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और सितंत्रता के उपरांत भी दलित समाज को देश के अंदर सिर्फ सत्ा हासिल करने के माधयम के रूप में ही उपयोग किया गया ।
सत्ा प्ाप्त करे लिए उपयोग हुआ दलिताें का
देश के अंदर अगर सत्ा समबनधी रणनीति पर राजनीतिक दलों , विशेर् रूप से कांग्ेस , वामपंथी और कुछ क्ेत्रीय दलों पर अगर दृष्टि जाए तो कहना अनुचित नहीं लगता कि वर्षों से एक र्ड्ंत्र के रूप में हिनदू समाज को बांटकर , उसका उपयोग सत्ा हथियाने के लिए किया गया । वर्तमान कांग्ेस पाटसी को जिस कालखंड में बनाया गया था , उस समय देश परतंत्र था और अंग्ेि इस देश की पावन भूमि को रौंदते हुए अपनी सत्ा के माधयम से देश को बुरे ढंग से लूटने में लगे थे । ततकालीन समय में पूरे देश ने जब अंग्ेिों की सत्ा और देश विरोधी कायथों का विरोध शुरू किया तो बड़ी सफाई के साथ , ततकालीन दौर के चंद कुलीन िगथों के लोगों को साथ में लेकर 28 दिसंबर 1885 को अखिल भारतीय कांग्ेस नामक एक संगठन खड़ा किया गया । अंग्ेि शासकों के हितों और उनकी
सवतंत्रतषा कके उपरषांत कषांग्रेसी प्रधषानमंत्री नषेिरू जी नषे अंग्रेजों कके सत्ता अनुभव िषे सबक िषेतषे हुए जषाशत व्वस्था को इस तरह िषे भषारत में पुषट शक्षा कि जषाशतरत आधषार पर दषेि कके हर रषाज् में नए-नए संगठन खड़े होतषे चिषे गए । इन जषाशत आधषारित संगठनों कके कथित नषेतषाओं कषा लक्् अपनी जषाशत कषा समिूण्ग विकषाि और कल्याण कभी नहीं रिषा और वो ककेवल कषांग्रेस की कठपुतली बनकर सत्ता की मिषाई चषाटतषे हुए बस सवशित में ही िरषे रिषे ।
आकांक्ाओं की पूर्ति के लिए बनाए गए कांग्ेस संगठन में एक विदेशी तथाकथित नेता ए ओ ह्यूम की महतिपूर्ण भूमिका रही । प्रारंभिक दौर में कांग्ेस विदेशी लुटेरे अंग्ेिी हितों के लिए काम करती रही ।
सितंत्रता के उपरांत कांग्ेसी प्रधानमंत्री नेहरू जी ने अंग्ेिों के सत्ा अनुभव से सबक लेते हुए जाति वयिसथा को इस तरह से भारत में पुष्ट किया कि जातिगत आधार पर देश के हर राजय में नए-नए संघठन खड़े होते चले गए । इन जाति आधारित संगठनों के कथित नेताओं का लक्य अपनी जाति का समपूण्ग विकास और
कलयाण कभी नहीं रहा और वो केवल कांग्ेस की कठपुतली बनकर सत्ा की मलाई चाटते हुए बस सिवहत में ही लगे रहे । नेहरू जी ने जाति को सत्ा से जिस तरह जोड़ दिया था , उस रणनीति का अनुसरण नेहरू जी के बाद श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी किया । आखिर ्या कारण है कि वर्षों तक '' गरीबी हटाओ '' का नारा देने के बावजूद देश से गरीबी ्यों नहीं समापत हुई ? आखिर ्या वजह रही कि संवैधानिक रूप से आरक्ण की सुविधा मिलने के बावजूद आज भी देश का दलित समाज सियं को अभािग्सत महसूस करता है ? वह कौन से कारण हैं ,
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