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बहिष्कार कर दिया एवं सभी कुओं से आर्यसमाजियों को पानी भरने पर प्रतिबनध लगा दिया गया । नहर का गंदा पानी पीने से अनेक आयथों को पेट के रोग हो गए , जिनमें से एक सोमनाथ जी की माताजी भी थीं । उनहें आनत्रजिर हो गया था । वैद् के अनुसार ऐसा गनदा पानी पीने से हुआ था । सोमनाथ जी के समक् अब एक रासता तो क्मा मांगकर समझौता करने का था और दूसरा रासता सब कुछ सहते हुए परिवार की बलि देने का था ।
आपको चिंताग्सत देखकर आपकी माताजी ने आपको समझाया कि एक न एक दिन तो उनकी मृतयु वनपशचत है । फिर उनके लिए अपने धर्म का परितयाग करना गलत होगा । इसलिए धर्म का पालन करने में ही भलाई है । सोमनाथ जी माता का आदेश पाकर चिंता से मु्त हो गए एवं और अधिक उतसाह से कार्य करने लगे । माता जी रोग से सिग्ग सिधार गई , तब भी विरोधियों के दिल नहीं पिघले । विरोध दिनों-दिन बढ़ता ही गया । इस विरोध के पीछे गोपीनाथ पंडित का हाथ था । वह पीछे से पौराणिक हिनदुओं को भड़का रहा था । सनातन धर्म गजट में गोपीनाथ ने अक्टूबर 1900 के अंक में आयथों के खिलाफ ऐसा भड़काया कि आयथों के बच्चे तक पयास से तड़पने लगे थे । सखत से सखत तकलीफें आयथों को दी गई । लाला सोमनाथ को अपना परिवार रोपड़ से जालंधर ले जाना पड़ा । जब शांति की कोई आशा न दिखी तो महाशय इंदरमन आर्य लाल सिंह ( जिनहें शुद्ध किया गया था ) और लाला सोमनाथ सिामी श्रद्धाननद ( तब मुंशीराम जी ) से मिले और सनातन गजट के विरुद्ध फौजदारी मुकदमा करने के विर्य में उनसे राय मांगी । मुंशीराम जी उस काल तक अदालत में धार्मिक मामलों को लेकर जाने के विरुद्ध थे । कोई और उपाय न देख अंत में मुकदमा दायर हुआ , जिस पर सनातन धर्म गजट ने 15 मार्च 1901 के अंक में आर्यसमाज के विरुद्ध लिखा ' हम रोपड़ी आर्यसमाज का इस छेडखानी के आगाज के लिए धनयिाद अदा करते हैं कि उनहोंने हमें विधिवत् अदालत के द्ारा ऐलानिया जालंधर में निमंत्रण दिया हैं ।
जिसको मंजूर करना हमारा कर्तवय है । 3 सितमबर 1901 को मुकदमा सोमनाथ बनाम सीताराम रोपड़ निवासी का फैसला भी आ गया । सीताराम को अदालत में माफीनामा पेश करना पड़ा ।
इस प्रकार अनेक संकट सहते हुए आयथों ने दलितोद्धार एवं शुद्धि के कार्य को किया था । मौखिक उपदेश देने में और जमीनी सतर पर पुरुर्ार्थ करने में कितना अंतर होता है इसका यह यथार्थ उदाहरण है । सोमनाथ जी की माता जी का नाम इतिहास के सिवण्गम अक्रों में अंकित है । सबसे प्रेरणादायक तथय यह है कि किसी सवर्ण ने अछटूतों के लिए अपने प्राण नयोछावर किये हों ऐसे उदाहरण केवल आर्यसमाज के इतिहास में ही मिलते हैं ।
आर्यसमाज के महान नेता महातमा नारायण सिामी जी का जीवन हम सबके लिये प्रेरणास्ोत है । सिामी जी की कथनी और करनी में कोई भेद नहीं था । उनके जीवन के अनेक प्रसंगों में से दलितोद्धार से समबंवधत दो प्रसंगों का पाठकों के लाभार्थ वर्णन करना चाहता हूं । नारायण सिामी जी तब मुरादाबाद आर्यसमाज के प्रमुख कर्णधार थे । आर्यसमाज में अनेक ईसाई एवं मुसलमान भाइयों की शुद्धि उनके प्रयासों से हुई थी जिसके कारण मुरादाबाद का आर्यसमाज प्रसिद्ध हो गया । मंसूरी से डा . हुकुम सिंह एक ईसाई वयप्त की शुद्धि के लिए उसे मुरादाबाद लाए ।
उनका पूर्व नाम श्रीराम था एवं वह पहले
सारसित ब्राह्ण थे । ईसाईयों द्ारा बहला- फुसला कर किसी प्रकार से ईसाई बना लिए गए थे । आपकी शुद्धि करना हिनदू समाज से पंगा लेने के समान था । मामला नारायण सिामी जी के समक् प्रसतुत हुआ । आपने अंतरंग में निर्णय लिया कि नाममात्र की शुद्धि का कोई लाभ नहीं है । शुद्धि करके उसके हाथ से पानी पीने का नम्र प्रसताि रखा गया जो सिीककृत हो गया । यह खबर पूरे मुरादाबाद में आग के समान फैल गई । शुद्धि वाले दिन अनेक लोग देखने के लिए जमा हो गए । शुद्धि कार्यकर्म समपन्न हुआ एवं शुद्ध हुए वयप्त के हाथों से आयथों द्ारा जल ग्हण किया गया । अब घोर विरोध के दिन आरमभ हो गए । बात कले्टर महोदय तक पहुंच गई ।
उनहोंने मुंशी जी को बुलाकर उनसे परामर्श किया । मुंशी जी ने सब सतय बयान कर दिया तो कले्टर महोदय ने कहा कि आर्य लोग इसकी शिकायत ्यों नहीं करते । मुंशी जी ने उत्र दिया । हम लोग सिामी दयानंद के अनुयायी हैं । एक बार ऋवर् को किसी ने विर् दिया था । कोतवाल उसे पकड़ लाया । ऋवर् ने कहा- इसे छोड़ दीजिये । मैं लोगों को कैद करने नहीं अपितु कैद से मु्त कराने आया हूं । यह लोग मूर्खतावश आयथों का विरोध करते हैं । इनहें ज्ान हो जायेगा तो सियं छोड़ देंगे । अंत में कोलाहल शांत हो गया और आर्य अपने मिशन में सफल रहे ।
एक अनय प्रेरणादायक घटना नारायण सिामी जी के वृनदािन गुरुकुल प्रवास से समबंवधत है । गुरुकुल की भूमि में गुरुकुल के सिति में एक
22 vDVwcj 2024