महाराजिक देवता उसकी शैया को उठा ले गए गये हैं और उनहोंने उसे हिमवंत प्रदेश में एक शाल-वृक् के नीचे रख दिया है । वह देवता पास खड़े हैं । दूसरे दिन महामाया ने शुद्धोदन से अपने सिप्न की चर्चा की । इस सिप्न की वयाखया करने में असमर्थ राजा ने सिप्न विद्ा में प्रसिधद आठ ब्राह्णों को बुला भेजा । उनके नाम थे राम , धिि , लक्मण , मंत्री , कोडत्रि , भोज , सुयाम
और सुदत् । राजा ने उनके सिागत की तैयारी की । उसने जमीन पर पुष्प िर्ा्ग करवाई और उनके लिए सममावनत आसन बिछवाये ।
उसने ब्राह्णों के पात्र सोने-चांदी से भर दिए और उनहें घी , मधु , श्कर , बढ़िया चावल तथा दूध से पके पकवानों से संतर्पित किया । जब ब्राह्ण खा-पीकर प्रसन्न हो गए , शुद्धोदन ने उनहें महामाया का सिप्न सुनाया और पूछा
कि मुझे इसका अर्थ बताओ । ब्राह्णों का उत्र था कि महाराज , निश्चंत रहिये । आपके यहां एक पुत्र होगा । यदि वह घर में रहेगा तो चरिितसी राजा होगा । यदि गृह तयाग कर सनयासी होगा तो वह बुद्ध बनेगा- संसार के अंधकार का नाश करने वाला ।
यह घटना इसलिए भी महतिपूर्ण है ्योंकि डा . आंबेडकर ने इसे सच माना । यदि वह ब्राह्णों , देवताओं , सिप्न विज्ान के विरुद्ध होते तो वनपशचत रूप से इस घटना को अमानय कर देते । जो नव बौद्ध हर बात पर ब्राह्णों को दोर् देते हैं , उनहें इसपर धयान देना चाहिए । डा . आंबेडकर यह भी मानते हैं कि सिधदाथ्ग को बचपन में वेदादि ग्ंथों की संपूर्ण शिक्ा भी दी गयी । वह लिखते हैं कि जो कुछ वह ( आठ ब्राह्ण ) जानते थे , जब वे सब सिखा चुके , तब शुद्धोदन ने उदिच्च देश के उच्च कुलोतपन्न प्रथम कोटि के भार्ाविद् तथा वैयाकरण , वेद , वेदांग तथा उपवनर्दों के पूरे जानकार सबबवमत् को बुला भेजा । उसके हाथ पर समर्पण का जल सिंचन कर शुद्धोदन ने सबबवमत् को ही वशक्ण के वनवमत् सिद्धार्थ को सौंप दिया । वह उसका दूसरा आचार्य था । उसकी अधीनता में सिद्धार्थ ने उस समय के सभी दर्शन शासत्रों पर अधिकार कर लिया ।
डा . आंबेडकर के ही शबदों में यह साबित हो जाता है कि बौद्ध धर्म के पूर्व ही वेदादि ग्ंथ थे । सिद्धार्थ के पीपल वृक् के नीचे ज्ान प्रापत करने के पशचात ही बौद्ध धर्म अपसतति में आया । जो वेद ना होते इसके पूर्व तो सिद्धार्थ ने इन शासत्रों की बचपन में शिक्ा ली , ऐसा डा . आंबेडकर का लिखना झूठा हो जाता । अब निर्णय इन नवबौद्ध भार्ा विज्ानविदों का है कि वह ्या सच मानेंगे ? डा . आंबेडकर के नाम अपनी झूठ की दुकान चलाना और डा . आंबेडकर की लिखी बातों को नकारना साथ-साथ नहीं हो सकता है । �
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