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कमयुवनसटों की वह हिंसा उसी जरूरत और उसी भावना से चीन , वियतनाम , कमबोविया , पूिसी यूरोप आदि जगहों पर चली , जिसने अपने-अपने निरीह दसियों-करोड़ देशवासियों को खतम किया । उसी के साथ वह सिद्धांत भी खतम हो गया जिसे '' मा्स्गिाद-लेनिनवाद '' कहा गया था ।
वर्ग-हीन , गैर-दमनकारी राज और शोर्ण- विहीन समतावादी समाज के दावे कमयुवनसट शासनों में चिंदी-चिंदी होकर नष्ट हो गए । बाद में जिस पर कमयुवनसट देशों की ‘ नौकरशाही ’ कह कर विफलता का दोर् मढ़ने की कोशिश की गई , वह वसतुत : एक नया शासक वर्ग ही था । उसे विशेर्ाधिकार , अतुलनीय सुविधाएं
और निरंकुश ताकत दिए बिना कोई कमयुवनसट राजय एक दिन भी सत्ा में नहीं रह सकता था । यह सब '' समानता के सिद्धांत '' का क्रूर मजाक साबित हुआ । जिन देशों में लोकतांत्रिक तरीके से कमयुवनसट शासन और समाज बनाने की कोशिशें हुईं , वहां भी वह विफल रहीं । जैसे-चिली और निकारागुआ । आर्थिक-तकनीकी क्ेत्र में समाजवादी सत्ाएं अक्म साबित हुईं । जो कारण पूंजीवादी देशों में सरकारी क्ेत्र के उद्ोगों , सेवाओं के पिछड़ने के हैं , वही और भी बड़े पैमाने पर समाजवादी देशों के पिछड़ने के थे ।
ककृवर् क्ेत्र में मा्स्गिादी-लेनिनवादी प्रयोगों ने और भी जयादा विधिंस किया किसानों से जमीन छीन कर सामूहिकीकरण और नौकरशाही
संचालन से अभूतपूर्व कई अकाल पड़े । रूस , चीन , कोरिया , कमबोविया , इथियोपिया , आदि देशों में करोड़ों लोग भूख से मर गए , जिनकी जानकारी भी दुनिया को दशकों बाद मिली । इस प्रकार , जमीन के निजी सिावमति वाली किसानी को खतम कर ‘ कमयुवनसट सिावमति ’ में उतपादन कई गुना बढ़ाने की कलपना उलटी साबित हुई । वह तो रूस की विशाल प्राककृवतक संपदा थी , जिसके बल पर रूस के साथ-साथ पूर्व यूरोप की भी ‘ समाजवादी उन्नति ’ का झूठा चित्र दो- तीन दशकों तक दिखाया जाता रहा । लेकिन जैसा कि 1986-90 की घटनाओं ने दिखाया , रूसी सहारा हटते ही पूर्व यूरोप की सत्ाएं ताश के महलों की तरह ढह गईं I
वह शासन इतना ककृवत्रम , विचारहीन था कि जब आम रूसियों ने 1991 में कमयुवनसट शासन को भंग करना शुरू किया तो दो करोड़ सदसयों वाली '' सोवियत कमयुवनसट पाटसी '' और उसके अभिजातों ने कोई प्रतिरोध नहीं किया ्योंकि आदर्श या सिद्धांत का मनोबल तो 1918-19 से ही नहीं था । मुखयत : निर्मम तानाशाही और लोभ-भय , आतंक , झूठ आदि के बल पर राज चलाया जाता रहा था । जैसा कि चीन में अभी भी चल रहा है । सामाजिक , सांस्कृतिक क्ेत्र में भी कमयुवनसट देशों में ‘ पूंजी की गुलामी ’ से मु्त होकर ‘ सितंत्र मनुष्य ’ बनने के बदले मनुष्य '' मूक जानवरों-सी '' अवसथा में पहुंच गया । ऐसी वयिसथा में , जहां राजय-शासन एकमात्र रोजगारदाता था , वहां अंध-आज्ापालन के सिवाय जीने का ही कोई अवसर न था . इसीलिए कई कमयुवनसटों ने भी शुरू में ही भांप लिया था कि घोर-गुलामी की वयिसथा बनने जा रही है । रूस में 1917-18 में ही महान कमयुवनसट लेखक मैक्सम गोकसी ने अपने सैकड़ों लेखों , संपादकीयों में यह क्ोभ वय्त किया था । '' अनटाइमली थलॉटस '' नाम से उनका यह संग्ह बाद में विदेशों में छपा । ट्रॉटसकी , रोजा ल्िमबर्ग आदि अनय विवेकशील कमयुवनसटों ने भी वही आशंका वय्त की थी । सभी सतय साबित हुए ।
समाजवाद का राजनीतिक तंत्र बनाने के
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