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कथित विचारधारा सब कुछ छिपाने या जैसे-तैसे वयाखयावयत करने का औजार भर रह जाती थी । उसी कारण कमयुवनसट शासन वाले देशों में कमयुवनसट पाटसी का सदसय बनना निष्ठा के बदले विवशता , निजी उन्नति , सुविधा और विशेर्ाधिकारों का पासपोर्ट होता था । अत : उन समाजवादी देशों को ‘ विचारधारा शासित ’ देश कहना भी भूल ही है । एक जमाने के ततकालीन सोवियत संघ के सियोच्च नेता निकिता ख्ुशचेि के बेटे सगवेई ख्ुशचेि ने अपने संसमरण में लिखा है कि अपनी किशोरावसथा में जब उसने अपने पिता से बार-बार यह समझने की कोशिश की कि ‘ कमयुवनजम ्या है ?’, तो उसे समझ में आने लायक कुछ न मिला । यह लगभग 1960 की बात है ।
कमयुवनसट देशों की तुलना में अमेरिका , इंगलैंड , फांस , जापान आदि की राजनीतिक , आर्थिक और सामाजिक वयिसथा अतुलनीय रूप से सहज व रचनातमक बनी रही है । हर तरह की नई समसयाओं से निबटने और आगे
बढ़ने में उन देशों को कभी कोई कठिनाई नहीं हुई कमयुवनसट वैचारिक तानाशाही की तुलना में सितंत्र चिंतन ने इनकी राजनीतिक-आर्थिक वयिसथाओं को अधिक लचीला , परिवर्तनीय बनाए रखा है । इस के विपरीत , मा्स्गिाद को ‘ वैज्ावनक ’ बताने और विशि-विजयी बनाने की जिद में सभी मा्स्गिादी देशों ने अपने ही लोगों को अककूत हानि पहुंचाकर भी कुछ हासिल नहीं किया । इस खुले इतिहास के बावजूद भारत में जो लोग मा्स्गिाद में किसी समसया का समाधान पाना चाहते हैं , उन पर दया ही की जा सकती है । वह बंद-दिमाग , खामखयाल हैं । यद्वप उनमें ऐसे तेजदिमाग भी हैं जो सच जानते हुए भी केवल ‘ धंधा ’ कर रहे हैं । देश और समाज को विभाजित करने में लगी देशी-विदेशी शक्तयों के साथ परसपर लाभ का पेशेवर कारोबार । और इसी कार्य के लिए एक दिखाऊ , वैचारिक आडंबर ही अब उनका वामपंथ है । वसतुत : मा्स्गिाद-लेनिनवाद अजायबघर की वसतु हो चुका है । यह इससे भी प्रमाणित होता
है कि कमयुवनसट नेता भी अब मूल मा्ससीय धारणाओ का कभी प्रयोग नहीं करते । वर्ग-संघर््ग , सर्वहारा की तानाशाही , सोशलिजम , कमयुवनजम , मजदूर वर्ग की अंतरराष्ट्ीयता , देशी मूलय आदि बुनियादी पदों का भी इसतेमाल किए उनहें बरसों हो गए हैं । यह अकारण नहीं कि पहले के नामी मा्स्गिादी प्रोफेसर , बुद्धिजीवी अब अपने को ‘ से्युलर ’, ‘ लिबरल ’ या ‘ वामपंथी ’ कहते हैं । अपना पुराना अहंकारी विशेर्ण ‘ मा्स्गिादी ’ उनहोंने सियं छोड़ दिया है ! यह सब मा्स्गिाद का जग-जाहिर मूलयांकन ही है । वैचारिक मंथन के नाम पर वह केवल जुमले दुहराते हैं ।
कुछ पहले यहां मा्स्गिादी कमयुवनसट पाटसी ने अपनी कुल समीक्ा यह की है कि भाजपा को हराने के लिए कांग्ेस के साथ रहना अनिवार्य था । यह देखकर भारतीय कमयुवनसट पाटसी के महान नेता कलॉमरेड डांगे परलोक में हंस रहे होंगे । 40-45 िर््ग पहले वह यही आग्ह करते थे , जिसे ‘ दवक्णपंथी संशोधनवाद ’ कहकर माकपा भतस्गना करती थी । बहरहाल , भारत के मा्स्गिादी हमेशा देश के लोगों और अपने को भी छलते रहे हैं । हैरत यह कि दशकों तक रूस , चीन , वियतनाम से सीखने की आदत रखने वाले भारतीय कमयुवनसट अब उनसे भी सीखने से कतराते हैं ! रूसी गोर्बाचेव हों या चीनी देंग , सबने झक मारकर यही पाया कि '' सच्चाई , विचारधारा से बहुत अधिक ताकतवर है ।'' जैसा कि सोलझेवनपतसन ने लिखा था , ‘‘ सचाई का एक शबद पूरी दुनिया पर भारी पड़ता है ।'' मा्स्गिादियों को सच्चाई का अवलंब लेना होगा शोवर्त , दुर्बल , गरीब की सेवा केवल प्रतयक् ही हो सकती है इसके लिए कोई विचारधारा नहीं चाहिए । यह करके कोई समाज का नायक भी बन सकता है । कमयुवनसट विशि-वयिसथा के अवसान के दो दशक बाद भी माकपा , उसके सहयोगी मा्स्गिादी प्रोफेसर , बुद्धिजीवी उस महान परिघटना की कोई समीक्ा तथा वनष्कर््ग वनपशचत नहीं कर सके । उनहोंने कुछ नहीं सीखा । तभी वह बनदरिया के मरे बच्चे जैसे अपनी विचारधारा या उसकी विभाजनकारी भावना को चिपटाए घूम रहे हैं । �
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