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अंग्रदेजी सरकार की नौकरी न करके स्वतंत् रूप सदे कार्य करनदे का तन्चय किया । स्वामी नितयानंद के तनिवेश पर अधयापक की नौकरी छोड कर उनहोंनदे बड़ोदा जाकर दलित त्वद्यातथमायों को शिक्ा िदेनदे का तन्चय किया । एक पक्ी सरकारी नौकरी को छोड्र गुजरात के गां्व- गां्व में दलितों के उद्धार के लिए धूल खानदे का निर्णय स्वामी दयानंद के सच्चा भकत ही कर सकता था ।
आतमाराम जी बड़ोदा नरदेश सदे मिलदे तो उनको दलित पा्ठशालाओं को खोलनदे का त्वचार महाराज नदे बताया और उनहें इन पा्ठशालाओं का अधीक्् बना दिया गया । मासटर जी सथान तलाशनदे के लिए निकल पडडे । जैसदे ही मासटर आतमाराम जी किसी भी सथान को पसंद करतदे तो दलित पा्ठशाला का नाम सुनकर कोई भी किरायदे के लिए उसदे नहीं िदेता । अंत में त्व्वश होकर मासटर जी नदे एक भूत बंगलदे में पा्ठशाला सथातपत कर दी । गाय््वाड महाराज नदे कुछ समय के बाद अपनदे अधिकारी श्री शिंिदे जी को भदेजकर पा्ठशाला का हालचाल पता कराया ।
शिंिदे जी नदे आकर कहा कि महाराज ऐसा दृ्य िदेख कर आ रहा हूँ, जिसकी कोई ््पना भी नहीं कर सकता । दलितों में भी अति निम्न समझनदे ्वाली जाति के लड़के ्वदेि मंत्ो सदे ईश्वर की सतुति कर रहदे थदे और दलित लड़कियां भोजन पका रही थी जिसदे सभी स्वर्ण-दलित बिना भदेिभा्व के ग्रहण कर रहदे थदे । सुनकर महाराज को संतोष हुआ । पर यह कार्य ऐसदे ही संभ्व नहीं हो गया । आतमाराम जी स्वयं अपनदे परर्वार के साथ किरायदे पर रहतदे थदे, जैसदे ही मकान मालिक को पता चलता की ्वदे दलितों के उतथान में लगदे हुए हैं ्वदे उनहें खरी खोटी सुनातदे और मकान खाली करा लदेतदे । इस प्रकार मासटर जी अतयंत कष्ट सहनदे रहदे पर अपनदे मिशन को नहीं छोडा । महाराज के प्रदेरणा सदे मासटर जी नदे बड़ौदा राजय में 400 के करीब पा्ठशालाओं की सथापना की, जिसमें 20 हजार के करीब दलित बच्चदे शिक्ा ग्रहण करतदे थदे । महाराज नदे प्रसन्न होकर मासटर जी के समपूणमा राजय की शिक्ा वयसथा का इंस्पेकटर बना दिया । मासटर जी जब भी स्ूलों के दौरों पर जातदे तो स्वणमा जाति के लोग उनका तिरस्ार करनदे में कोई कसर नहीं छोडतदे, पर मासटर जी चुपचाप अपनदे कार्य में लगदे रहदे । समपूणमा गुजरात में मासटर आतमाराम जी नदे न जानदे कितनदे दलितों के जी्वन का उद्धार किया होगा इसका ्वणमान करना ्त्ठन हैं । अपनदे बमबई प्र्वास के दौरान मासटर जी को दलित महार जाति का स्ातक यु्व् मिला जो एक पेड़ के नीचदे अपनदे पिता की असमय मृतयु सदे परदेशान बै्ठा था । उसदे पढनदे के लियें 25रूपए मासिक की छात्रवृति गाय््वाड महाराज सदे मिली थी, जिससदे ्वो स्ातक की पढ़ाई कर सका था । मासटर जी उसकी क़ाबलियत को समझकर उसदे अपनदे साथ लदे आयदे । कुछ समय प्चात उसनदे मासटर जी को अपनी आगदे पढनदे की इचछा बताई । मासटर जी नदे उनहें गाय््वाड महाराज के बमबई प्र्वास के दौरान मिलनदे का आश्वासन दिया । महाराज नदे 10 मदेघा्वी दलित छात्ों को त्विदेश जाकर पढनदे के लिए छात्रवृति िदेनदे की घोषणा करी थी । उस दलित यु्व् को छात्रवृति प्रदान की गयी जिससदे ्वदे अमदेरिका जाकर आगदे की पढाई पूरी कर सके ।
अमदेरिका सदे आकर उनहें बड़ौदा राजय की 10 ्वर्ष तक सदे्वा करनदे का कार्य करना था । अपनी पढाई पूरी कर ्वह लगनशील यु्व् अमदेरिका सदे भारत आ गए और उनहोंनदे महाराजा की अनुबंध अनुसार नौकरी आरंभ कर दी । पर सवर्णों द्ारा दफतर में अलग सदे पानी रखनदे, फाइल को दूर सदे पटक कर टडेबल पर डालनदे आदि सदे उनका मन खट्ा हो गया । ्वदे आतमाराम जी सदे इस नौकरी सदे मुकत कर्वानदे के लियदे मिलदे । आतमाराम जी के कहनदे पर गाय््वाड महाराज नदे उनहें 10 ्वर्ष के अनुबंध सदे मुकत कर दिया । इस बीच आतमाराम जी के कार्य को सुन कर कोहलापुर नरदेश साहू जी महाराज नदे उनहें को्हापुर बुलाकर सममातनत किया और आर्यसमाज को को्हापुर का ्लॉलदेज चलानदे के लिए प्रदान कर दिया । आतमाराम जी का को्हापुर नरदेश सदे आतमीय समबनध सथातपत हो गया ।
आतमाराम जी के अनुरोध पर उन दलित यु्व् को को्हापुर नरदेश नदे इंगलैंड जाकर आगदे की पढाई करनदे के लिए छात्रवृति दी जिससदे ्वदे पीएचडी करके िदेश ्वापस लौटडे । उन दलित यु्व् को आज के लोग ्लॉ. आंबदे््र के नाम सदे जानतदे हैं जो कालांतर में दलित समाज के सबसदे लोक प्रिय नदेता बनदे और जिनहोंनदे दलितों के लिए संघर्ष किया । मौजदा दलित नदेता ्लॉ. आंबदे््र सदे लदे्र पंडिता रमाबाई तक( जिनहोंनदे पूनदे में 1500 के करीब त्वध्वाओं को ईसाई मत में सशममतलत कर्वा दिया था) उनसदे लदे्र जयोतिबा फुलदे तक( जिनहोंनदे सतय शोधक समाज की सथापना की और दलितों की शिक्ा के लिए त्वद्यालय खोलदे) का तो नाम बड़े सममान सदे लदेतदे हैं पर स्वणमा समाज में जन्मे और जी्वन भर दलितों का जमीनी सतर पर शिक्ा के माधयम सदे उद्धार करनदे ्वालदे मासटर आतमाराम जी अमृतसरी का नाम नहीं लदेतदे । सोचियदे अगर मासटर जी के प्रयास सदे और स्वामी दयानंद की सभी को शिक्ा िदेनदे की जन जागृति न होती तो ्लॉ. आंबदे््र महार जाति के और दलित यु्व्ों की तरह एक साधारण सदे वयशकत ही रह जातदे । मासटर जी के उपकार के लिए दलित समाज को सदा उनका ऋणी रहदेगा । �
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