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शिक्ा क्ेत्र मं दलित- पिछड़े वर्ग की महिलाओं की भागीदारी

डषा . उषषा सिंह

महिलाओं के सशक्तकरण और उनहें और मजबूत करने के लिए शिक्ा अधिक महतिपूर्ण है । इस समबनध में संविधान निर्माता डा . भीम राव आंबेडकर ने भी सबसे पहले वशवक्त बनो का संदेश भारतीय समाज को दिया था । शिक्ा ही ही एक वशवक्त और जागरूक महिला समाज का उतथान करती है और देश के लिए एक बुद्धिमान और समझदार भावी पीढ़ी सुवनपशचत करती है । जब महिलाओं की शिक्ा की बात आती है तो उन लिंग विशिष्ट समसयाओं को पहचानना महतिपूर्ण है जिनका सामना महिलाएं करती हैं और उन मुद्ों को कैसे हल किया जा सकता है । विशेर् रूप से गरीब , दलित और पिछड़े वर्ग की महिलाएं एवं लड़कियां आज भी शिक्ा से दूर हैं । शिक्ा क्ेत्र में गरीब , दलित और पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए सबसे आम समसया अ्सर स्कूल से दूरी होती है- स्कूल या विशिविद्ालय जाने और वापस घर आने में कितना समय लगता है । दूसरी सबसे आम समसया परिवार के समर्थन की उपपसथवत

या अनुपपसथवत है । यदि परिवार लड़की की शिक्ा / उच्च शिक्ा को सिीकार कर रहा है और इन मुद्ों का मुकाबला करने के लिए महिलाओं को समान अवसर के साथ सुरवक्त वातावरण प्रदान करता है तभी वह अपनी क्मता का पूर्ण उपयोग करने में सक्म हो पाती हैं ।
भारत हमेशा से ही ऐसे महान पूजय संतों की भूमि रही है , जिनहें भौतिक और अभौतिक दुनिया के हर पहलू के बारे में गहरा ज्ान था । ' गुरु- शिष्य परंपरा ' के सिद्धांत और अपने मूल में प्रककृवत पूजा के साथ भारतीय ज्ान परंपरा की मानव जाति के इतिहास में अपनी महानता दर्ज है । लेकिन सभी बिंदुओं के बावजूद शिक्ाविदों और उच्च शिक्ा की बहस में योगदान देने के
लिए हमेशा कुछ नया होता है । बदलते समय के साथ , भारतीय ज्ान परंपरा या सिदेशी ज्ान आधार को आरिमणकारियों और उनके इतिहासकारों के इतिहास के हाथों भारी झटका लगा । भारतीय समाज को जातियों एवं उपजातियों में बांटने वाले आरिमणकारियों और फिर अंग्ेिी सत्ा ने सर्वाधिक हानि शिक्ा क्ेत्र को पहुंचाई । सर्वसुलभ गुरुकुल शिक्ा प्रणाली को नष्ट कर दिया , जिसका सर्वाधिक नकारातमक परिणाम गरीब , दलित , पिछड़े एवं आदिवासी वर्ग की महिलाओं को उठाना पड़ा है ।
भारत की नई राष्ट्ीय शिक्ा नीति को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 29 जुलाई 2020 को मंज़ूरी दी थी , जिसने 1986 में लागू हुई राष्ट्ीय शिक्ा
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