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जातिवाद
लस्के के दो पहलू
डषा . विवषेक आर्य
समाचार पत्र में पढ़ने को मिला कि अमुक सथान पर दूलहे को घोड़ी चढने से मना कर दिया । कारण दूलहा दलित समुदाय से समबंवधत होता है । गांव के सवर्ण लोगों को दलित समाज से समबंवधत वयप्त द्ारा घोड़ी की सवारी करने पर आपवत् है । इस प्रकार की घटनाएं निनदनीय हैं और हमारे समाज की एकता के लिए घातक हैं । यह हमारे संविधान के लिए भी एक चुनौती है और वनपशचत रूप से उनके मानव अधिकारों का उललंघन है । सबसे खतरनाक बात यह है कि जो लोग सदियों से हिनदू समाज को तोडऩे के लिए प्रयासरत हैं , वे इस प्रकार की घटनाओं का एक हथियार के रूप में इसतेमाल करते हैं । उनका उद्ेशय समाज के विभिन्न िगथों के मधय वैमनसि को बढ़ािा देकर अपना राजनीतिक उललू सीधा करना होता है । रूढि़वादी सामनती विचारधारा के लोग यदि जनम के आधार पर किसी वयप्त के साथ इस प्रकार का अमानुवर्क आचरण करते हैं तो उनका हर सतर पर विरोध होना चाहिए , पर उनका विरोध साधय नहीं साधन है । साधय है समाज के सभी िगथों में सामंजसय सथावपत करना और हर प्रकार के भेदभाव को समापत करना ।
समाज में नकारातमक होता है तो सकारातमक भी कम नहीं होता । उनका प्रचार करने से ही समाज में भेदभाव को समापत किया जा सकता है । आज जातिवाद उस प्रकार की समसया नहीं
है जैसी कि सौ दो सौ साल पहले थी । आज जातिवाद की समसया अधिकांश रूप से राजनीतिक है और इसी कारण से यह पहले की अपेक्ा अधिक भयावह है । जातिवाद को समापत करने के प्रयास करने वालों का प्रचार तंत्र इसको फैलाने वालों के प्रयासों और प्रचार तंत्र की अपेक्ा नगणय है ।
आर्यसमाज ने अपने प्रारंभिक काल से ही सामाजिक जातिवाद को समापत करने के सार्थक प्रयास किये थे और इन जंजीरों को तोडऩे में काफी हद तक सफलता प्रापत की थी । गांधीजी ने तो केवल उनका नाम बदला था । इतिहास में ऐसी घटनाएं सिण्ग अक्रों में अंकित हैं जिनको
आज के युग में प्रचारित किया जाए तो वनपशचत रूप से दोनों पक्ों के लिए प्रेरणा की संजीवनी सिद्ध हो सकती हैं । हम बुराई के सथान पर अचछाई वाले दृष्टानतों को प्रचारित कर सामाजिक सनदेश देना चाहते हैं जिससे सकारातमक माहौल बने ।
लाला सोमनाथ जी रोपड़ आर्यसमाज के प्रधान थे । आपके मार्गदर्शन में रोपड़ आर्यसमाज ने रहतियों की शुद्धि की थी । यों तो रहतियों का समबनध सिख समाज से था , मगर उनके साथ अछटूतों सा वयिहार किया जाता था । उनहें जनेऊ पहनाकर सममावनत सथान देने के कारण रोपड़ के पौराणिक समाज ने आर्य समाजियों का
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