुसलमान सामाजिक सुधारों के विरोधी है । इसलाम जिस भाईचिारे की बात करता है , वह संसार के सभी मनुष््यों का भाईचिारा नहीं है । वह केवल मुसलमानों का मुसलमानों से भाईचिारा है । गैर मुसलमानों के लिए वहां केवल घृणा और शरिुता है । साथ ही इसलाम किसी भी मुसलमान को ्यह इजाजत नहीं देता कि वह किसी गैर इसलामी देश के प्लत वफादार रहे I " डा . आंबेडकर ने आगे लिखा कि " ऐसी स्थिति में बेहतर है कि पाकिसतान बनने लद्या जा्ये परन्तु आबादी के पूर्ण अदला-बदली
पर ्योजना बना ली जा्ये क्योंकि मुस्लिम बाहुल्य क्ेरि में गैर मुसलमानों के लिए इज्जत और बराबरी से जीवन जीना संभव नहीं है I "
पर जिन्ना द्ािा दिखाए गए सपने को सचि समझने की एक ऐतिहासिक भूल ततकालीन दलौि के एक वरिष्ठ दलित नेता जोगेंद्र नाथ मंडल ने की । मंडल का उप्योग करके जिन्ना ने दलितों को लुभाने एवं भ्रमित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी । किन्तु जोगेंद्र नाथ मंडल भारत- पाकिसतान बंटवारे के तीन वर्ष बाद 1950 में वापस ललौट आ्ये और अपने लक्ये गए ऐतिहासिक भूलों के लिए पश्चाताप करते हुए 5 अक्टूबर 1968 में पन््चिम बंगाल के बनगांव नमक गांव में अज्ात व्यक्ति के रूप में मृत्यु को प्ा्त हुए । दलित समाज ने भी उनकी इस ऐतिहासिक एवं गंभीर भूलों के लिए सामाजिक दणड सवरुप उनकी तरफ आंख उठाकर नहीं देखा । उनकी आसमान को छटूने वाली सारी संभावनाएं दलित- मुस्लिम राजनीतिक गठजोड़ की भेंट चिढ़ ग्यी , जबकि जिन्ना ने दलितों का उप्योग अपने सपने को पूरा करने के लिए लक्या , जिसका कोई लाभ
दलितों को न तो पाकिसतान में उनको सममान ्या लाभ कभी मिला और न ही उस बांगलादेश में , जिसे पाकिसतान से मुकत करने का काम भारत ने लक्या थाI
कांग्ेस ने सत्ा के लिए किया दलितों को भ्रमित
सवतंरिता के बाद देश में पहली सरकार कांग्ेस की बनी और सत्ा चिलाने की जिममेदारी जवाहरलाल नेहरू जी ने ली । पर नेहरू जी को जिस सम्य सत्ा मिली , उस सम्य उनके मन- मन्ष्तक में पन््चिमी देशों पर आधारित एवं उन्हीं की तरह देश को बनाने की मानसिकता थी । इसके साथ ही सवतंरिता के उपरांत बढ़ती उम्र के कारण सुख की तरफ भी उनका झुकाव था । कांग्ेस के नेता के रूप में उन्होंने दलितों की सभी समस्याओं का समाधान करने का दावा लक्या और उनका उप्योग वोट लेने के लिए करते रहे । कांग्ेस , वामपंल््यों और मुस्लिमों की चिुनावी और सत्ा समबत्िी रणनीति पर अगर ध्यान लद्या जाए तो कहना अनुलचित नहीं होगा कि वषथों से
10 flracj 2024