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मामले में भी कठोर , सैनिक ढांचे वाला मलॉिल सीमित उपयोगिता का रहा । हालांकि बाहरी हमले आदि का मुकाबला करने में यह जरूर उपयोगी हुआ जिसमें लोगों और चीजों को मनचाहे , फौरन जहां से तहां भेजा जा सकता था । किनतु अर्थतंत्र , शिक्ा , विचार , दर्शन और संस्कृति की दरिद्रता आदि इसके निकममेपन के उदाहरण हैं । आलोचनाओं का उत्र देना , सियं को सुधारना , विदेशी साहितय का अधययन , सांस्कृतिक आदान-प्रदान चला सकना आदि में सभी कमयुवनसट देश नाकारा साबित हुए । झूठे आंकड़े , विवरण और दूसरे देशों के बारे में दुष्प्रचार के सिवाय उनकी सावहपतयक , सांस्कृतिक , बौद्धिक क्मता कभी कुछ न दे सकी । रूसी कमयुवनजम के पूरे सात दशक में एक भी मा्स्गिादी सावहपतयक , दार्शनिक , सामाजिक पुसतक या विद्ान नहीं है , जिसे आज भी मूलयिान कहा जाता हो । इसके विपरीत यूरोप , अमेरिका और संपूर्ण पूंजीवादी जगत में इसी दौरान तकनीक ही नहीं , सावहपतयक , बौद्धिक अवदानों के एक से एक सतंभ खड़े हुए जिनकी गिनती तक कठिन है ।
अंतरराष्ट्ीय दृशय में भी ‘ दुनिया के मजदूरो , एक हो ’ का नारा कभी सिीककृत न हुआ । पहले विशि-युद्ध से लेकर शीत-युद्ध और शापनत काल में भी जनता ने अपने देश , भार्ा , पंथ , संस्कृति को परे कर ‘ िगसीय ’ यानी कमयुवनसट-एकता बनाने , दिखाने में कोई रुचि नहीं ली । यहां तक कि कमयुवनसट देशों की पार्टियों तक ने मौका मिलते ही अपनी सितंत्र हसती दिखाने में संकोच न किया । रूस या चीन के साथ दूसरे देशों के कमयुवनसटों की एकता सिैपचछक नहीं थी । इसे फिनलैंड , हंगरी , चेकोसलोिाकिया , पोलैंड , चीन , युगोसलाविया और वियतनाम के कमयुवनसटों ने बार-बार दिखाया । पपशचमी यूरोप की कमयुवनसट पार्टियों ने भी वही दर्शाया । वे या तो रूस के प्रचारक के रूप में महतिहीन रहे या मजबूत होते ही रूसी कमयुवनजम से दूरी रखने लगे ।
अत : किसी प्रकार सामाजिक परिवर्तन कभी नहीं करना चाहिए , यही रूसी कमयुवनजम का मूल सबक है । इस दारुण इतिहास के बावजूद
आज भी दुनिया भर में जो लोग मा्स्गिाद में बुद्धि लगाते रहते हैं , वैसे ही लोगों को अंधविशिासी या फैनेटिक कहा जाता है । आज मा्स्गिाद-लेनिनवाद कतई प्रासंगिक नहीं है , ्योंकि यह अपनी ही मानयताओं पर निष्फल रहा । प्रथम , समानता बनाने के लिए इसे ऐसे दमनकारी तंत्र की जरूरत हुई , जो अपनी परिभार्ा से ही एक अलग , अतयवधक उच्चाधिकारी वर्ग था । यानी नागरिक समानता को असंभव बनाता था । दूसरे , दुनिया के लोगों के बीच अंतरराष्ट्ीय िगसीय एकता के बदले सथानीय सांस्कृतिक , राष्ट्ीय एकता के संबंध अतयवधक सश्त साबित हुए । इस तरह मा्स्गिाद की पूरी वर्ग-संकलपना हवाई रही ।
यही कारण है कि मा्स्गिादी नाम से दुनिया भर में जितने भी शासन सथावपत हुए , सब जलद ही जड़ , कठोर , मतिहीन वयिसथाओं में बदल गए । उनमें जब-जब , जहां-जहां सुधार के प्रयत् हुए , वह कभी अपेवक्त परिणाम नहीं दे पाए । पूरी वयिसथा लड़खड़ाने लगती थी , जिसे पुन :
बल-प्रयोग कर उसी तरह अनमय बना लिया जाता था । कमयुवनसट वयिसथा में समयानुरूप बदलने का लचीलापन न था , ्योंकि वह सहज , मानवीय विकास से नहीं , बपलक एक मतवादी फलॉमू्गले पर जबरन बनाई गई थीं ।
अंतत : रूस में मिखाइल गोर्बाचेव के प्रयोगों ( 1986-91 ) के बाद सपष्ट दिख गया कि मा्स्गिादी-समाजवाद किसी सुधार के योगय नहीं है । उसकी वयिसथा एक जड़-चट्टान की तरह है जिसे सुधारने में उसके पूरे के पूरे टटूटने के आसार दिखते थे । वही हुआ । उसी से सबक लेकर चीन में कमयुवनसटों ने 1989 में लोकतंत्र आंदोलन को निर्ममता से कुचला , वरना चीन में भी कमयुवनसट शासन का पटाक्ेप हो जाता । जो लोग मा्स्गिादी वयिसथाओं को ‘ विचारधारा का शासन ’ मानते हैं , वह भी गलत हैं । यह सच है कि आरंभिक दौर में , मा्स्गिादी विचारधारा ने कमयुवनसट नेताओं , कार्यकर्ताओं को प्रेरित किया था । किंतु सत्ा लेने के बाद हर कहीं केवल बल-छल का तर्क प्रबल हो जाता रहा ।
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