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नारी कल्ाण एवं सवतंत्रता के समर्थक डा . आंबेडकर
पहलू को चर्चा रहित छोड़ दिया जाता है । डा . आंबेडकर के समपूण्ग जीवन दर्शन पर बात करें तो यह अतिशयोप्त पूर्ण कथन नही माना जा सकता है कि सत्री और दलित सत्री उनके वयप्तति व उनके दर्शन का अमिट हिससा है और यह सत्री चेतना उनके परिवार , उनके आसपास , व विदेश में किए उनके अधययन व तरह-तरह के आनदोलनों में जुड़ने से आई । निसनदेह उनके सत्री दर्शन के विकसित होने का मूलाधार परिवार की महिलाओं की उनके उपर
अनितषा भषारती
दलित समाज ने कितनी प्रगति की है इसे मैं दलित सत्री की प्रगति से तौलता हूं ,’ जैसी गंभीर और विचारोत्ेिक व पसत्रयों के घोर पक् में की गई टिपपणी के टिपपणीकार
डा . आंबेडकर द्ारा पसत्रयों के पक् में किए गए कायथों का अ्सर ऊपरी तौर पर दलित एवं गैर दलित साहितयकारों द्ारा केवल वर्णन मात्र कर दिया जाता है , परनतु उनमें यह गंभीर सत्री चेतना कहां से आई उनके जीवन के इस सबसे महतपूण्ग
पड़ने वाली अमिट छाप भी है ।
डा . आंबेडकर जब विदेश में पढ़ने गए तो वहां के सितनत्र जीवन में उनहोनें पसत्रयों को चहुंमुखी विकास करते देखा तब उनहे समझ में आया कि बिना सत्री शिक्ा के कोई भी प्रगति
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