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था कि दलितों का तो ्वास्तव में तब उतथान होगा जबकि ्वदे स्वयं सतरिय तथा जागृत होंगदे । इसलियदे उनहोंनदे घोषणा की कि तशतक्त बनो, आनिोलन चलाओ और संगत्ठत रहो । दलित ्वगमा की शिक्ा के बारदे में ्लॉ अम्बेडकर का मत था कि दलितों के अतयाचार तथा उतपीडन सहन करनदे तथा ्वतमामान पररशसथतियों को सनतोरपूर्ण मानकर स्वीकार करनदे की प्र्वृति का अनत करनदे के लिए उनमें शिक्ा का प्रसार आवश्यक है । शिक्ा के माधयम सदे ही उनहें इस बात का आभास होगा कि त्व््व कितना प्रगतिशील है तथा ्वदे कितनदे पिछडडे हुए है । उनका मानना था कि दलितों को अनयाय, अपमान तथा दबा्व को सहन करनदे के लिए मजबूर किया जाता है ।
्वदे इस बात सदे दुखी थदे कि दलित इस प्रकार की पररशसथतियों को बिना कुछ कहदे स्वीकार कर लदेतदे हैं । ्वदे संखया में अधिक होनदे के बा्वजूद उतपीडन को सहन कर लदेतदे हैं, जबकि यदि एक अकेली चींटी पर भी पैर रख दिया जाए तो ्वह प्रतिरोध करतदे हुए काट डालती है । इन पररशसथतियों को समापत करनदे के लिए अम्बेडकर दलितों में शिक्ा के प्रसार को बहुत महत्वपूर्ण मानतदे थदे । उनहें के्वल औपचारिक शिक्ा ही नहीं अपितु अनौपचारिक शिक्ा भी दी जानी
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