एक षड्ंरि के तहत देश की हिन्दू जनता को बांटा ग्या और उसका उप्योग सत्ा हल््याने के लिए लक्या जाता रहा । कांग्ेस की हिन्दू विरोधी रणनीति में भारती्य संसकृलत के सुपरिलचित एवं कट्टर विरोधी वामदलों ने अपना भरपूर साथ लद्या । परिणामसवरुप देश के हर राज्य में ्यानी
उत्ि से दलक्ण तक और पूरब से पन््चिम राज्यों तक जातिगत मसीहा बनकर सत्ा का सुख लेने वाले अ्योग्य राजनेता , राजनीतिक दल एवं संघठन का एक ऐसा जमावड़ा लग ग्या , जिसने देश और जनता का नुकसान करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी । देश की सत्ा में अपने मुस्लिम , वामपंथी और जातिगत आधार पर राजनीति में पैर ज़माने वाले नेताओं के सहारे कांग्ेस ने केवल सत्ा का सुख नहीं भोगा , बल्कि जनहितों के नाम पर देश की जनता के संसाधनों की निर्लज्जतापूर्ण ढंग से जमकर लूटने में कसर नहीं छोड़ी ।
बांग्ादेश की स्थिति से सबक लें दलित नेता
बांगलादेश में अलपसंख्यक हिन्दुओं में अधिकांश दलित हैं । लेकिन उनकी न्स्लत्यों पर भारत में दलित नेता खुलकर बोलने में परहेज कर रहे हैं । ऐसे में प्श्न ्यह भी उठता है कि क्या दलित समाज की जनता सिर्फ सत्ा प्ा्त करने के उपकरण के रूप में हैं ? दलित समाज पर ्यलद वासतव में ध्यान लद्या जाए तो ्यह कहना कहीं से भी गलत नहीं लगता कि ्यह वह समाज है जिसने लगभग आठ सलौ सालों तक विदेशी मुस्लिम आकांताओं को झेला , पर समझलौता नहीं लक्या । इसके बाद अंग्ेजी शासकों ने दलितों का इसतेमाल अपने हितों के लल्या लक्या । जब देश
सवतंरि हुआ तो दलितों का भाग्य लिखने का काम कांग्ेस और उसके सह्योलग्यों ने अपने हाथों में ले लल्या । कहने के लिए आिक्ण को एक ऐसे हल््यार के रूप में देखा ग्या था , जिससे दलित अपने भाग्य और सामाजिक स्थिति का लनण्य स्वयं कर सकेंगे और अपने हालात को सुधार कर विकास की मुख्य धारा के साथ कदम से कदम मिलकर चिल पाएंगे । लेकिन ऐसा नहीं हुआ । शिक्ा और अवसरों की कमी ने दलित समाज को राजनीतिक दलों के हाथ की कठपुतली बना कर रख लद्या । दलित समाज को कभी भी वासतव में समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए गंभीर कदम नहीं उठाए गए और जो कदम उठाए भी गए , वह राजनीति और सवःलहतों की भेंट चिढ़ गए । दलितों को उन अनेकों अवसरवादी एवं सवलहत तक सीमित रहने वाले नेताओं से भी अब होलश्यार रहने की जरुरत है जो उन्हें सपने दिखाकर अपने हितों की पूर्ति करते है । ऐसे ही नेता अब " दलित-मुस्लिम गठजोड़ " का न्या राग सुनकर दलितों का फिर से उप्योग करने के अवसर की प्तीक्ा में हैं । लेकिन बांगलादेश और पाकिसतान में अलपसंख्यक हिन्दुओं के रूप में दलितों के साथ जो भी हो रहा है , वह उन तमाम दलित नेताओं के लिए सबक है , जो दलित-मुस्लिम गठजोड़ की वकालत करते आ रहे हैं । �
flracj 2024 11