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कुआं था । उस काल में ऐसी प्रथा थी कि कुओं से मुसलमान भिशती तो पानी भर सकते थे , मगर चर्मकारों को पानी भरने की मनाही थी । मुसलमान भिशती चाहते तो पानी चर्मकारों को दे सकते थे । कुल मिलाकर चर्मकारों को पानी मुसलमान वभपशतयों की ककृपा से मिलता था । जब नारायण सिामी जी ने यह अतयाचार देखा तो उनहोंने चर्मकारों को सियं पानी भरने के लिए प्रेरित किया । चर्मकारों ने सियं से पानी भरना आरमभ किया तो कोलाहल मच गया ।
मुसलमान आकर सिामी जी से बोले कि कुआं नापाक हो गया है ्योंकि जिस प्रकार बहुत से हिनदू हम को कुएं से पानी नहीं भरने देते उसी प्रकार हम भी इन अछटूतों को कुएं पर चढऩे नहीं देंगे । सिामी जी ने शांति से उत्र दिया कि कुआं हमारा है । हम किसी से घृणा नहीं करते । हमारे लिए तुम सब एक हो । हम किसी मुसलमान को अपने कुएं से नहीं रोकते । तुम हमारे सभी कुओं से पानी भर सकते हो । जैसे हम तुमसे घृणा नहीं करते । हम चाहते हैं कि तुम भी चर्मकारों से घृणा न करो । इस प्रकार एक अमानवीय प्रथा का अंत हो गया ।
अपनी खेती की देखभाल करके घर लौट रहे हिंदी के सुप्रसिद्ध साहितयकार आचार्य महावीर प्रसाद वद्िेदी को रासते में सहसा किसी के चिललाने की धिवन सुनाई दी । शीघ्र जाकर
देखा कि एक सत्री को सांप ने काट लिया है । तिरित् बुद्धि आचार्य को लगा कि यहां ऐसा कोई साधन नही है जिससे सर्प-विर् को फैलने से रोका जाये । उनहोंने फौरन यज्ोपवीत ( जनेऊ ) तोड़कर सर्प-दंश के ऊपरी हिससे में मजबूती से बांध दिया । फिर सर्प-दंश को चाककू से चीरकर विर्ा्त र्त को बलात् बाहर निकाल दिया । उस सत्री की प्राण-रक्ा हो गई ।
इस बीच गांव के बहुत से लोग एकत्र हो गए । वह सत्री अछटूत थी । गांव के पपणितों ने नाराजगी प्रकट करते हुए कहा कि जनेऊ जैसी पवित्र वसतु का इसतेमाल इस औरत के लिये करके आपने धर्म की लुटिया डुबो दी । हाय ! गजब कर दिया । विवेकी आचार्य ने कहा कि अब तक नहीं मालूम तो अब से जान लीजिये , मनुष्य और मनुष्यता से बड़ा कोई धर्म नहीं होता । मैंने अपनी ओर से सबसे बड़े धर्म का पालन किया है ।
प्रोफेसर शेर सिंह पूर्व केंद्रीय मंत्री भारत सरकार के पिता अपने क्ेत्र के प्रसिद्ध जमींदार थे । दलितों से छुआछटूत का भेदभाव मिटाने के लिए उनहोंने अपने खेतों में बने कुएं से दलितों के लिए पानी भरने हेतु सिीककृत कर दिए । प्रोफेसर शेर सिंह उस समय विद्ालय में पढ़ते थे । उस काल की प्रथा के अनुसार उनका विवाह वनपशचत हो चुका था । जब कनया पक् ने शेर सिंह जी के पिता के निर्णय को सुना तो उनहोंने सनदेश भेजा
कि या तो दलितों के लिए कुएं से पानी भरने पर पाबनदी लगा दें अनयथा इस रिशते को समापत समझें । शेर सिंह जी के पिता ने रिशतों को सामाजिक समरसता के सामने तुचछ समझा और रिशता तोडऩा मंजूर किया , पर दलितों के साथ नयाय किया ।
जब आर्यसमाज के मूर्धनय नेता और विद्ान् पंडित बुद्धदेव जी वेदालंकार को यह जानकारी मिली तो वह शेर सिंह जी के पिता से मिलने गए एवं उनहें आशिासन दिया कि उनकी निगाह में एक आर्य कनया है जिनसे शेर सिंह जी का विवाह होगा । कालांतर में उनहोंने अपनी कनया का विवाह जाति-बंधन तोड़कर शेरसिंह जी के साथ किया ।
इस प्रकार के अनेक प्रसंग महाशय रामचनद्र जी जममू , वीर मेघराज जी , लाला लाजपत राय , लाला गंगाराम जी सयालकोट , पंडित देवप्रकाश जी मधय प्रदेश , मासटर आतमाराम अमृतसरी जी बरोदा , वीर सावरकर जी रत्ावगरी , सिामी श्रद्धाननद जी दिलली , पंडित रामचनद्र देहलवी दिलली आदि के जीवन में मिलते हैं , जिनके प्रचार प्रसार से जातिवाद उनमूलन की प्रेरणा मिलती हैं । यही इस वस्के के दो पहलू हैं कि दलितोद्धार के लिए दलितों पर अतयाचार के सथान पर भेदभाव मिटाने वाली घटनाओं को प्रचारित किया जाना चाहिए । �
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