उनका झुकाव था । कांग्ेस के नेता के रूप में उनहोंने दलितों की सभी समसयाओं का समाधान करने का दावा किया और उनका उपयोग वोट लेने के लिए करते रहे । कांग्ेस , वामपंथियों और मुपसलमों की चुनावी और सत्ा समबनधी रणनीति पर अगर धयान दिया जाए तो कहना अनुचित नहीं होगा कि वर्षों से एक र्ड्ंत्र के तहत देश की हिनदू जनता को बांटा गया और उसका उपयोग सत्ा हथियाने के लिए किया जाता रहा । कांग्ेस की हिनदू विरोधी रणनीति में भारतीय संस्कृति के सुपरिचित एवं कट्टर विरोधी वामदलों ने अपना भरपूर साथ दिया । परिणामसिरुप देश के हर राजय में यानी उत्र से दवक्ण तक और पूरब से पपशचम राजयों तक जातिगत मसीहा बनकर सत्ा का सुख लेने वाले अयोगय राजनेता , राजनीतिक दल एवं संगठन का एक ऐसा जमावड़ा लग गया , जिसने देश और जनता का नुकसान करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी । देश की सत्ा में अपने मुपसलम , वामपंथी और जातिगत आधार पर राजनीति में पैर ज़माने वाले नेताओं के सहारे कांग्ेस ने केवल सत्ा का सुख नहीं भोगा , बपलक जनहितों के नाम पर देश की जनता के संसाधनों की निर्लज्जतापूर्ण ढंग से जमकर
िरषातषार पिछिषे दस वषषों कके िषािन में प्रधषानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों एवं कषा््गक्रमों कषा मूल उद्देश् जिषां भषारत को अग्णी दषेिों की कतषार में खड़षा करनषा रिषा , वहीं मोदी सरकषार की नीतियों-कषा््गक्रमों में समषाज कके उस व्ककत पर सबिषे िििषे ध्यान शद्षा र्षा , शजिषे अंतिम पंककत में स्थान मिलतषा रषा ।
लूटने में कसर नहीं छोड़ी ।
अब आरक्षण पर कांग्रेस की नजर
लगातार पिछले दस वर्षों के शासन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों एवं काय्गरिमों का मूल उद्ेशय जहां भारत को अग्णी देशों की कतार में खड़ा करना रहा , वहीं मोदी सरकार की नीतियों-काय्गरिमों में समाज के उस वयप्त पर सबसे पहले धयान दिया गया , जिसे अंतिम पंक्त में सथान मिलता था । भारत की सितंत्रता के बाद से अंतिम पंक्त में खड़े वयप्त को जिस तरह से सिर्फ वोट के लिए इसतेमाल किया गया , उसी अंतिम पंक्त वाले वयप्त के उतथान के लिए किए गए प्रयासों का ही परिणाम है कि पिछले नौ वर्षों में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी के दायरे से बाहर आ गए ।
इनमें सर्वाधिक लोग गरीब दलित , पिछड़े , वनवासी एवं वंचित वर्ग के हैं । गत दस वर्षों के दौरान दलित , पिछड़े , वनवासी वर्ग के लिए समर्पित मोदी सरकार के कायथों का ही परिणाम है कि आज भारत बडी तीब्र गति से विकास की ओर अग्सर है । ऐसे में कांग्ेस और उसके सहयोगियों के लिए राजनीतिक जमीन को बचाए रखना कठिन होता जा रहा है । अपनी राजनीतिक जमीन को बचाए रखने के लिए कांग्ेस एक तरफ दलित कलयाण के भ्रमित दावे कर रही है , वही कथित दलित-मुपसलम एकता के नाम पर अवैध मतांतरण की प्रकिया को गति देने में जुटी हुई है । जातीय जनगणना के नाम पर देश पर भ्रम और झूठ फ़ैलाने में जुटी कांग्ेस एक दिन आरक्ण को समापत करके संविधान को बदलने का कार्य करेगी , इस पर अब संदेह नहीं रहा गया है । दलित ,
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