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जिनकी वजह से दलितों और जातिगत हितों के लिए जो नेता सामने आये , वह अपने समाज का समपूण्ग विकास करने में असफल सिद्ध हुए ?
ऐसे अनेकानेक प्रश्ों का उत्र बहुत सपष्ट है । सितंत्रता के बाद से कांग्ेस ने सियं को सत्ा के केंद्र में रखने के लिए हिनदू समाज को जहां उच्च-निम्न जातियों में बांट दिया , वहीं विभिन्न पंथों एवं महजब की कट्टरता के आधार पर गैर हिनदू जनता को बांट कर कांग्ेस दलित , मुपसलमों और ईसाई समूह की मसीहा भी बन गयी । कांग्ेस की हिनदू विरोधी रणनीति में सिर्फ धर्म एवं संस्कृति
आज भी पूरी तरह उनहें नहीं मिल सके हैं I
सितन्त्र भारत में कांग्रेस नरे पोषित की जाति व्यवस्ा
हिनदुओं को तोड़ने के र्ड्ंत्र एक अनय उदाहरण 1931 की जनगणना में देखा जा सकता है । अंग्ेिों ने जनसंखया के आंकड़ों के िगसीकरण में '' डिप्रेस ्लास '' नामक नए शबद का इसतेमाल किया गया । '' डिप्रेस ्लास '' के तहत देश के उन सभी हिनदुओं को रख दिया गया जो समाज के कमजोर , अवशवक्त , निर्बल और
गया । नेहरू-गांधी के अभियान का जिसने भी खुल कर विरोध करने का प्रयास किया , उसे किनारे कर दिया गया , वह चाहे िलॉ बी आर आमबेकर रहे हों या सरदार बललभभाई पटेल या राष्ट्ीय सियं सेवक संघI यह तो पहले से तय था कि सितंत्रता के उपरांत देश की सत्ा कांग्ेस को मिलेगी । पर सत्ा हासिल करने के बाद कांग्ेस नेता नेहरू जी ने देश की हिनदू जनता को धीरे-धीरे जातियों के आधार पर देखने की जो शुरुआत की , वह कालांतर में राजनीतिक रूप से देश के अंदर एक जटिल जाति वयिसथा
के कट्टर विरोधी वामदलों ने उनका भरपूर साथ दिया । परिणामसिरुप देश के हर राजय में यानी उत्र से दवक्ण तक और पूरब से पपशचम राजयों तक जातिगत मसीहा बनकर सत्ा का सुख लेने वाले विभिन्न राजनेता , राजनीतिक दल एवं संघठन का एक ऐसा जमावड़ा लग गया , जिसने जाति-पांति , पंथ , तुष्टिकरण , क्ेत्रवाद एवं परिवारवाद के मुद्े से देश को बाहर निकलने नहीं दिया । दलितों के उतथान के नाम पर राजनीतिक दलों ने दलितों का इस कदर शोर्ण किया कि वह आज भी समपूण्ग दलित वर्ग के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं , पर उनके अधिकार
कुलीन िगथों से नहीं जुड़े थे । इसी डिप्रेस ्लास में शामिल की गयी जनता को धीरे-धीरे जातियों में बांटने की जो शुरुआत हुई , उसका एकमात्र उद्ेशय देश की हिनदू संस्कृति और समाज को खंड-खंड करना था । कांग्ेस का नेतृति सदैव सत्ा प्रापपत के र्ड्ंत्र के तहत जातियों में बंटते जा रहे हिनदू समाज के साथ ही अनय पंथ के लोगों को एकसाथ लेकर चलते रहेI लेकिन सितंत्रता के उपरांत जब सत्ा मिलने का प्रश् आया तो कांग्ेस और मुपसलम लीग द्ारा हिनदू समाज को जाति और वर्ग ( दलित एवं सवर्ण ) के भेद में बांधने का अभियान ही प्रांरभ हो
में बदल गई ।
दलिताें को भ्रमित करकरे सत्ा सुख उठाया कांग्रेस नरे
सितंत्रता के बाद देश में पहली सरकार कांग्ेस की बनी और सत्ा चलाने की जिममेदारी जवाहरलाल नेहरू जी ने ली । पर नेहरू जी को जिस समय सत्ा मिली , उस समय उनके मन-मष्तिक में पपशचमी देशों पर आधारित एवं उनहीं की तरह देश को बनाने की मानसिकता थी । इसके साथ ही सितंत्रता के उपरांत बढ़ती उम्र के कारण सुख और आतम की तरफ भी
10 vDVwcj 2024