Nov 2024_DA | Page 36

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आठवें , नौवें , दसवें और गयािहवें सरिों में संविधान के प्रारूप पर विचार हुआ । संविधान सभा के इन गयािह सरिों में 165 दिन का समय लगा और इनमें से सभा ने 114 दिन संविधान के प्रारूप पर विचार करने में लगाए ।
क्या ्यह ्वतंत्ता ्थिा्यी होर्ी ?
यह सहज आशंका भाििमीय और पाशचातय जगत में थमी कि सििंरि भारत कब तक सििंरि रहेगा ? यह प्रश्न डा . आंबेडकर के स्क् भमी था । प्रारूप समिति के अधयक् होने के कारण इसका उत्ि भमी जानना आवशयक था । इसलिए डा . अमबेडकर कहते हैं कि 26 जनििमी 1950 को भारत एक सििंरि देश होगा उसकमी सिाधमीनता का ्या परिणाम होगा ? ्या वह अपनमी सिाधमीनता कमी रक्ा कर सकेगा या उसको फिर खो देगा ? मेरे मन में सर्वप्रथम यह विचार आता है । यह बात नहीं कि भारत कभमी सिाधमीन न रहा हो । बात यह है कि एक बार वह पाई हुई सिाधमीनता को खो चुका है । ्या वह दोबारा भमी उसे खो देगा ? यहमी वह विचार है जिसके विषय में भविषय के प्रति डा . अमबेडकर वचकनिि होकर कहते हैं कि जो तथय मुझे बहुत परेशान करता है , वह यह है कि भारत ने पहले एक बार अपनमी सिाधमीनता खोई हमी नहीं वरन् अपने हमी कुछ लोगों कमी ककृिघनता तथा फू्ट के कारण वह सिाधमीनता आई-गई हुई । एक प्रकार से भारत में देशघात का इतिहास रहा है । मेरा ्कसिषक अपने देश के भविषय विषयक विचारों से इतना परिपमूण्ख है कि मैं यह अनुभव करता हमूं कि इस अवसर पर इस विषय पर मैं अपने विचारों को वय्ि करूं । यह भय डा . अमबेडकर के तथयों से प्रमाणित होता है । वह इतिहास के दर्पण से कुछ दृष्टानि लेते है और लिखते हैं कि मुहम्ि बिन कासिम द्ािा सिंध पर आक्रमण करते समय दाहिर राजा के सेनापति ने मुहम्ि बिन कासिम से घमूस ले िमी और अपने राजा कमी ओर से युद्ध करने से मना कर दिया । वह जयचनि था , जिसने मुहम्ि गोिमी को भारत पर आक्रमण करने और पृथ्वीराज से युद्ध करने के लिए बुलाया था और अपनमी तथा
सोलंकमी राजाओं कमी सहायता का बचन दिया । जब शिवाजमी हिनिुओं कमी मुक्ि के लिए युद्ध कर रहा था , उस समय अनय मराठा सरदार और राजपमूि राजा मुगल बादशाओं कमी ओर से युद्ध कर रहे थे । 1857 में जब भारत के एक विशाल भाग ने अंग्ेजों के विरुद्ध सिाधमीनता के संग्ा् कमी घोषणा कमी तो ्मूक दर्शकों कमी भांति सिख खड़े-खड़े तमाशा देखते रहे ।
संविधान का भलवष््य क्या होर्ा ?
िमूसिमी आशंका डा . आंबेडकर का भाििमीय संविधान के भविषय को लेकर है । वह कहते हैं कि जब भारत 26 जनििमी 1950 को गणतंरि हो जायेगा तो उसके इस लोकिनरिात्क संविधान का ्या भविषय होगा ? अर्थात ्या वह इसकमी रक्ा कर सकेगा या इसको फिर खो देगा । यह िमूसरा विचार है जो उनके मन में उतपन्न होता है और पहले विचार कमी भांति वयवथि करता है । डा . आंबेडकर मानते हैं कि भारत में लोकतंरि और गणतंरि दोनों था । भारत गणराजयों से सुसज्जित था , जहां राजा थे वहां भमी या तो वह निर्वाचित होते थे या उनके अधिकार समीव्ि रहते थे । उनको परमाधिकार प्रापि न हमी थे । भारत संसद या संसिमीय प्रक्रिया से परिचित था । बौद्ध भिक्ु-संघ के अधययन से विदित होता है कि “ केवल संसद हमी नहीं थमी , संघ-संसद के अतिरि्ि और कुछ नहीं होते थे । वरन आधुनिक युग में संसिमीय प्रक्रिया के जितने भमी नियम हैं , उन सबसे यह संघ परिचित थे । उनके यहां बैठने के प्रबंध समबन्धी नियम , प्रसिािों , संकलपों , गणपमूवि्ख , उन्ोधक , मतगणना , शलाका द्ािा मतदान , अविशिास-प्रसिाि , वयिसथा , पहले निर्णय हुए अभियोग इतयावि समबन्धी नियम थे । “ यद्यपि बुद्ध इन नियमों को संघ कमी बैठकों में लागमू करते थे , पर उनहोंने इन नियमों को देश कमी तत्कालीन राजनमीविक सभाओं में प्रचलित नियमों में से लिया होगा ।
संविधान की र्ुणवत्ा क्या है ?
डा . आंबेडकर संविधान और राजनमीविक
संस्कृति से जोड़ते हुए कहते हैं कि “ मैं समझता हमूं कि संविधान चाहे जितना भमी अचछा हो यदि उसे काया्खकनिि करने वाले लोग बुरे हैं तो वह निससंिेह बुरा हो जाता है । संविधान का क्रियाकरण पमूण्खिया संविधान के प्रकार पर निर्भर नहीं करता है । “ संविधान तो एक मारि वयिसथा हैं जिसमें सरकार के विभिन्न अंगों के सुचारू रूप से संचालन के लिए निर्मित किया गया । संविधान का भविषय इस बात पर निर्भर करता है कि सामानय नागरिक किस रूप में इस राजनमीविक प्रक्रिया में भागमीिार बनता है । उन्ही के शबिों में ‘ राजय के इन अंगों का क्रियाकरण जिन पर निर्भर करता है , वह जनता और उसके द्ािा सथावपि किए गए राजनमीविक पक् हैं जो उसकमी इचछा और नमीवि पालन करने के साधन होते हैं ।‘ यह कौन कह सकता है कि भारत कमी जनता और उसके पक् किस प्रकार का वयिहार करेंगे ? ्या वह अपने प्रयोजनों को सिद्ध करने में संवैधानिक साधनों को काम में लेंगे या वह क्राकनिकािमी साधनों को अधिमान देंगे ? यदि वह क्राकनिकािमी साधन अपनाते हैं तो चाहे संविधान कितना हमी अचछा हो , यह कहने के लिये किसमी देििमूि कमी आवशयकता नहीं है कि वह असफल होगा । अतः
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