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सन्त कबीर का सत्य स्वरूप
अरुण लिवानिया ck
मसदेतफयों और आंबदे््र्वादियों की छटपटाहट बढ़ गयी है । जितनदे भी ईश्वर्वादी संत हैं, उनहें एक-एक कर नाशसत्, हिंदूद्रोही, डा. आंबदे््र के त्वचारों और बौद्ध साबित करनदे का कुचरि भी जोर-शोर सदे चल रहा है । बामसदेतफयों की प्रचार सामग्रियों, पुसत्ों और भाषणों में डा. आंबदे््र और बुद्ध के साथ इन संतों को भी जोड़ा जाना आम बात है । कबीर दास जी ऐसदे ही एक संत हैं, जिनकी छत्व इन मूलतन्वासी्वादी चिंतकों द्ारा छलकपट का सहारा लदे्र नाशसत् और हिंदूद्रोही बनानदे का प्रयास ्वृहद् सतर पर किया जा रहा है ।
लदेत्न सतय कया है? यह जाननदे का प्रयास संत कबीर दास की ्वाणी सदे ही किया जा सकता है । यह भी धयान रखना होगा कि धर्म में पाखंड का त्वरोध करनदे सदे कोई नाशसत् नहीं हो जाता है । यदि कबीर नदे हिंदू धर्म में वयापत कुरीतियों की आलोचना की तो गलत नहीं किया । अनदे् महापुरुषों नदे ऐसा किया है फिर भी आशसत् ही रहदे । धर्म नहीं छोड़ा । इसलियदे आंबदे््र्वादियों का यह कहना कि हिंदू धर्म में वयापत कुरीतियों पर प्रहार करनदे ्वाला हर वयशकत आंबदे््र्वादी, नाशसतिक, न्वबौद्ध और हिंदूद्रोही है, हासयासपि तर्क है । यह सतय है कि कबीर नदे धर्म में प्रचलित कुप्रथाओं पर प्रहार किया लदेत्न राम और हरि पर अटूट आसथा भी बनायदे रखी, तथा नर्क और आतमा पर त्व््वास भी वयकत किया ।। उनकी चंद साखियां नीचदे दी जा रही हैं जो साबित करती हैं कि ्वो डा. आंबदे््र के नूतन धर्म, दर्शन, मानयताओं और नाशसत्ता सदे कोसों दूर थदे । साथ में कबीरपंथी त्वद्ानों की लिखित उस पुसत् का ह्वाला भी है. जिससदे यदे साखियां ली गयी हैं । इसदे पढ़कर आंबदे््र्वादियों को आइना दिखाया जा सकता है । कबीर कूता राम का, मुतिया मेरा नाऊं । गलिे राम की जेवड़ी, जित खैवें तित जाऊं ।। अर्थ: कबीर दास कहतदे हैं कि मैं तो राम का ही कुतिा हूं और नाम मदेरा मुतिया( मोती) है । गलदे में राम नाम की जंजीर पड़ी हुयी है । मैं उधर ही चला जाता हूं जिधर मदेरा राम मुझदे लदे जाता है । मेरे संगी दोई जण, एक वैषरों एक राम । वो है दाता मुकति का, वो सुमिरावै नाम ।। अर्थ: कबीर साहिब कहतदे हैं कि मदेरदे तो दो ही संगी साथी हैं- एक
्वैष्ण्व और दूसरा राम । राम जहां मुशकतिाता हैं ्वहीं ्वैष्ण्व नाम समरण
कराता है । यहां भी डा. आंबदे््र और संत कबीर त्वपरीत ध्रु्वों पर खडडे
साबित होतदे हैं । सबै रसायन मैं किया, हरि सा और ना कोई । तिलि इक घट में संचरे, तौ सब तन कंचन होई । अर्थ: कबीर कहतदे हैं मैंनदे सभी रसायनों का सदे्वन कर लिया मगर हरि रस जैसा कोई अनय रसायन नहीं मिला । यदि यह एक तिल भी घट में, शरीर में पहुंच जायदे तो संपूर्ण तन कंचन में बदल जाता है । ्वासनाओं का मैल जल जाता है और जी्वन अतयंत निर्मल हो जाता है । कबीर हरि रस यौं पिया, बाकी रही न थाकि । पाका कलिस कुंभार का, बहूरि चढ़ी न चाकि ।। अर्थ: कबीरदास कहतदे हैं कि श्री हरि का प्रदेम रस ऐसा छककर पिया
है कि कोई अनय रस पीना बाकी नहीं रहा । कुमहार बनाया हुआ जो घड़ा
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