Oct 2025_DA | Page 37

पक गया ्वो दोबारा चाक पर नहीं चढ़ता है । कयूं नृप-नारी नींदिये, कयूं पनिहारिन कौ मान । मांग संवारै पीलि कौ, या नित उठि सुमिरै राम ।। अर्थ: कबीरदास कहतदे हैं कि रानी को यह नीचा सथान कयूं दिया गया और पनिहारिन को इतना ऊंचा सथान कयूं दिया गया? इसलियदे कि रानी तो अपनदे राजा को रिझानदे के लियदे मांग सं्वारती है, श्रृंगार करती है लदेत्न ्वह पनिहारिन नितय उ्ठ्र अपनदे राम का सुमिरन करती है । दुखिया भूखा दुख कौं, सुखिया सुख कौं झूरि । सदा अजंदी राम के, जिनि सुखदुख गेलहे दूरि ।। अर्थ: कबीर कहतदे हैं कि दुखिया भी मर रहा है और सुखिया भी- एक बहुत अधिक दुख के कारण और अधिक सुख के कारण । लदेत्न रामजन सदा ही आनंद में रहतदे हैं । कयोंकि उनहोंनदे सुख और दुख दोनों को दूर कर दिया है । कबीर का तू चिंतवे, का तेरा चयंतया होई । अणचंतया हरि जी करै, जो तोहि चयंि न होई ।। अर्थ: कबीर कहतदे हैं तू कयों बदे्ार की चिंता कर रहा है, चिंता करनदे सदे होगा कया? जिस बात को तूनदे कभी सोचा ही नहीं उसदे अचिंतित को भी तदेरा हरि पूरा करदेगा । कबीर सब जग हंडिया, मांदलि कंधि चढ़ाइ । हरि बिन अपना कोऊ नहीं, देखे ठोंकि बजाइ ।। अर्थ: संत कबीर कहतदे हैं कि मैं सारदे संसार में एक मंदिर सदे दूसरदे मंदिर का चक्र काटता फिरा । बहुत भटका । कंधदे पर कां्वड रख पूजा की सामग्री के साथ । सभी िदे्वी-िदे्वताओं को िदेख लिया, ्ठोक-बजाकर परख लिया । लदेत्न हरि को छोड़कर ऐसा कोई नहीं मिला जिसदे मैं अपना कह सकूं । कबीर संसा कोउ नहीं, हरि सूं लिागया हेत । काम क्ोध सूं झूझड़ा, चौड़े मांड्ा खेत ।। अर्थ: कबीर कहतदे हैं कि मदेरदे तचति में कुछ भी संशय नहीं रहा, हरि सदे लगन जुड़ गयी । इसीलियदे चौडडे में आकर रणक्देत् में काम और रिोध सदे जूझ रहा हूं । मैं जाणयूं पढ़िबो भलिो, पढ़िबो से भलिो जोग । राम नाम सूं प्ीति करी, भलि भलि नीयौ लिोग ।। अर्थ: कबीर कहतदे हैं- पहलदे मैं समझता था कि पोथियों का पढ़ा बड़ा आदमी है । फिर सोचा कि पढ़नदे सदे योग साधन कहीं अचछा है । लदेत्न अब इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि राम नाम सदे ही सच्ची प्रीति की जायदे तो ही उद्धार संभ्व है । राम बुलिावा भेजिया, दिया कबीरा रोय । जो सुख साधु संग में, सो बैकुंठ न होय ।। अर्थ: कबीर कहतदे हैं कि जब मदेरदे को लानदे के लियदे राम नदे बुला्वा भदेजा तो मुझसदे रोतदे ही बना । कयोंकि जिस सुख की अनुभूति साधुओं के सतसंग में होती है ्वह बैकुं्ठ में नहीं ।
वैध मुआ रोगी मुआ, मुआ सकलि संसार । एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम अधार ।। अर्थ: कबीरदास कहतदे हैं कि ्वैद्य, रोगी और संसार नाश्वान होनदे के कारण ही उनका रूप-रूपांतर हो जाता है । लदेत्न जो राम सदे आसकत हैं ्वो सदा अमर रहतदे हैं । दया आप हृदय नहीं, ज्ान कथे वे हद । ते नर नरक ही जायेंगे, सुन-सुन साखी शबद ।। अर्थ: कबीर कहतदे हैं कि जिनके हृदय में दया का भा्व नहीं है और
ज्ान का उपिदेश िदेतदे हैं, ्वो चाहदे सौ शबि सुन लें, लदेत्न नरकगामी ही होंगदे । जेती देखो आतम, तेता सातलिगराम । साधू प्ितष देव है, नहीं पाहन सूं काम ।। अर्थ: संत कबीर कहतदे हैं कि जितनी आतमाओं को िदेखता हूं उतनदे ही शालिग्राम दिखाई िदेतदे हैं । प्रतयक् िदे्व तो मदेरदे लियदे सच्चा साधु ही है । पाषाण की मूर्ति पूजनदे सदे मदेरा कया भला होनदे ्वाला है । �
vDVwcj 2025 37