इस संविधान पर बिना इस वनिवेश के कि जनता और पक् किस प्रकार कमी प्रवृवत् दिखायेंगे कोई निर्णय देना वयथ्ख है ।
सफल लोकतंत्
पाशचतय विद्ानों ने एक सफल लोकतंरि के लिए कुछ अनिवार्य दशाओं का उलिेर किया था । भारत में वह पमूि्खशिवे नहीं थमी । इसलिए डा . आंबेडकर भमी कुछ पमूि्ख शिगों को का उलिेर करते हैं । वह भारत के सनिभ्ख में लोकतंरि और संविधान के सफलता के लिए िमीन बात कहते हैं-क्रांति मार्ग को तयागना , वयक्ि पमूजा से विचछेिन और राजनमीविक लोकतंरि का सामाजिक और आर्थिक समाज के साथ समनियन ।
भाििमीय चिंतन परमपिा में साधय और साधन के बमीच के संबंध पर लगभग सभमी विचारकों ने अपनमी राय प्रक्ट कमी है । लोकतंरि कमी सथापना राजय का उद्ेशय है और संविधान उसका साधना है । डा . आंबेडकर का मानना है कि सश्ि एवं सफल लोकतंरि के लिए सामाजिक और आर्थिक उद्ेशयों कमी पमूवि्ख के लिए संविधानिक िमीवियों को दृढ़ता पमूि्खक अपनाना होगा अर्थात क्रांति के रसिे को तयागना होगा । सििंरििा आनिोिन सविनय
अवज्ा , असहयोग और सतयाग्ह कमी िमीवि का हम परितयाग करें । आर्थिक तथा सामाजिक उदेशयों कमी पमूवि्ख के लिए जब कोई मार्ग न रहे तब तो इन असंवैधानिक िमीवियों का अपनाना कुछ रूप में नयायपमूण्ख हो सकता है । पर जब संवैधानिक िमीवियों का मार्ग खुला हुआ है कि इन असंवैधानिक िमीवियों का अपनाना कभमी नयायसंगत नहीं हो सकता है । यह िमीवियां अराजकता के सूत्रपात के अतिरि्ि और कुछ नहीं है और जितना शमीघ्र इनका परितयाग किया जाए , उतना हमी हमारे लिए अचछा है ।
िमूसिमी बात जिस पर डा . आंबेडकर धयान दिलाते हैं कि वयक्ि पमूजा लोकिनरि के लिए अचछा नहीं होता हैं । उनका कहना था कि किसमी भमी महान वयक्ियों के प्रति , जिनहोंने जमीिन पर्यनि देश कमी सेवा कमी हो , कृतज्ञ होने में कोई बुराई नहीं है । पर कृतज्ञता कमी भमी समी्ा है । भारत में भक्ि या जिसे भक्ि मार्ग या िमीि पमूजा कहा जाता है , उसका भारत कमी राजनमीवि में इतना महतिपमूण्ख सथान है जितना किसमी अनय देश कमी राजनमीवि में नहीं है । धर्म में भक्ि आत्-मोक् का मार्ग हो सकता है । पर राजनमीवि में भक्ि या िमीि पमूजा पतन तथा अनििः तानाशाहमी का एक वनकशचि मार्ग है ।
इसके साथ हमी राजनमीविक लोकतंरि के साथ सामाजिक लोकतंरि का होना आवशयक है । राजनमीविक लोकिनरि को सामाजिक लोकतंरि का रूप भमी देना चाहिये । सामाजिक लोकतंरि का ्या अर्थ है ? इसका अर्थ जमीिन के उस मार्ग से है जो सििंरििा , समता और बंधुति को जमीिन के सिद्धांतों के रूप में अभिज्ाि करता है । डा . आंबेडकर का कहना है कि सििंरििा , समता और बंधुति को संयु्ि रूप से हमी देखना चाहिए । एक का िमूसरे से विचछेि करना लोकतंरि के ्मूि प्रयोजन को हमी विफल करना है । सििंरििा को समता से पृथक नहीं किया जा सकता , समता को सििंरििा से पृथक नहीं किया जा सकता और न सििंरििा या समता को हमी बंधुति से पृथक किया जा सकता है । समता विहमीन सििंरििा से कुछ वयक्ियों कमी अनेक वयक्ियों पर प्रभुता का प्रादुर्भाव होगा । सििंरििा विहमीन समता वयक्िगत
उपक्रम का ह्ास करेगा । बंधुति के बिना सििंरििा और समता अपना सिाभाविक मार्ग ग्हण नहीं कर सकते ।
डा . आंबेडकर आगाह करते हैं कि भाििमीय समाज में दो बातों का पमूण्खिया अभाव है । इनमें से एक समता है । सामाजिक सिि पर हमारे भारत में हमारा एक ऐसा समाज है जो क्रमानुसार वनकशचि असमता के सिद्धांत पर आवश्ि है जिसका अर्थ कुछ वयक्ियों कमी उन्नति और कुछ का पतन है । आर्थिक सिि पर हमारा एक ऐसा समाज है जिसमें कुछ लोग ऐसे हैं जिनके पास अतुल संपवत् है और कुछ ऐसे हैं जो निर्धनता में जमीिन बिता रहे हैं । 26 जनििमी 1950 को हम विरोधमी भावनाओं से परिपमूण्ख जमीिन में प्रवेश कर रहे हैं । राजनमीविक जमीिन में हम समता का वयिहार करेंगे और सामाजिक तथा आर्थिक जमीिन में असमता का । राजनमीविक और सामाजिक एवं आर्थिक जमीिन में एक समनिय के भाव कमी आवशयकता है ।
एक िमूसिमी बात जिसके ओर डा . आंबेडकर संकेत करते है , वह बंधुति का भाव है । बंधुति का अर्थ समसि भारतवासियों के मन में सद्ाि से है । डा . आंबेडकर कहते हैं कि यह वह सिद्धांत है जो सामाजिक जमीिन को एकता तथा दृढ़ता प्रदान करता है । बिना बंधुति के राषट्र निर्माण कमी प्रक्रिया कठिन है ्योंकि भारत में जातियां हैं । यह जातियां राष्ट्रीयता कमी विरोधमी हैं । सर्व प्रथम इस कारण कि यह सामाजिक जमीिन में अलगाव प्रसिुि कििमी हैं । यह इस कारण भमी राष्ट्रीयता कमी विरोधमी हैं कि परसपि जातियों में ईषया्ख और द्ेष उतपन्न कििमी हैं । परनिु यदि हम वासिि में एक राषट्र के रूप में होना चाहते हैं तो हमें इन सब कठिनाइयों पर विजय प्रापि करना है । बंधुति बिना समता और सििंरििा कमी जड़ उतनमी हमी गहिमी हो सकेगमी जितनमी रंग कमी सतह कमी जड़ होिमी है । इसलिए समरस और समता्मूिक समाज का निर्माण जितना िमीव्र गति से होगा उतना हमी अधिक संभवना लोकतंरि के सश्ि होने को होगमी ।
( लेखक राजधानी दिलली स्थित डा . आंबेडकर अंतर्राष्ट्री्य केंद्र में सह-आचा्य्ण हैं )
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