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दलितों को भ्रमित करने वाले

वामपंथ का काला इतिहास

डषा . शंकर शरण

रूस में 25 अ्तूबर ( या 7 नवंबर ) 1917 की घटना को पहले अ्तूबर या नवंबर रिांवत कहा जाता था , लेकिन 1991 में कमयुवनजम या वामपंथ के विघटन के बाद सियं रूसी उसे ‘ कमयुवनसट पुतसच ’ यानी ‘ तखतापलट ’ कहने लगे , जो वह वासति में था । उस दिन सेंट पीटर्सबर्ग में बलावदमीर लेनिन के पागलपन या दुससाहस से मुट्ी भर रूसी कमयुवनसटों ने सत्ा पर कबिे की कार्रवाई शुरू की थी । वह सफल इसलिए हो गई ्योंकि तब सरकार बड़ी संभ्रमित , अवनपशचत हालात में थी । इसलिए सरकारी तंत्र ने कोई निर्णायक जवाबी कदम नहीं उठाया और अंतत : सत्ा कमयुवनसटों के हाथ में आ गई । यह सब संयोगिक था ्योंकि वासति में रूस में कमयुवनसटों का समर्थन या संगठन नाम मात्र ही था । इसीलिए , उस दिन के तखतापलट को सत्ा में जम जाने के बाद '' रिांवत '' का नाम मिल गया , पर सत्ा खतम हो जाने के बाद रूसियों ने उसका सही नाम पुनसथा्गवपत कर दिया ।

बहरहाल , सत्ा पर कबिे से ठीक पहले रूसी कमयुवनसट नेता बलावदमीर लेनिन ने अपनी पुसतक '' राजय और रिांवत '' ( 1917 ) में लिखा था कि '' कमयुवनसटों की सत्ा अपने पहले दिन से ही दमनातमकता छोड़ना शुरू कर देगी , ्योंकि दमन की जरूरत पूंजीवादी राजयसत्ा को रहती है ।'' लेकिन हुआ ठीक उलटा ! लेनिनवादी कमयुवनसटों ने शुरू से ही क्रूरतम हिंसा , सामूहिक , बर्बर संहार का उपयोग किया । उनहोंने उसके लिए पेशेवर , भयंकर अपराधियों , गंदे लोगों से अपनी पाटसी-राजय मशीनरी को भर लिया ्योंकि वही लोग नीचतम , पाशविक हिंसा
कर सकते थे । उसके बिना कमयुवनसट सत्ा टिक ही नहीं सकती थी ।
रूस में 1917-21 के बीच चला गृह-युद्ध यही था । किनतु इस तरह सारे वासतविक , संदिगध , संभावित विरोधियों का समूल संहार करके भी , अगले छह-सात दशक भी सदैव उसी
तानाशाही , बेहिसाब हिंसा , सेंसरशिप , यातना शिविर और जबरदसती के बल पर ही रूस में कमयुवनसट शासन चल सका । महान रूसी लेखक सोलझेवनपतसन का ऐतिहासिक ग्ंथ '' गुलाग आर्किपेलाग '' ( 1973 ) उस भयावह सचाई का एक सीमित आकलन भर है । सत्ाधारी
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