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ने लगभग सारे बौद्ध और जैन मंदिरों को तोडकर मिटा दिए थे Iहिंदू धर्म और भारत के इतिहास का थोडा सा भी ज्ान रखने वाले सामानय वयप्त का रोमिला थापर का यह '' इतिहास '' पढ कर मन ही मन में मुसकुराना सिाभाविक है , लेकिन यह तीनों बातें पपशचमी दुनिया रोमिला थापर के सौजनय से पिछले 50 िर््ग से सतय जान और मान रही है , जबकि भारतीय जनता को ही इतनी मोटी '' ऐतिहासिक '' बातों का पता ही नहीं ।
्या आपने अभी तक एक भी सथान या किसी बौद्ध , जैन या हिंदू मंदिर का नाम सुना है , जिसे किसी हिंदू राजा ने तोडकर मिटा दिया हो ?
आपने गजनी , बाबर , औरंगजेब आदि मंदिर- विधिंसकों और मूर्ति-भंजक जेहादीयों के कुकमथों के बारे में अवशय सुना या पढा होगा , लेकिन मंदिरों को तोडने वाले एक भी कुखयात हिंदू राजा के बारे में कुछ सुना-पढा नहीं है ! यह कैसे संभव है ? यह इसलिए संभव है कि हिंदू राजाओं द्ारा मंदिरों को तोडने की बात रोमिला थापर जैसे उन भारतीय वामपंथी इतिहासकारों
की जमात की मनगढंत बात है , जो केवल राजनीतिक कारणों से फैलायी जाती रही है । इस सफेद जूठ को फैलाने के पिछे वामपंथी इतिहासकारों की इस जमात का एक उद्ेशय यह सिद्ध करना भी रहा है कि जैसे मुपसलम काल में मुपसलम शासकों ने हिंदू मंदिरों का विधिंस किया , ठीक वैसे हिंदू राजाओं ने भी मुपसलम-पूर्व काल में बौद्ध-जैन मंदिरों का विधिंस किया था । यह जमात सियं मुपसलम विद्ानों के इतिहास ग्ंथों में वर्णित इसलाम की क्रूर प्रककृवत और मुपसलम शासकों की हिंदू मंदिरों को तोडने की '' पवित्र '' प्रवृवत् पर तो पूरी तरह पर्दा नहीं डाल
सकती । इसलिए हिंदू धर्म और हिंदू राजाओं को इसलाम और मूर्ति-भंजक मुपसलम शासकों के सतर तक घसीट कर हिसाब बराबर करने का निष्फल प्रयास कर रही है । हिंदूओं ने भी बौद्ध- जैन मंदिर तोडे , उनके खून की नदियां बहा दी थी-आदि जुमलों का स्ोत किसी इतिहास ग्ंथ में नहीं मिलेंगे । इस दुष्प्रचार का स्ोत यहां की वामपंथी राजनीति में है , जहां हिंदू धर्म और
हिंदूओं को बदनाम करने , उनहें तोडने , बरगलाने , इसलामी इतिहास का हर हाल में बचाव करने , जातिवादी वैमनसय को बढाने , बौद्ध-जैन समाज को भडकाने के लिए ऐसे मनगढंत कथनों का सहारा लिया जाता है । इनके मूल में वामपंथी इतिहासकारों का फैलाया हुआ दुष्प्रचार ही होता है । विभिन्न राजनीतिक एक्टविसट अपने-अपने लाभ के लिए इस दुष्प्रचार का भरपूर इसतेमाल कर लेते है । इन लोगों को सतय से कोई लेना- देना नहीं है ।
रोमिला थापर और अनय वामपंथी इतिहासकारों द्ारा प्रचारित इसी बात को लें कि हिंदू राजा भी मंदिर तोडा करते थे । इस आधारहीन बकवास को सतय मान लेनें से कितने भयंकर और दूरगामी परिणाम निकल सकते है , इसका हम अनुमान भी नहीं लगा सकते । ठीक इसी आधार पर पिछले 50 िर््ग से भारत के तमाम मा्स्गिादी इतिहासकार और उनके अनुयायी भारतीय इतिहास में इसलामी हिंसा और जुलम को संतुलित करते रहे है । यह दावा करते हुए कि असहिष्णुता , अतयाचार और मंदिर- विधिंस की प्रवृवत् इसलाम में ही नहीं , हिंदू धर्म में भी उतनी ही रही है । मा्स्गिादी इतिहासकारों के कथित '' सामप्रदायिकता-विरोधी अभियान '' ( वासति में '' हिंदू-विरोधी अभियान '' ्योंकि इस गिरोह को इसलामी सामप्रदायिकता , जेहादी आतंकवाद आदि के विरुद्ध कभी कोई बयान तक देते नहीं देखा गया ) में इस दुष्प्रचार का भरपूर इसतेमाल होता रहा है । यह जानकर किसी को भी आशचय्ग होगा कि इस पूर्णतः असतय बात को भारत के मा्स्गिादी इतिहासकारों ने , कुछ ने अनजाने , कुछ ने जान-बूझकर , इतने सालों से केवल अपने पद-प्रतिष्ठा के वजन से , सरकारी पैसों के बल पर और राजनीतिक दलों के आशीर्वाद से बाजार में चलाया । इस अकादमिक या बौद्धिक घोटाले की पूरी पडताल करने पर इन वामपंथी '' इतिहासकारों '' की ननि वासतविकता उभर कर सामने आ जाती है कि वह वासति में कोई '' विद्ान '' नहीं , बपलक हाई कमानि के संकेतों पर चलने वाले साधारण '' पाटसी प्रचारक '' रहे है । �
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